सुख भीतर है, बाहर नही- साध्वी चंदनबाला

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संवाददाता भीलवाड़ा। मानव में जब तक भीतर की सामायिक नही आएगी तब तक उसे मोक्ष जाने का रास्ता नही मिल पायेगा। सुख भीतर है, बाहर की तरफ नही है। जैन धर्म विवशता एवं मजबूरी का धर्म नही है, जैसा सुख है वैसा करो सिद्धान्त पर चलने वाला धर्म है। मोह का क्षय होना ही मोक्ष है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि संसार का मतलब जन्म और मृत्यु का चक्कर चलते रहना है। मोक्ष में जाने के लिए पहले उसके रास्ते पर चलना जरूरी है। धन की प्राप्ति उसी को होती है जिसने पूर्व भव में दान किया हो। दान देने से कर्मो की निर्जरा होती है और हमे सकून मिलता है।अच्छे पुण्य के कार्यो में दान देने में सदैव अग्रणी रहना चाहिए ,दान कभी भी व्यर्थ नही जाता है। साध्वी आनंद प्रभा ने कहा कि स्व दोषों के दर्शन करके उन पर मनन करो, पर दोषों को अपने जीवन से हटा दो। आत्मा साधना के पथ पर आगे बढ़ने के लिए हमे जैन आगम का सार जिनवाणी का श्रवण करना होगा। इंद्रियों व कषायों को समाप्त करने के लिए हम जिनवाणी का श्रवण करे ताकि हमारे कर्मो की निर्जरा हो। हमारी आत्मा में जो स्व दोष बच गए है हम उनको नही देखकर लोगो के दोष देखने मे लगे हुए है। दूसरो की आलोचना करते रहेंगे तो जीवन का उद्धार होने वाला नही है। अनादिकाल से चले आ रहे हमारे भवो का अंत करने के लिए हम शुद्ध भाव से सामायिक करे। हर रविवार को आयोजित होने वाला सामूहिक नवकार महामन्त्र का जाप रविवार को प्रातः 8.30 बजे से शुरू होगा। जाप के पश्चात भाग्यशाली विजेता के चयन हेतु लक्की ड्रा निकाला जाएगा। बाहर से आये श्रीसंघो का स्थानीय संघ ने स्वागत किया।

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