अगर आतंकवाद पर मोदी सरकार सख्त तो क्या ये चार साल के आंकड़े झूठे हैं?

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रमजान महीना बीतने के बाद से घाटी में फिर कार्रवाई शुरू हो गई है। कुछ समय पहले चार सालों का जश्न मनाकर मोदी सरकार अब मिशन 2019 में जुट गई है। इन चार सालों में सरकार ने भारत को क्या दिया और क्या देने वाली है इसका बखान अलग-अलग माध्यमों द्वारा आपतक पहुंचाने की भरकस कोशिश की जा रही। ऐसा होना भी जरूरी क्योंकि इससे आपको पता चलेगा कि सरकार ने आपके लिए क्या किया और आगे क्या करना चाहती है। यहां तक सब ठीक है, लेकिन उन सवालों के जवाब  सरकार कब और कैसे देना चाहेगी जो जनता के जहन में सुलग रहे हैं।

सरकार सर्जिकल स्ट्राइक जैसी बड़ी कार्रवाई के गुणगान हर चुनावी रैली में करती है लेकिन जवानों की मौत के आंकड़े ये क्यों दर्शातें है कि सीमा पर तनाव कम नहीं बल्कि इन चार सालों में सबसे ज्यादा बढ़ा है। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2017 के बीच सबसे ज्यादा नागरिकों ने 2017 में अपनी जान गंवाई। यही हाल सुरक्षाबलों के शहीद होने का भी रहा है। जहां 2017 में आतंकी घटनाओं में 57 नागरिकों ने अपनी जान गंवाई, वहीं 218 जवानों ने शहादत हासिल की है। 26 मई, 2014 को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाने का संकल्प लिया था।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ ज्यादातर मौतें बीते 1.5 साल के दौरान हुईं। सीमा पर लगातार हो रही झड़पें उनमें मरते सैकड़ों लोग और जवानों की जवाबदेही के बदले सिर्फ देश को आश्वासन मिला। सरहद पर उठते जनाजों और तनाव के पीछे कई चीजें अहम मानी जा रही है। जिसमें से आंतकवाद, घरेलू आंतकवाद और रक्षा बजट मुख्य माना जा रहा है। 13 मार्च को संसद में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के उपाध्यक्ष ने कहा कि उसका 65 फीसदी असलहा (हथियार, अस्त्र-शस्त्र से संबंध) पुराना और बेकार हो चुका है। सेना के पास तोपों, मिसाइलों और हेलिकॉप्टरों की कमी है, जिसकी वजह से वह दो मोर्चों पर लड़ पाने में असमर्थ है। रक्षामंत्रालय ने सरकार के सामने 125 योजनाओं के लिए 37,121 करोड़ रु. की मांग की थी लेकिन सरकार ने रक्षा बजट में 21,388 करोड़ रूपये ही सेना के नाम दर्ज किए। इतने कम बजट में आधुनिक उपकरण जुटाना सेना के लिए नामुमकिन है।

खबर तो ये भी है कि केंद्र सरकार ने सेना की वर्दी, जूते आदि मूल चीजों में भी कटौती करनी शुरू कर दी। जवानों से कहा है कि वे बाजार से अपने लिए वर्दी और बाकी सामान खरीदें। यह नौबत पर्याप्त फंड नहीं मिलने के कारण हुई। वहीं इस तनाव का दूसरा बड़ा कारण भारत-पाकिस्तान की बातचीत ना होना भी बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि नियंत्रण रेखा पर तब अधिक शांति रही है, जब भारत और पाकिस्तान आपस में बातचीत कर रहे होते हैं। जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में पाकिस्तान का अचानक दौरा किया, तो शांति की उम्मीदें बढ़ीं। लेकिन उसके बाद हुई कुछ घटनाओं ने ऐसे प्रयासों को पटरी से उतार दिया। तक से संघर्ष-विराम के बार-बार उल्लंघन का माहौल बना। दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाने में कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन तथा उसके खिलाफ भारत की आतंकवादी कार्रवाइयों में तेजी आई। भारत के अनुसार पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम को तोड़ने के मामले 2015 के 152 से बढ़कर 2017 में 860 हो गए।

2018 के जनवरी और फरवरी में 351 मामले दर्ज किए हैं। वहीं इन आकंड़ों के बाद पाकिस्तान और भी ज्यादा उल्लंघनों का दावा कर रहा है। उसके अनुसार भारत ने दो साल पहले के 168 की तुलना में पिछले साल 1970 बार संघर्ष-विराम को तोड़ा। इन आकंड़ो में काफी अतंर है अब आपका मन करें तो यकीन कीजिए वरना छोड़ दीजिए, लेकिन इसबात से नकारा नहीं जा सकता की आतंक का आंकड़ा बढ़ा है और सरकार इसके जवाब में आपको आश्वासन की टोपी पहना देगी लेकिन कब तक इस तरह से चलता रहेगा।

