याद है वो शायर जो खड़े-खड़े ग़ज़लें बनाता था और ऐसे पढ़ता था कि महफिलों में भूचाल आ जाते थे। जिसने शायद इस दुनिया के सबसे मुकम्मल और याद रह जाने वाले शेर कहे। हम बात कर रहे हैं उर्दू के सबसे मजबूत दस्तखतों में से एक मिर्ज़ा ग़ालिब की। जिनकी आज जयंती है। बहुत छोटी उम्र, यानी 12 साल की उम्र से ही उर्दू और फ़ारसी में लिखना शुरू कर देने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब के 10 शेर जो आज भी बेहद मशहूर हैंं।
जिनमें एक था, ‘ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए, इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है।’
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले…
निकलना ख़ुल्द से आदम का, सुनते आए थे लेकिन,
बहुत बेआबरू हो कर, तेरे कूचे से हम निकले…
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़, जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं, जिस क़ाफ़िर पे दम निकले…
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े-ग़ुफ़्तगू क्या है
न शोले में ये करिश्मा, न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़े-तुंद-ख़ू क्या है
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पे रौनक वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है, हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है…
27 दिसंबर, 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में जन्मे मिर्ज़ा ग़ालिब ने हज़ारों शेर कहे, जिन्हें भुला पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है… बताया जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवनयापन ईस्ट इंडिया कंपनी में सैन्याधिकारी रहे उनके चाचा की पेंशन से ही होता था, जो बेहद कम हुआ करती थी, सो, वह ताउम्र किल्लत में ही रहे, और उनका देहांत 15 फरवरी, 1869 को हुआ…नीचे दिए कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं कि क्या आपको इनके अलावा उनका कोई शेर या ग़ज़ल जो आपको याद हो…
देखें मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली की कुछ तस्वीरें…
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