नेहरू के सचिवालय की फाइलों पर रहती थी अमेरिका की पहुँच…

0
628

समाजवादी पार्टी के द्वारा राज्यसभा भेजे गए सांसद मुनव्वर सलीम के पीए फरहद का नाम जब पाकिस्तानी जासूस के रूप में सामने आया तो पूरा देश हिल गया। सामने आया कि राज्यसभा सांसद के रूप में मुनव्वर सलीम को संसद कार्यवाही की जितनी भी सूचनाएँ मिला करती थीं वो सभी फोटोस्टेट करवाकर फरहद पाकिस्तान को सौंप दिया करता था। ये खुलासा हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वास्तव में काफी शर्मनाक था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के किस प्रधानमंत्री सचिवालय की फाइलों तक अमेरिका की सीक्रेट एजेंसी सीआईए की पहुँच हुआ करती थी। वो प्रधानमंत्री थे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू…

पं. नेहरू के निजी सचिव हुआ करते थे एम ओ मथाई, जिनके बारे में व्यापक रूप से माना जाता है कि नेहरू से जुड़ने से पहले वे आसाम-बर्मा सीमा पर अमेरिकी सेना में काम करते थे, लेकिन आमतौर पर कोई ये नहीं जानता कि वो अमेरिका के कोई साधारण सैनिक नहीं थे, मथाई के पास अमेरिकी दूतावास के चोटी के अधिकारियों और मालाबार चर्च के बिशप के साथ निजी सचिव की हैसियत से काम करने का अच्छा अनुभव था। नीचे दिए गए पत्र में आप स्वयं ये देख सकते हैं-एम ओ मथाई पत्र

एम ओ मथाई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. के एजेंट थे जिनको कि अमेरिका-ब्रिटेन के अच्छे सम्बन्धों के चलते ब्रिटिश सरकार को एक तोहफे के रूप में दे दिया गया था।

1945 में जेल से छूटने के बाद नेहरू की मथाई से मुलाकात हुई और उसके बाद इलाहबाद में मथाई नेहरू से उनके घर पर मिले, मथाई ने नेहरू को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, नतीजतन नेहरू ने उनको ही अपने निजी सचिव के रूप में चुन लिया। 1946 से 1959 तक मथाई नेहरू के निजी सचिव रहे, और इस दौरान प्रधानमंत्री सचिवालय में आने वाली प्रत्येक फाइल तक अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. की पहुँच रही। इस बात की पुष्टि कुँवर नटवर सिंह भी अपनी आत्मकथा में कर चुके हैं जो कि उस दौरान भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी थे एवं बाद में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में विदेश मंत्री भी रहे। 1959 में मथाई को इस्तीफा देना पड़ा जब उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, मथाई के पास बड़ी मात्रा में सीआईए का धन आता था एवं उनकी माँ के नाम बने मथाई ट्रस्ट में भी घोटाला सामने आया।

किसी भी नए उभरते देश के प्रधानमंत्री कार्यालय तक ही विदेशी जासूसों की पहुँच हो एवं निजी सचिव के रूप में परामर्श देने वाला व्यक्ति किसी अन्य ही देश के साथ निष्ठा रखता हो तो उससे क्या-क्या नुकसान हो सकता है, इसकी तो केवल कल्पना ही की जा सकती है… सम्भव है कि उस क्षति का खामियाज़ा भारत को अभी भी उठाना पड़ रहा हो। इतिहास पर जो दाग़ एक बार लग जाता है वो तो कभी मिटाए नहीं मिटता, भले ही सरकारें उसको कितना भी दबा लें, देर-सबेर सच तो सामने आ ही जाता है।