नई दिल्ली: 15 अगस्त की सुबह पूरा देश 70 साल की आजादी के जश्न में डूबा होगा। लाल किले से फिर कोई नेता भाषण देगा। वादे करेंगा और पूरा देश उसे आशा भरी नजरों से देखेंगा। सरकार की नीयत चाहें कितनी भी अच्छी क्यों ना हो देश के कुछ मौजूदा हलात आज भी हमसे ये ही पूछती है कि क्या हम वाकिय आजाद है? हमारा देश भारत, सारे जहां से अच्छा भारत, भारत जिसके लिए हमारे दिल में सम्मान है, उस भारत को आजाद हुए 70 साल हो गए हैं इस दौरान भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की, कई ऐसे मौके आए जब देश का सिर गर्व से उठ गया, इन 70 सालों के दौरान भारत देखते ही देखते ही देखते कितना बदल गया, कितना कुछ घट गया।
अब जरा गौर फरमाइएगा इन आंकड़ों पर जो हम दिखाने जा रहे है। इसके बाद सोचना कि आप कितने आजाद है या फिर कभी हुए ही नहीं। आजादी के 70 साल बाद भी…
किसान मरता है उसकी समस्या का कोई हल नहीं..
किसान आज भी आजाद नहीं है। उसकी मौत का कारण वही जमीन बनती है जिस पर अनाज उगाकर पूरे देश का पेट भरता है। फिर भी देश का इतना बड़ा सेवक मारा-मारा फिरता है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री किसानों की आय दोगुनी करने की बात कर चुके हैं लेकिन यह होगा कैसा, इसकी रूप-रेखा साफ साफ दिखती नहीं। पहले तो यही साफ नहीं है कि किसानों की आत्महत्या कैसे रुकेगी? यह जानकर आपको रोना आ जाएगा कि 195 से 2016 तक यानी 21 साल में 3 लाख 18 हजार से ज्यादा किसान खुदकुशी कर चुके हैं। यानी 41 किसान हर रोज। इनमें से 70 फीसदी खुदकुशी के पीछे का कारण कर्ज है। इसीलिए सवाल है कि खाद्य सुरक्षा की गारंटी सरकार कब देगी?
क्या कभी लागू होगी धारा 377?
हमें आजादी मिली हुई है लेकिन फिर भी हम आजाद नहीं है। इसका एक उदाहरण धारा 377 है। सुप्रीम कोर्ट होमोसेक्सुअल्टी को अपने एक फैसले में क्रिमिनल एक्ट करार दे चुका है,और इसी फैसले के खिलाफ क्यूरिटिव पिटिशन दाखिल की गई थी। यह मामला बेहद चर्चित रहा है और विवाद का विषय भी रहा है। बता दें इसका विरोध किसी खास जाति, वर्ग या धर्म के लोग कर रहे हैं बल्कि हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई सभी धर्मों के नेताओं ने न सिर्फ समलैंगिकता को एक गंभीर खतरा माना है, बल्कि भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक और सामाजिक मूल्यों को नष्ट कर देने वाला भी बताया है। आईपीसी की धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्क स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो, वह आजीवन कारावास या 10 वर्ष और जुर्माने से भी दंडित हो सकता है। आपको बता दें सुप्रीम कोर्ट ने कहा जबतक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
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महिला सुरक्षा..बस इतना ही काफी है समझने को
वो महिला जो घर बनाती है..वो महिला जो पूजनीय योग्य है..लेकिन 70 साल की आजादी में आज उस महिला की स्थिति अबला नारी जैसी है। आज ये हमारे सामने बड़ा सवाल है। स्वतंत्र देश में हमारी आधी आबादी यानी महिलायें कितनी स्वतंत्र हुई है। खास कर तब जब प्रधानमंत्री को भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कभी भ्रूण हत्या के खिलाफ बोलना पड़ता है। ये स्थिति तब भी आती है जब मंदिर मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर समाज में तनातनी हो जाती है और न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ता है। आपको शायद हो कि हर 1 मिनट में महिलाओं के साथ लगभग 6-7 अपराध होते है।
