अमित शाह से मिले 36 सांसद, बोले- नकदी की समस्‍या दूर करें

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दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले के बाद नकदी की कमी ने भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों के नेताओं को परेशान कर रखा है। दरअसल समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने भाजपा के छह सांसदों और आरएसएस के एक वरिष्‍ठ नेता से इस बारे में बात की तो सामने आया कि पार्टी के लोग नकदी की कमी से चिंतित है। उनका मानना है कि इससे साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कुछ सांसदों ने कहा कि उन्‍होंने सोचा था कि मोदी का फैसला अच्‍छा है। लेकिन उसको लागू करने के तरीके में गडबड़ी हुई है और इससे नाराजगी बढ़ी है।

केंद्रीय वित्‍त राज्‍य मंत्री संतोष गंगवार ने बताया, ”इसमें कोई शक नहीं कि मतदाताओं को यह समझाना मुश्किल है कि सब कुछ ठीक होगा। जो भी उम्‍मीदवार चुनाव लड़ेगा वह नर्वस है क्‍योंकि उनको लगता है कि लोग भाजपा को शायद वोट ना दें। तनाव है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता।” उत्‍तर प्रदेश में भाजपा के 71 सांसद हैं। इनमें से 28 ने भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित‍ शाह और वित्‍त मंत्रालय से नकदी की समस्‍या दूर करने को कहा है।

पार्टी के प्रवक्‍ता जीवीएल नरसिम्‍हाराव हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे आगे बढ़ने की बात करते हैं। उन्‍होंने बताया कि अस्‍थाई समस्‍याओं के बावजूद प्रधानमंत्री को अपार सहयोग मिल रहा है। पार्टी कैडर इससे उत्‍साहित है कि आगामी चुनावों में जीत मिलेगी। RSS के वरिष्‍ठ नेता ने बताया कि उन्‍होंने नोटबंदी का कदम उठाने से पहले मोदी से बात की थी और सलाह दी थी कि इतनी बड़ी प्रकिया के लिए जमीन तैयार करनी चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री बिना इसके आगे बढ़ गए और इस फैसले की सफलता और असफलता के जिम्‍मेदार वे ही होंगे।

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उत्‍तर प्रदेश के डुमरियागंज से भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल का कहना है, ”स्थिति विकट है और हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते। यह प्रत्‍येक भाजपा सांसद के लिए चुनौती है कि वह इसका सामना करें लेकिन बैंकों में पैसे ना होने पर हम कुछ नहीं कर सकते।”

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पिछले सप्‍ताह लगभग तीन दर्जन भाजपा सांसदों ने अमित शाह से मुलाकात की थी। इनमें से ज्‍यादातर सांसद उन राज्‍यों से थे जहां पर विधानसभा के चुनाव होने हैं। उन्‍होंने जल्‍द से जल्‍द नकदी भेजने की मांग की। सांसदों ने शाह से कहा कि नकदी की भारी कमी है और स्‍थानीय कारोबार संकट में है। उनमें साहस नहीं है कि ऐसे समय में जब लोग लाइनों में खड़े हैं तब वे चुनावी रैलियां करें।