मानव को संस्कारी बनाना ही सर्वोच्च मानव सेवा है-मुनि श्रमण यशविजय

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जिला संवाददाता भीलवाड़ा। मानव को संस्कारी बनाना ही सर्वोच्च मानव सेवा है, जो सिर्फ अपनी ही सोच में डूबा है वह पशु है, लेकिन जो अपने स्वजनों का, अपने समाज का एवं सारी सृष्टि का हित सोचता है वह मानव है। आर्यावर्त के सभी धर्म प्रजा में ईमानदारी, सदाचारी,दया-दान, राष्ट्रप्रेम जैसे संस्कारो को जन-जन में पनपने का सिंचन करते है। उक्त विचार महावीर भवन में विराजित पंन्यास जिनांग यशविजय के सुशिष्य मुनि श्रमण यशविजय ने धर्मसभा में व्यक्त किये। मुनि ने कहा कि राजा रघु के दरबार मे प्रतिवर्ष के बजट की चर्चा चल रही थी, कोई कहता था अधिक धनराशि विंकलांगो के उत्थान के लिए दी जाये, तो कोई पशुरक्षण, व्रद्ध आश्रम,दरिद्रता दूर करने, शिक्षण व्यवस्था, चिकित्सा सेवा में पूंजी निवेश का पक्षकार था। लेकिन अंत मे बुद्धि शील महामंत्रियों से विचार विमर्श करके राजा रघु ने सबसे अधिक पूँजी निवेश प्रजा को संस्कारित करने में लगा दिया। यदि संतान संस्कारी होगी तो व्रद्ध आश्रम,गौ शाला की जरूरत ही नही पड़ेगी, प्रजा में दया दान के संस्कार फैल गए तो कोई भी गरीब भूखा नही सोएगा। यदि खुराक में अभक्ष्य भक्षण के त्याग के संस्कार होंगे तो वेधकीय सेवा की भी बहुत कम जरूरत पड़ेगी। इस तरह यदि प्रजा ही संस्कारित बन जाएगी तो अपने आप सभी क्षेत्रो की उन्नति हो जायेगी। मुनि ने कहा कि भगवान महावीर ने पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात प्रतिदिन 6 घंटे तक देशना(उपदेश) देकर प्रजा को संस्कारी बनाने का कार्य किया , प्रजा में से दुराचार, व्यभिचार और अनाचार को दूर करने के महत्वपूर्ण काम किये।

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