भारत में है दुनिया का दूसरा बरमूडा, ले चुका है कई जान..

यूएस डिफेन्स विभाग के एक बयान के अनुसार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान करीब 400 एयरमैनों ने इस रूट पर ही हवाई हादसों में कई जानेे गई।

0
505

नई दिल्ली: आसमान और समुद्र में अजीबो-गरीब घटनाओं के लिए मशहूर अटलांटिक महासागर का एक हिस्सा जिसे ‘बरमूडा त्रिकोण’ या ‘शैतानी त्रिभुज’ कहा जाता है। अब ऐसा ही कुछ भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के संर्दभ में भी कहा जाने लगा है। कुछ लोग तो अब इसे दुनिया का दूसरा बरमूडा भी कहने लगे हैं जहां उड़ान भरना एक बहुत बड़ा जोखिम बनता जा रहा है।

यूएस डिफेन्स विभाग के एक बयान के अनुसार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान करीब 400 एयरमैनों ने इस रूट पर ही हवाई हादसों में अपनी जाने गवाई। पिछले कुछ वर्षों में पूरे अरुणाचल प्रदेश के इलाकों पर हवाई हादसों में 100 से भी अधिक लोग अपने जान गवाएं हैं। जानकार बताते हैं की यहाँ का मौसम इन हादसों का सबसे बड़ा वजह रहा है।

जानकारों के मुताबिक….

  • अप्रत्याशित मौसम जो कभी भी अपना रुख बदल लेता है
  • अचानक ही हवाई रूट पर जीरो विजबिलिटी हो जाना
  • अचानक कुछ वक़्त के लिए आंधी जैसे हालात बनना
  • यह आंधी छोटे विमान, हेलिकॉप्टर को दूर धकेल देते हैं

हादसे के समय इस से पहले कि पाइलट कुछ समझ पाए इन तमाम कारणों के कारण हवाई हादसा हो जाता है।

अबतक अरुणाचल के दुर्गम इलाकों में हुए हवाई हादसे–

वर्ष 1997- तवांग से 40 किलोमीटर की दूरी पर भारतीय वायु सेना का चीताह हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त, 4 की मौत
वर्ष 2001- सेसा के पास हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त, 5 लोगों की मौत
वर्ष 2001- बोमडीला के पास पवनहंस हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त, 5 की मौत
वर्ष 2010- 19 अप्रैल पवन हंस का हेलिकॉप्टर तवांग मोनेस्ट्री के पास दुर्घटनाग्रस्त।17 लोगों की मौत 6 घायल
वर्ष 2010- 6 अगस्त, नामसाई के पास पवनहंस हेलिकॉप्टर का दरवाजा उड़ान के बीच ही खुल गया, को-पायलट की मौत 10000 फीट नीचे गिरने से हो गई।
वर्ष 2010- नवंबर का महिना IAF का MI-17 हेलिकॉप्टर बोमडीला के पास भारत दुर्घटनाग्रस्त, 12 सेना और वायु सेना के अफसरों की मौत
वर्ष 2010- 19 अप्रैल पवनहंस का MI-17 हेलिकॉप्टर तवांग एयरफील्ड के पास ही दुर्घटनाग्रस्त,19 लोगों की मौत
वर्ष 2011- 29 अप्रैल पवनहंस का AS350 B-3 हेलिकॉप्टर तवांग के लगुथांग में दुर्घटनाग्रस्त, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू समेत 4 लोगों की मौत
वर्ष 2011- जून महीने में IAF AN-32 मेचुका से जोरहाट के रास्ते में विमान दुर्घटनाग्रस्त, 13 लोगों की मौत
वर्ष 2015- 4 अगस्त पवन हंस का हेलीकाप्टर तिराप के जंगलो में दुर्घटनाग्रस्त। तिराप जिला के उपायुक्त कमलेश जोशी के साथ 2 पायलटओं की मौत

इन्ही हादसों के बाद पवनहंस सेवा लगातार सवालों के घेरे में हैं। लोग अब पवनहंस को ‘‘ फ्लाइंग कॉफिन ’’ यानी की उड़ता हुआ ताबूत कह कर पुकारते हैं। इन आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए पता चलता है कि सबसे अधिक मानसून के महीने यानी की अप्रैल से अगस्त महीने के बीच यह हवाई दुर्घटनाएं घटी हैं।

बरमूडा ट्राएंगल का ये है राज…

बरमूडा ट्राएंगल, नार्थ अटलांटिक महासागर का वह हिस्सा जिसे ‘डेविल्स  ट्राएंगल’ यानी ‘शैतानी त्रिभुज’ भी कहा जाता है। आखिरकार इस ‘शैतानी त्रिभुज’ की पहेली को सुलझा लिया गया है। साइंस चैनल ‘What on Earth?’ पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अजीब तरह के बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं बरमूडा ट्राएंगल के आस पास देखने को मिलती है।

इन बादलों को Hexagonal clouds नाम दिया गया है जो हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के जितनी शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वो कभी नहीं मिलते। 500,000 स्क्वायर किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। कोलराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और मीट्रियोलोजिस्ट Dr Steve Miller ने भी इस दावे का समर्थन किया है। उन्होंने भी दावा किया है कि ये बादल अपने आप ही पैदा होते हैं और उन्हें ट्रैक कर पाना भी बेहद मुश्किल है।

बरमूडा ट्राएंगल करीब 440,000 मील तक के समुद्री क्षेत्र में फैला हुआ है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के क्षेत्रों को मिला दे तो भी इसकी तुलना में यह क्षेत्र अधिक विस्तृत होगा। यह त्रिकोण निश्चित रूप से एक ही जगह स्थिर नहीं है। इसका प्रभाव त्रिकोण क्षेत्र के बाहर भी महसूस किया जा सकता है।

कोलंबस ने सबसे पहले इसे देखा

बरमूडा ट्राएंगल के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस ही थे। कोलंबस ही वह पहले शख्स थे जिनका सामना बरमूडा ट्रायएंगल से हुआ था। उन्होंने अपनी पत्रिकाओं में इस त्रिकोण में होने वाली गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि जैसे ही वह बरमूडा त्रिकोण के पास पहुंचे, उनके कम्पास (दिशा बताने वाला यंत्र) ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद क्रिस्टोफर कोलंबस को आसमान में एक रहस्यमयी आग का गोला दिखाई दिया, जो सीधा जाकर समुद्र में गिर गया।

नीचे दिए लिंक को किल्क कर अन्य खबरें पढ़ें:

(खबर कैसी लगी बताएं जरूर। आप हमें फेसबुकट्विटर और यूट्यूब पर फॉलो भी कर सकते हैं)