जलियांवाला बाग कांड: क्यों दी गई जनरल डायर को मानद ‘सिख’ की उपाधि

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13 अप्रैल बैसाखी का दिन। आज के ही दिन लगभग से 98 साल पहले जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। इस गोलीकांड में सैकड़ों बेकसूर लोग मारे गए और इन सबके पीछे अगर किसी को याद किया जाता है तो वह है ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर।

ब्रिटिश इतिहासकार रिचर्ड केवेंडिश के अनुसार इतने बड़े कांड के बाद डायर को स्वर्ण मंदिर के बुजुर्गों ने ही ‘मानद’ सिख की उपाधि दी थी। हालांकि हमारे पास इसके मुख्ता सबूत या तस्वीरें तो नहीं है।

पहले विश्वयुद्ध के वह 107 दिन जिनमें ब्रिटेन के लिए लड़ते हुए लगभग साठ हजार भारतीयों की जान चली गई. 11 नवंबर 1918 को विश्वयुद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन भारत में कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ और भारतीय आजादी के लिए दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया.

जनरल डायर को मानद उपाधि

इतिहास बताता है कि अप्रैल 1919 के पहले हफ्ते में अमृतसर में भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं की गिरफ्तारी की खबर से दंगे भड़क उठे। लोगों में ब्रिटिश हुकूमत के लिए कितना गुस्सा था इसका अंदाजा इन दंगों में हुई तोड़-फोड़ से साफ पता चलता है।

कुछ यूरोपियन भी इसमें हताहत हुए, बैंको को लूटा गया, कई सरकारी इमारतों को नुकसान  पहुंचाई गयी। लेकिन बात तब बहुत बिगड़ गई जब इसमें एक ईसाई मिशनरी की ब्रिटिश महिला की मौत हो गयी।

इतिहास का यह वृतांत कमोबेश हर जगह मिल जाता है लेकिन इस घटनाक्रम से जुडी कई बातें रिचर्ड केवेन्डिश अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं।

मिसाल के लिए जनरल डायर का वह आदेश जिसमें कहा गया कि, ‘जिस जगह पर ब्रिटिश मिशनरी की महिला (मार्सेला शेरवुड) की हत्या हुई थी उस रास्ते पर से जो भी भारतीय गुजरेगा उसे चिन्हित दूरी (लगभग 180 मीटर) तक पेट के बल लेटकर  घुटनों और कोहनियों के सहारे वह इलाका पार करना पड़ेगा।’

एक सप्ताह तक लागू इस आदेश की मियाद सुबह 6 बजे से रात आठ बजे तक रखी गयी थी। रिचर्ड केवेन्डिश लिखते हैं कि डायर के इस कार्य की तारीफ पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर माइकल ओ.डायर ने भी की।

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यही नहीं जनरल डायर को स्वर्ण-मंदिर के बुजुर्गों ने सिख की मानद उपाधि से भी नवाजा। रिचर्ड केवेन्डिश कहते हैं कि सिख परंपरा के खिलाफ जनरल डायर को दाढ़ी न बढ़ाने की छूट दी गयी। डायर ने भी सिखों के धार्मिक अनुशासन का सम्मान करते हुए करते हुए साल में एक सिगरेट कम पीने का वादा किया।

रिचर्ड केवेन्डिश ने जो नहीं लिखा वह ये कि यह वो समय था जब ब्रिटिश हुकूमत की निरंकुशता अपनी चरम सीमा पर थी। इतनी बड़ी त्रासदी के बाद जनरल डायर जैसे जालिम का अभिनंदन साफ जाहिर करता है कि हुकूमत का भय लोगों में कितना था।

ईसाई मिशनरी को महत्व

उन दिनों ब्रिटिश-हुकूमत, ईसाई मिशनरी को बड़ा महत्त्व देती थी। इन मिशनरियों को हर तरह की सुविधा और सुरक्षा मुहैय्या की जाती थी। माना जाता था कि भारतियों में ईसाइयत को बढ़ावा दरअसल हुकूमत की नींव को मजबूत कर रहा है। ऐसे में एक मिशनरी महिला का मर जाना बड़ी बात थी।

बस फिर क्या था आनन-फानन में जनरल डायर के नेतृत्व में 90 भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी स्थिति बहाल करने के लिए अमृतसर पहुंची। डायर ने तुरंत प्रभाव से सभी सार्वजनिक बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया। घोषणा कर दी गयी कि हालात अगर काबू में नहीं आये और अगर जरूरत हुई तो बल प्रयोग भी किया जायगा।

इतिहासकार रिचर्ड केवेन्डिश लिखते हैं कि इसके बावजूद सिखों के पवित्र-स्थान ‘स्वर्ण मंदिर’ के करीब जलियांवाला के नाम से मशहूर बाग में बैसाखी वाले दिन हजारों लोग उनके इस फैसले के विरोध के लिए जमा हुए।

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बाग चारों ओर दीवारों से घिरा था…जनरल डायर ने 90 गोरखा और भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी बाग के अंदर भेजी और बिना किसी चेतावनी के उन्होंने लगभग 10 से 15 मिनट तक एक घबरायी और फंसी हुई भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां बरसायीं।

एक आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस हमले में 379 लोग मारे गए और 1200 के आसपास लोग घायल हुए। हालांकि अन्य अनुमानों में मारे गए लोगों की तादाद हजारों में दी गई है। कई लोग तो गोलियों से बचने के लिए बाग में मौजूद एक कुएं में कूद पड़े और मौत के मुंह में चले गए।

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करीब आधे घंटे के इस गोलीकांड के बाद जनरल डायर जख्मियों को उनके हाल पर छोड़कर अपनी टुकड़ी समेत वहां से चले गये।

इस घटना के बाद भले ही पंजाब के गवर्नर ने जनरल डायर की तारीफ की हो लेकिन ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स में बोलते हुए विंस्टन चर्चिल ने इसे ‘एक असाधारण राक्षसी घटना’ के रूप में याद किया। जिसके बाद डायर को भारतीय-सेना से इस काण्ड के जिम्मेदार के रूप में इस्तीफा देना पड़ा।

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