नई दिल्ली: 1977 में पारदर्शिता के लिए चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिज्म बनाने के लिए कहा। तब जाकर ईवीएम बनी। 6 अगस्त 1980 को आयोग ने राजनीतिक दलों को ईवीएम दिखाई। सभी पक्षों पर गौर करने के बाद सभी दलों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी।
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को ईवीएम बनाने की जिम्मेदारी मिली। सबसे पहले 1982 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर केरल में ईवीएम से वोटिंग हुई। फिर 1998 में आरपी एक्ट 1951 और चुनाव प्रक्रिया एक्ट 1961 में संशोधन किया गया। नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधानसभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया।
दिल्ली की छह विधानसभा सीटों पर भी इसका इस्तेमाल किया गया। फिर साल 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। यानी 24 साल लग गए ईवीएम को वोटिंग प्रक्रिया का हिस्सा बनाने में।
जीते तो जनता की जीत, हारे तो ईवीएम से छेड़छाड़: देश में चुनावों में मिली हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने का ट्रेंड चल पड़ा है। सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाने वाली भाजपा इस बार चुप है। पर चुनाव आयोग ने सभी शंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया है
हैकिंग का दावा: मिशिगन यूनिवर्सिटी ने भारतीय ईवीएम में छेड़छाड़ करने का वीडियो जारी किया था
2010 में मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमैन के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों ने इंटरनेट पर एक वीडियो अपलोड किया। भारतीय ईवीएम में चिप लगाकर स्मार्टफोन के जरिए हैक करते हुए दिखाया गया। चुनाव आयोग ने आरोपों को खारिज किया। बाद में इस टीम में शामिल भारतीय वैज्ञानिक हरि प्रसाद को ईवीएम चुराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
आयोग का दावा: दूसरे देशों की ईवीएम ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती है, उसे हैक किया जा सकता है
चुनाव आयोग का कहना है कि भारतीय ईवीएम की तुलना दूसरों देशों की ईवीएम से करना गलत है। क्योंकि दूसरे देशों में पर्सनल कम्प्यूटर वाले ईवीएम का इस्तेमाल होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती हैं। इसलिए उन्हें हैक किया जा सकता है। जबकि हमारी ईवीएम किसी भी नेटवर्क से कनेक्ट नहीं हो सकती। ही उसमें अलग से कोई इनपुट डाला जा सकता है।
विदेशों में ईवीएम बंद: पारदर्शी नहीं होने का हवाला देते हुए यूरोप-अमेरिका में ईवीएम पर रोक लगी है
- यूरोप और अमेरिका में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा चुकी है।
- नीदरलैंड भी पारदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए पाबंदी लगा चुका है।
- आयरलैंड ने 3 साल और करीब 350 करोड़ रुपए रिसर्च पर खर्च करने के बाद पारदर्शिता का हवाला देकर ईवीएम पर रोक लगा दी। इटली ने भी कहा कि इससे नतीजे बदले जा सकते हैं और वापस बैलट पर गए।
वोटिंग से पहले ईवीएम की पूरी जांच होती है
- सुप्रीमकोर्ट ने पारदर्शिता के लिए ईवीएम में तीसरी यूनिट VVPAT भी जोड़ी है।
- वोट देने के बाद एटीएम की तर्ज पर पर्ची निकलती है। यह अंकित होता है कि वोट किसे गया। इसे बैलेट बाक्स में सुरक्षित रख लिया जाता है। ये बॉक्स आयोग के पास होते हैं।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में पारदर्शिता के लिए इसे VVPAT तकनीक को जोड़ा जाएगा।
- पूरे गोवा, पंजाब की 20 और यूपी की 30 सीटों पर VVPAT के साथ चुनाव हुआ है। अब चुनाव आयोग पारदर्शिता को साबित करने के लिए इन पर्चियों की गिनती करा सकता है। अगर मामला कोर्ट में जाएगा तब भी इन पर्चियों की गिनती कराई जा सकती है। क्योंकि VVPAT को इसीलिए जोड़ा गया है ताकि विवाद होने पर पर्ची की गिनती कर विवाद को खत्म किया जा सके।
कैसे काम करती है ईवीएम
- कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट, जो आपस में 5 मीटर केबल से जुड़ी होती है।
- कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
- बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट में रखी होती है।
- कंट्रोल यूनिट का प्रभारी बैलेट बटन को दबाएगा।
- इसके बाद वोटर बैलेटिंग यूनिट पर अपने उम्मीदवार के सामने नीले बटन को दबाकर अपना वोट डालता है। लाइट के साथ बीप की आवाज आती है।
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