आज 2 अक्टूबर है आइए आपको महात्मा गांधी के जीवन की कुछ उन पलों में ले चलते हैं जो शायद केवल गांधी के वारिसयों के पास ही संजोए रखें है। गांधी सेक्रेटरी के तौर पर काफ़ी सालों तक काम करने वाले, और उनके वंशजों में से एक कनु गांधी ने उनकी 2,000 से अधिक तस्वीरें ली थीं। कनु गांधी को उनके माता-पिता ने 20 साल की उम्र में गांधी की मदद करने को सेवाग्राम भेज दिया था।
वो मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन फिर उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी में दिलचस्पी पैदा हो गई। महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के बीच दर्जनों बार भूख-हड़ताल पर रहे।
गांधी के जीवन के अंतिम दशक में कई अहम घटनाएं और क्षण गुज़रे। कनु की तस्वीरों में उन सबकी कहानी क़ैद है इन तस्वीरों में गांधी कई भाव में दिखते हैं।
गहरे चिंतन में, तो कभी प्रसन्न, तो कभी चिंतित, तो कभी अपने समर्थकों के साथ। साल 1944 में पुणे के आगा़ ख़ा पैलेस के एक बिस्तर पर कस्तूरबा गांधी अचेत अवस्था में लेटी हुई हैं।
महात्मा गांधी भारत में दलितों की मौजूदा दशा के प्रति ख़ासे चिंतित रहा करते थे। उन्होंने 1945-46 के दौरान तीन महीने लंबी रेल यात्रा की और जगह-जगह जाकर धन जुटाया था। इसी संदर्भ में उन्होंने एक बार कहा था, “मैं बनिया हूं। मेरे लोभ का कोई अंत नहीं है।
कस्तूरबा का निष्प्राण शरीर पुणे के आग़ा खां पैलेस में गांधी की गोद में था। कुछ रिपोर्ट के अनुसार गांधी ने कहा था, “60 सालों का लंबा साहचर्य, अब मैं उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।”
ये विडंबना ही रही कि गांधी के साथ साए की तरह रहने वाले कनु उनके अंतिम पलों में उनके पास नहीं थे। कनु गांधी की मौत फ़रवरी 1986 में उत्तरी भारत में धार्मिक यात्रा के दौरान हार्ट अटैक से हो गई थी।