नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार को पत्रकारों की मान्यता का संशोधित गाइडलाइन जारी किया। इसमें ‘फेक न्यूज’ से निपटने के लिए कई नए प्रावधानों को शामिल किया गया है। इसमें पत्रकारों की मान्यता खत्म करने जैसे कड़े प्रावधान भी शामिल हैं। इसको लेकर मीडिया जगत में विरोध तेज हो गया है। सोशल मीडिया पर बढ़ते विरोध को देखते हुए ऐसा लगता है एकबार फिर जल्द सरकार और मीडिया आमने-सामने आएगी।
मंत्रालय द्वारा जारी बयान में इस बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है कि किस तरह से किसी फेक न्यूज के बारे में शिकायत की जांच की जाएगी और किसके द्वारा की जाएगी। बयान के मुताबिक, ‘अब फेक न्यूज के बारे में किसी तरह की शिकायत मिलने पर यदि वह प्रिंट मीडिया का हुआ तो उसे प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया (PCI) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हुआ तो न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) को भेजा जाएगा। ये संस्थाएं यह तय करेंगी कि न्यूज फेक है या नहीं।’
क्या होगी सजा-
यदि एजेंसियां (PCI या NBA) इस बात की पुष्टि कर देती हैं प्रकाशित या प्रसारित समाचार फेक यानी फर्जी था, तो ऐसे फेक न्यूज को तैयार या प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार पत्रकारों की मान्यता पहली गलती पर छह माह के लिए निलंबित कर दी जाएगी। दूसरी गलती पर एक साल के लिए निलंबित और तीसरी गलती पर स्थायी रूप से ऐसे पत्रकारों की मान्यता खत्म कर दी जाएगी।’ बता दें ये गाइडलाइन वेब पोर्टल्स पर लागू नहीं होगी।
कितने दिनों होगी जांच पूरी-
यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसी शिकायत मिलने पर किसी पत्रकार को ज्यादा परेशानी न हो, शिकायत की प्रक्रिया को दोनों एजेंसियों के द्वारा 15 दिन के भीतर निपटाने की व्यवस्था होगी।
स्मृति ईरानी के ट्वीट से बढ़ा विरोध-
सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट पर एक प्रतिक्रिया में कहा है, ‘यह बताना उचित होगा कि फेक न्यूज के मामले पीसीआई और एनबीए के द्वारा तय किए जाएंगे, दोनों एजेंसियां भारत सरकार के द्वारा रेगुलेट या ऑपरेट नहीं की जाती हैं।’
Committee comprising of senior officers , reps of PCI, NBA, IBF set up for regulations/ policy for digital broadcasting & News portals. Till such time the regulation is not implemented rules cannot be enforced for news portals by industry.
— Smriti Z Irani (@smritiirani) April 2, 2018
इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गई है। राजनीतिक सलाहकार और कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने ट्वीट किया है, ‘मैं फेक न्यूज पर अंकुश के प्रयास की सराहना करता हूं, लेकिन मेरे मन में कई सवाल उठ रहे हैं…
1. क्या गारंटी है कि इस नियम का इस्तेमाल ईमानदार पत्रकारों को प्रताड़ित करने के लिए नहीं किया जाएगा?
2. यह कौन तय करेगा कि क्या फेक न्यूज है?
3. क्या यह संभव नहीं है कि जानबूझ कर किसी के खिलाफ शिकायत की जाए, ताकि जांच जारी रहने तक उसकी मान्यता निलंबित हो जाए?
4. इसकी क्या गारंटी है कि ऐसे गाइडलाइन से फेक न्यूज पर रोक लगेगी, कहीं यह सही पत्रकारों को सत्ता के खिलाफ असहज खबरें जारी करने से रोकने की कोशशि तो नहीं?
I appreciate the attempt to control fake news but few questions for my understanding:
1.What is guarantee that these rules will not be misused to harass honest reporters?
2.Who is going to decide what constitutes fake news ?
1/2— Ahmed Patel (@ahmedpatel) April 2, 2018
पत्रकारों का सोशल मीडिया पर बढ़ा विरोध-
पत्रकार शेखर गुप्ता सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए ट्वीट करते हैं, ‘ऐसी गलती न करें। यह मुख्यधारा की मीडिया पर असाधारण हमला है. यह वैसा ही है जैसा राजीव गांधी का एंटी डेफमेशन बिल था। समूची मीडिया को अपने मतभेद भुलाकर इसका विरोध करना चाहिए।’ इस ट्वीट के समर्थन में कई पत्रकारों ने रिट्वीट किया साथ ही अपना विरोध भी जताया।
With its order today, government makes it clear that it only wants to penalise those who are accredited, i.e “Mainstream media”. The I&B ministry’s “Fake News” threat doesn’t extend to those websites that openly flout journalistic ethics, some q often quoted by Ministers. pic.twitter.com/SZ8v2AcLEH
— Suhasini Haidar (@suhasinih) April 2, 2018
Make no mistake: this is a breathtaking assault on mainstream media. It’s a moment like Rajiv Gandhi’s anti-defamation bill. All media shd bury their differences and resist this. https://t.co/pyvgymhIkF
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) April 2, 2018
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