सीमा से सटे गांव आजादी के 70 सालों बाद भी अपने घर में कैदी है। वहीं जहां अन्य देश अपने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी सेनाओं को सबसे ज्यादा मजबूत करते हैं वहीं हम सबसे ज्यादा कमजोर साबित हो रहे हैं और ये उसी कमजोरी का नतीजा है कि सरहद पर आए दिन जनाजे उठ रहे हैं, किसी बेटा, बाप और पति छिन रहा है लेकिन हमें क्या हम ना सोचेंगे और ना ही प्रश्न पूछेंगे।

2017 में घाटी में 126 युवक आतंकी संगठनों से जुड़े

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य की विधानसभा में ये जानकारी दी है कि कश्मीर घाटी में साल 2017 में 126 स्थानीय युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए। साल 2015 में 66,  साल 2016 में 88 और साल 2017 में 126 युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए।

साल 2018 में 80 से ज्यादा युवा आतंकवादी बनें

साल 2011 में इसमें गिरावट आई और 23 युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए। ये संख्या और कम होकर साल 2012 में 21 और साल 2013 में 16 रह गई। आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 में ये संख्या बढ़कर 53, साल 2015 में और बढ़कर 66 और साल 2016 में 88 हो गई। 2014 से 2017 की बात करें तो युवाओं के आतंकवादी संगठन में शामिल होने की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिला है। मई 2018 में सुरक्षा एंजेसियों द्वारा केंद्र सरकार को दी गई रिपोर्ट्स के अनुसार, आंतकी गुटों में शामिल होने वाले स्थानीय युवकों की संख्या 80 के पार हो चुकी है। अधिकारियों ने बताया कि दक्षिण कश्मीर में शोपियां और पुलवामा जिले सबसे ज्यादा आतंकवाद से प्रभावित हैं। यहां के युवा आईएसआईएस-कश्मीर और अंसार गजवात उल हिंद जैसे आतंकी गुटों में भर्ती हो रहे हैं। ऐसा भी नहीं इस दलदल से युवा बाहर नहीं आ लेकिन जितनी बड़ी संख्या में कैद हुए उतनी बड़ी संख्या में बाहर नहीं आ रहे। कई युवा आंतकी तो ऐसे भी इन संगठनों में शामिल हुए जो पेश से इंजिनियर, प्रोफेसर भी रह चुके हैं, पढ़ें-लिखें नौजावानों का आतंकी गुटो में शामिल होना कई सवाल खड़े करता है। ऐसे में सरकार को आतंकी घटनाओं पर लगाम कसने के लिए और भी पुख्ता नीति की जरूरत है, साथ ही कश्मीर के युवाओं को भटकाव से बचाने के लिए भी कारगर उपाय करने होंगे।

जम्मू कश्मीर में पिछले चार साल में आतंकवाद से हुई मौतों के आंकड़े

 साल

2014

2015

2016

2017

 

नागरिक

32

20

14

57

 

 

सुरक्षाबल

51

41

88

83

 

 

आतंकी

110

113

165

218

 

 

कुल

193

174

267

358

 

 चार सालों में हुए बड़े आतंकी हमले

27 नवंबर 2014- अरनिया सेक्टर में हमला, 3 जवान शहीद।

5 दिसंबर 2014- उरी सेक्टर के मोहरा में हमला, 8 जवान और 3 पुलिसकर्मी शहीद।

20 मार्च 2015- कठुआ में आतंकी हमला, 3 जवान शहीद।

18 सितंबर 2016- उरी में सोते हुए जवानों पर हमला। 19 जवान शहीद।

25 जून 2016- पंपोर में सेना काफिले पर हमला, 8 सीआरपीएफ जवान शहीद।

21 फरवरी 2016- श्रीनगर की सरकारी बिल्डिंग पर हमला, 3 शहीद।

2 जनवरी 2016- पठानकोट एयरबेस पर हमला, 7 जवान शहीद।

अक्टूबर 2017- बीएसएफ कैंप पर हमला, एक एएसआई शहीद

अगस्त 2017: 18 घंटे मुठभेड़, 8 जवान शहीद

अप्रैल 2017: आर्मी कैंप पर हमला, 3 जवान शहीद

फरवरी 2017: ऑपरेशन से लौट रहे जवानों पर हमला, 4 शहीद

जनवरी 2017: GREF कैंप पर हमला, 3 लोगों की मौत

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