आज भी हम रात 9बजे के बाद लड़कियों को बाहर नही निकलने दे सकते लड़के चाहे पूरी रात बाहर रहें, क्योंकि असुरक्षा की भावना इतनी है कि निर्भया जैसी दुर्घटना होने की आशंका से हर बाप डरा हुआ है। ये घटनायें जितना बड़ा और बुरा सपना है उससे भी बड़ी है इन घटनाओं के बाद होने वाली राजनीति। समाज में अगर सुरक्षा सरकार सुनिश्चित कर दे तो शायद अलग से कुछ प्रयास करने की ज़रूरत नहीं।
जाति-धर्म के नाम पर हिंसा
सहारनपुर नाम तो सुना है हां वही जहां मई माह में तीसरी बार दंगे भड़के थे। दलितों और राजपूतों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें सात लोग घायल हो गए जिनमें से बाद में एक व्यक्ति की मौत हो गई। एक महीने के अंदर सहारनपुर में यह हिंसा की तीसरी घटना है। पिछले दिनों सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में डॉ आंबेडकर की मूर्ति लगाने को लेकर विवाद हुआ था। दलितों का आरोप है कि राजपूतों ने मूर्ति नहीं लगाने दी। बाद में जब राजपूत महाराणा प्रताप जयंती पर जुलूस निकल रहे थे तो दलितों ने उसका विरोध किया था। बता दें पिछले साल से 17% बढ़े है जातिय हिंसक मामले।
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70 साल बाद भी नौकरी के लिए तरसता युवा:
विकास और आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में रोजगार का परिदृश्य और भविष्य धुंधला ही नजर आ रहा है। 2015-16 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बढ़ कर पांच फीसदी तक पहुंच गई जो बीते पांच सालों के दौरान सबसे ज्यादा है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते चार वर्षों से रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां गायब हो रही हैं।यह दर अगर जारी रही तो वर्ष 2050 तक देश से 70 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी।
70 साल बाद भी नहीं मिटी भूखमरी:
दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। देश के सामने गरीबी, कुपोषण और पर्यावरण में होने वाले बदलाव सबसे बड़ी चुनौती हैं। इससे निपटने के लिए हर स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। भारत में भूख की समस्या चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है। एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला है। रिपोर्ट में लिखा गया है, भारत में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और ग्रामीण समुदाय पर अत्यधिक कुपोषण का बोझ है। कुपोषण देश को दीमक की तरह खाए जा रहा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 22 करोड़ 46 लाख लोग कुपोषण का शिकार हैं। विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इसमें करीब 80 फीसदी लोग विकासशील देशों में रहेंगे।
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शिक्षा में पिछड़ गए:
भारत में अभिभावक अपने बच्चे की शिक्षा पर प्राइमरी से लेकर ग्रेजुएट डिग्री तक औसतन 18,909 डॉलर (करीब 12.22 लाख रुपये) खर्च करते हैं। यह वैश्विक स्तर पर औसत खर्च 44,221 डॉलर (करीब 28.40 लाख) के मुकाबले काफी कम है. इसमें बच्चे की शिक्षा की पूरी लागत शामिल हैं। एचएसबीसी के एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है।15 देशों से जुड़े इस सर्वे में भारत का स्थान 13वां हैं। उसके पीछे केवल मिस्र और फ्रांस हैं।
इसके अलावा मुद्दे कई है लेकिन नए प्रोजेक्ट है तो उन्हें अपनी जगह बनाने में समय लगेंगा। इसलिए हम उन्हें यहां नहीं गिन रहे। हमने केवल उन्हें मुद्दों का जिक्र किया है। जो वाकिय ही में सोचने वाले और गंभीर है। आजादी के 70 साल बाद भी हम रोज शून्य से शुरू करते हैं। अभी तक हमें अपनी मंजिल नहीं मिली।
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