मोदी सरकार का आंकड़ा, बिहार में रहते हैं सबसे ज्यादा देशद्रोही, कश्मीर में हैं सबसे कम

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नई दिल्ली: देश में राजद्रोह के मामले कितने गैर जिम्मेदारी से दायर किए जाते हैं और कैसे पुलिस जब चाहे उनका इस्तेमाल करती रहती है इसका सबूत हैं ये आंकड़े। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार पिछले तीन साल में राजद्रोह के आरोप में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां बिहार में हुईं। जबकि कश्मीर में राजद्रोह के मामले सबसे कम दर्ज हुए।

आंकड़े बेहद रोचक हैं। 2016 में दिल्ली में राजद्रोह के आरोप में चार लोग गिरफ्तार किये गये। यानी कन्हैया के अलावा राजधानी में तीन और गिरफ्तारियां हुईं। इसी तरह पंजाब में 10, हरियाणा में 15 और झारखंड में 18 लोग गिरफ्तार किये गये।

ब्यूरो के मुताबिक बिहार में 2014 से 2016 के बीच तीन साल में 68 लोग गिरफ्तार किये गये। दूसरी तरफ, जम्मू-कश्मीर में जहां से अक्सर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने और ऐसी ही खबरें आती रहती हैं वहां सिर्फ एक केस दर्ज हुआ। ये केस भी 2015 में रजिस्टर हुआ, यानी 2014 और 2016 में कोई केस नहीं दर्ज हुआ।

ये है असली पेंच, जो जनता को नहीं पता

सब जानते हैं कि कन्हैया कुमार के खिलाफ केस उस वक्त के पुलिस कमिश्नर की अति सक्रियता का ही कमाल था। बाद में कन्हैया को निर्दोष साबित न होने देना भी एक राजनीतिक मजबूरी थी। बिहार में महागठबंधन वाली नीतीश कुमार की सरकार है और जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की महबूबा मुफ्ती की सरकार है। आखिर क्या पेंच है कि जम्मू कश्मीर में तीन साल में सिर्फ एक केस दर्ज होता है और बिहार में 68 लोग पकड़े जाते हैं?

झारखंड में नक्सल समस्या है और हरियाणा के मामले में बताया जा रहा है कि जाट आंदोलनकारियों के खिलाफ लगा था। बिहार में जो मामले दर्ज किये गये हैं वो आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के शासन (2014 और 2015) के हैं। खास बात ये है कि इन मामलों में 53 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और सिर्फ दो को सजा हो पाई।

लेकिन राजद्रोह के मामले में जम्मू कश्मीर का आखिरी पायदान पर होना सोचने को मजबूर करता है। हो सकता है वहां AFPSA लागू होने के कारण ऐसे केसों की कैटेगरी बदल जाती हो, लेकिन सिर्फ एक केस होना शायद ही किसी के गले उतर पाये।

कहीं ऐसा तो नहीं कि बिहार पुलिस भी दिल्ली पुलिस जैसी दिलचस्पी दिखा रही हो और ऐसे मामलों के जरिये विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा हो। वैसे दुनिया भर में देखा जाता है कि विरोधियों को कुचलने के लिए सरकारें ऐसे कड़े कानूनों का दुरुपयोग करती हैं। वैसे राजद्रोह के मामले में 53 में से सिर्फ दो को सजा हो पाना भी कुछ ऐसा ही इशारा करता है। हार्दिक पटेल को तो राजद्रोह के मामले में न सिर्फ जेल जाना पड़ा बल्कि गुजरात से बाहर लंबा वक्त भी गुजारना पड़ा।

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