गोरखपुर: गोरखपुर में मरने वालों बच्चों का सिलसिला अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते 48 घंटों में 42 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इस मामले को हलके में लेते हुए कहा कि इस मौसम में यहां हर साल ऐसे ही मौते होती है।
प्रिंसिपल के बताए आंकड़ो पर जरा सा गौर फरमाएगे तो पिछले 72 घंटों में BRD में भर्ती बच्चों में से 61 की मृत्यु हो चुकी है। 27 अगस्त को 17 और 28 अगस्त को 25 बच्चों की मौत हुई थी। देर रात 6 और बच्चों की मौत हो गई, जिसमें इंसेफेलाइटिस से 7, एनआईसीयू में 10 और अन्य बीमारियों से ग्रस्त 8 बच्चे थे।
ऐसे में 27 अगस्त को 17, 28 अगस्त को 25 और 29 अगस्त को 19 बच्चों की मौत हुई थी। इस तरह 72 घंटों में मरने वाले बच्चों का आंकड़ा 61 तक जा पहुंचा है।
डॉ पीके सिंह खुद बताते हैं, ‘’बीआरडी अस्पताल में 27 और 28 अगस्त के दौरान 48 घंटे में 42 बच्चों की मौत हो चुकी है। इनमें सात बच्चों की मौत इंसेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार से हुई है।’’
स्वास्थ्य प्रशासन के लिए चिंता की बात:
डॉ पीके सिंह के द्वारा दी जानकारी के मुताबिक, जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में अस्पताल में बड़ी संख्या में बच्चे आते है। लेकिन इनकी हालात इतनी नाजुक होती है कि हर संभव प्रयास के बाद भी इन्हें बचाया नहीं जा सकता। आगे उन्होंने बताया कि इस वक्त ऑक्सीजन और अन्य मेडिकल सुविधा अस्पताल में पूरी है।
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पूर्व प्रिंसिपल और उनकी पत्नी हिरासत में:
BRD में 10 से 12 अगस्त के बीच ऑक्सीजन की कमी होने से 36 बच्चों की मौत हो गई थी। हालांकि योगी सरकार ने इस बात साफ इनकार कर दिया। लेकिन आपको बता दें बीआरडी कॉलेज गोरखपुर के पूर्व प्रिंसिपल और उनकी पत्नी को बच्चों की मौत के मामले में मंगलवार को यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने पूछताछ के लिए कानपुर से हिरासत में लिया। और पूछताछ जारी है।
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क्या है जापानी बुखार:
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इस बीमारी का पहला मामला साल 1871 में सामने आया था। मच्छरों से फैलने वाला ये वायरस डेंगी, पीला बुखार, और पश्चिमी नील वायरस की प्रजाति माना जाता है। ब्रिटेन की संस्था एनएचएस के मुताबिक, “इंसेफलाइटिस एक ऐसी गंभीर बीमारी है जिसमें आपके दिमाग में सूजन आने लगती है। ये एक जानलेवा बीमारी है। इसके लिए आपातकालीन इलाज की जरूरत होती है। इस बीमारी का शिकार कोई भी हो सकता है लेकिन सबसे ज्यादा खतरा बच्चों और बूढ़ों को होता है।”
हैरानी की बात है अभी तक प्रशासन इस इस मौत के आंकड़ो को मौसमी बीमारी मान का अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है। हम एक बार फिर याद दिला दे महज 48 घंटे में 42 बच्चों की मौत होना किसी अस्पताल के लिए सामान्य आकंड़ा कैसे हो सकता है।
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