संवाददाता भीलवाड़ा। आसींद जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है, जैन आगम में हर चीज को भगवान महावीर ने प्रमाण के साथ बताई है। जो वैज्ञानिक आज जिस पर कार्य कर रहे है उसे 2800 वर्ष पूर्व ही आगम में बता दिया है। धर्म को जीवन के आचरण व व्यवहार में लाने पर हमें सच्चा सुख मिल सकता है। जिस परिवार में धार्मिक संस्कार होते है वह परिवार सदैव सुखी रहता है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि जो चीज झुक कर प्राप्त कर सकते है वो चीज अभिमान से प्राप्त नही की जा सकती है। हम किसी को वंदना या किसी अच्छे कार्य की अनुमोदना नही कर सकते है तो हमे उसकी निंदा करने का भी अधिकार नही है। अणुव्रतधारी व्यक्ति को किसी की बुराई या दुर्गण नही देखने चाहिए। उस व्यक्ति में क्या अच्छाइयां है उस पर हमारी नजर होनी चाहिए। सभी धर्मों में पूजा पाठ करते समय मुँह पर पट्टिका बांधकर पूजा या साधना की जाती है। जैन धर्म मे दो प्रकार की सामायिक होती है भाव सामायिक और द्रव्य सामायिक। साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि वर्तमान में सबसे बड़ा तीर्थ माता-पिता की सेवा करना और उनकी आज्ञा का अनुसरण करना है। जिनवाणी सुनकर उसे अमल में लाने से जीवन सार्थक हो जाता है। जिनवाणी सुनने के बाद भी अगर राग द्वेष में बदलाव नही आया तो उसका कल्याण होने वाला नही है। तपस्वी बहिन महिला मंडल की मंत्री सुधा रांका के 11 उपवास की तपस्या पर पीहर पक्ष द्वारा 15 उपवास के प्रत्याख्यान लेकर माला एवं चूंदड़ी से स्वागत किया गया और भी कई लोगो ने तपस्या के प्रत्याख्यान लेकर तपस्वी बहिन का सम्मान किया। इस अवसर पर प्रगति रांका, आयुषी पीपाड़ा, स्वीटी पीपाड़ा, प्रकाश चौधरी, भँवर लाल कांठेड़, नीलेश खाब्या, राजस्थान जैन कांफ्रेंस की मंत्री मधु लोढ़ा, ताराचंद रांका, निकिता मेहता ने अपने विचार रखे। साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा, साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने गीतिका प्रस्तुत कर तपस्या की अनुमोदना की। तपस्या की अनुमोदना करने के लिए बाहर से कई स्थानों से श्रावक -श्राविकाएं उपस्थित हुई जिनका संघ की और स्वागत किया गया।
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