दिल मे करुणा और मैत्री के भाव रखे- साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा

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संवाददाता भीलवाड़ा। जब तक हमारे दिल मे करुणा मैत्री का भाव नही आएगा तब तक जीवन सार्थक होने वाला नही है। प्रभु महावीर ने छोटे से छोटे जीव को भी माफ किया है इसलिए अहिंसा को जैन धर्म मे सबसे बड़ा बताया गया है। जिसने करुणा, परोपकार को अपना लिया है उसका कल्याण होने में देर नही लगती है। क्षमा वो ही व्यक्ति दे सकता है या ले सकता है जो शूरवीर हो। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा ने धर्म सभा मे व्यक्त किये साध्वी चंदनबाला ने कहा कि शरीर को खुराक के लिए भोजन की आवश्यकता रहती है उसी तरह आत्मा को खुराक के लिए स्वाध्याय एवं भजनों की जरूरत रहती है। लंबे समय से चल रहे सुविपाक सूत्र का आज समापन हुआ , जिस तरह काया के साथ छाया रहती है उसी तरह आत्मा के साथ कर्म रहते है। मेवाड़ की धरा पर कई ऐसे तपस्वी संत हुए है जिन्होंने अभिग्रह धारण किया और उनका अभिग्रह पूरा हुआ। साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि हमे परोपकार का कोई एक काम जरूर करना चाहिए। भीतर में पलने वाले राग , द्वेष, मान, माया, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं को नियंत्रित रखना चाहिए, अन्यथा यही शत्रु हमारे लिए चिंता, तनाव और अवसाद के कारण बनते है। हमे ऐसे नैतिक और परोपकारी कार्य करने चाहिए, जो हमे मरकर भी अमर बनाये। तपस्या के क्रम में तपाचार्य साध्वी जयमाला के भी गुप्त तपस्या चल रही है एवं 11 उपवास के प्रेम देवी रांका ने प्रत्याख्यान लिए। बाहर से आये श्री संघो का स्थानीय संघ ने स्वागत किया।

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