जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलेगा, जानिए कर्पूरी ठाकुर के 8 फैसले जो देश में मिसाल बने

1904 में सिर्फ एक व्यक्ति मैट्रिक पास था। 1934 में 2 और 1940 में 5 लोग मैट्रिक पास हुए थे। इनमें एक कर्पूरी ठाकुर थे।

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Karpoori Thakur Bharat Ratna: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी 100वीं जयंती से एक दिन पहले 23 जनवरी को यह घोषणा की। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार डिप्टी सीएम रहे। कर्पूरी ठाकुर को बिहार के सामाजिक न्याय का मसीहा माना जाता है।

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भारत रत्न की घोषणा के बाद पीएम मोदी ने X पर पोस्ट करते हुए लिखा ‘मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है, वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं।’

देश में सबसे पहले उन्होंने पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया। पढ़ाई में अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त किया। इसके साथ ही उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई को भी मुफ्त कर दिया। उन्होंने बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा भी दिया। पिछड़े ही नहीं, अगड़ों को भी 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया।

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कर्पूरी ठाकुर के वे फैसले जो देश में मिसाल बने

  • देश में पहली बार OBC आरक्षण दिया था।
  • 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू किया। इसके कारण पिछड़ों को नौकरियों में आरक्षण मिला।
  • देश के पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की थी।
  • बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया था।
  • 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की थी।
  • गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद किया था।
  • मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने फोर्थक्लास वर्कर पर लिफ्ट का यूजन करने पर रोक हटाई।
  • आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों और महिलाओं लिए आरक्षण का दिया।

आजादी के बाद पहला चुनाव जीते और फिर जीतते रहे
आजादी के चंद महीने बाद कर्पूरी के नेतृत्व में किसानों की संस्था हिंद किसान पंचायत पूरे बिहार में प्रसिद्ध हो गई। 1952 में पहला आम चुनाव हुआ। लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए। समस्तीपुर के ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बने। वे साइकिल और पैदल प्रचार करने लगे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। तब से 1988 तक वे लगातार बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे।

पहली बार मंत्री बनते ही आठवीं तक शिक्षा मुफ्त की
सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन में कर्पूरी के आदर्श जेपी, लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव थे। कर्पूरी के पहले समाजवादी आंदोलन को खाद उच्च वर्ग से ही मिलती थी। कर्पूरी ने पूरे आंदोलन को उन लोगों के बीच ही रोप दिया जिनके बूते समाजवादी आंदोलन हरा होता था। वह 1970 में जब सरकार में मंत्री बने तो उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त कर दी। उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया। पांच एकड़ तक की जमीन पर मालगुजारी खत्म कर दी।

OBC के लिए आरक्षण देने वाला पहला राज्य बना बिहार
1970 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार महज 163 दिन ही चली। 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना। 1978 में बतौर सीएम कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में कई स्तरों पर लागू होने वाला आरक्षण लागू किया। इस कोटा व्यवस्था में कुल मिलाकर 26% आरक्षण दिया गया। इनमें 12% आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBCs के लिए था, OBCs में शामिल आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी EBCs को 12% आरक्षण दिया गया। वहीं 3% आरक्षण महिलाओं को और सवर्ण जातियों में शामिल आर्थिक रूप से पिछड़ों को 3% आरक्षण भी इस व्यवस्था में शामिल था।

जब मंच से पर्ची लिखकर पूछा कमल को अंग्रेजी में क्या कहते हैं
एक बार मंच से कर्पूरी ठाकुर भाषण दे रहे थे। इस दौरान बोफोर्स घोटाले पर राजीव गांधी के स्विस बैंक के खाते का जिक्र कर रहे थे। भाषण के दौरान ही उन्होंने धीरे से एक पर्ची पर लिखकर पूछा कि ‘कमल’ को अंग्रेजी में क्या कहते हैं। लोकदल के तत्कालीन जिला महासचिव हलधर प्रसाद ने उस स्लिप पर ‘लोटस’ लिख कर कर्पूरी की ओर बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘राजीव मने कमल, और कमल को अंग्रेजी में लोटस बोलते हैं। इसी नाम से स्विस बैंक में खाता है राजीव गांधी का।’

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कर्पूरी ठाकुर के बारें में:
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में हुआ। उनका निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ। समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में 1904 में सिर्फ एक व्यक्ति मैट्रिक पास था। 1934 में 2 और 1940 में 5 लोग मैट्रिक पास हुए थे। इनमें एक कर्पूरी ठाकुर थे। वे ऑस्ट्रिया जाने वाले डेलीगेशन में चुने गए। उनके पास कोट नहीं था। एक दोस्त से मांगा। कोट फटा था। कर्पूरी जी वही कोट पहनकर चले गए। वहां युगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है। उन्हें नया कोट गिफ्ट किया।​​​​​​

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