नई दिल्ली: जब भी भारतीय रेलवे कि बात होगी तो ये तय है कि खाने और सफाई पर सवाल-जवाब जरूर पूछे जाएंगे और आप ये भी जानते ही हैं कि भारतीय रेलवे इस देश के यातायात की रीढ़ की हड्डी है। जितनी ये अहम है, उतनी ही अस्त-व्यस्त भी। अब बात करते हैं असली मुद्दे कि CAG ने पिछले दिनों संसद में बताया था कि ट्रेन और स्टेशन पर मिलने वाला खाना खाने लायक नहीं है। इसको खाने से बीमार पड़ने की संभावना है।
संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में CAG ने एक और खुलासा करते हुए कहा है कि ट्रेनों में इस्तेमाल होने वाले लिनेन और कंबलों की सफाई और धुलाई में रेलवे के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। रेलवे बोर्ड ने यह निर्देश दिया था कि प्रत्येक इस्तेमाल के बाद लिनेन की धुलाई की जाएगी जबकि हर दो महीने पर कंबलों की ड्राई क्लीनिंग की जानी जरूरी है। लेकिन सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न रेलवे जोनल ने रेलवे के ही निर्देश का पालन नहीं किया।
सीएजी ने 2012-2013 से 2015-2016 के बीच में 33 चयनित कोचिंग डिपो में समीक्षा अवधि के दौरान कंबलों की संख्या और धुले हुए कंबलों की संख्या के डाटा का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में पाया गया कि 9 क्षेत्रीय रेलवे के 14 चुने हुए कोचिंग डिपो में कोई कंबल ड्राई वॉश नहीं किया गया था। इसके अलावा पांच क्षेत्रीय रेलवे के सात डिपो को छोड़कर किसी भी चुने हुए डिपो में लिनेन की सफाई नहीं की गई थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-2016 के दौरान 8 क्षेत्रीय रेलवे के 12 कोचिंग डिपो में 6 से 26 महीनों के अंतराल के बाद कंबलों को धोया गया था। इन डिपो में लोकमान्य तिलक टर्मिनस, सियालदह, ग्वालियर, गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, लखनऊ, सिकंदराबाद, हटिया और टाटानगर शामिल है। इस रिपोर्ट के अनुसार यात्रियों की दी जाने वाली तकियों की सफाई का भी ध्यान नहीं रखा गया है।
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क्या हैं नियम:
गाइड लाइन के अनुसार चादरें, तकियों के कवर्स, तौलिए आदि एक बार इस्तेमाल होते ही तुरंत धोने के लिए दिए जाने चाहिए। कंबल हर 2 महीने बाद धुलने चाहिए। लेकिन इसका पालन बिल्कुल भी नहीं हो रहा है। CAG ने राय दी है कि तत्काल प्रभाव से एक ऐसी प्रणाली बनाई जाए, जिससे साफ़-सफाई निर्धारित समय से हो सके।
आपको बता दें कि रेलमंत्रालय ने 23 जुलाई को ट्वीट कर बताया कि मंत्रालय की तरफ से कैटरिंग सर्विस को और बेहतर बनाने के लिए कई तरह की शुरुआत की गई है। मंत्रालय का कहना है कि खाना बनाने और खाना वितरण करने की व्यवस्था को अलग किया जा रहा है। नई कैटरिंग पॉलिसी में यह भी तय किया गया कि किचन और खाने की क्वॉलिटी से संबंधित मामलों के लिए आईआरसीटीसी जिम्मेदार है।
इसके अलावा यह भी तय किया गया कि ट्रेनों में जाने वाला खाना आईआरसीटीसी के किचन के अलावा कहीं और से नहीं जाएगा। मंत्रालय ने कहा, ‘सभी मोबाइल यूनिट्स पर आईआरसीटीसी ही कैटरिंग सर्विस करेगा। सभी ट्रेनों के लिए खाना सिर्फ तय किए गए किचन से लिया जाएगा। इसकी पूरी व्यवस्था आईआरसीटीसी की तरफ से की जाएगी।’ इसके अलावा ऑन डिमांड ऑर्डर के लिए 357 स्टेशनों पर ई-कैटरिंग की व्यवस्था भी की गई है।
बता दें कि रेलवे ने नई पॉलिसी 27 फरवरी को जारी की थी, लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के बाद रेलवे ने फिर से ट्वीट कर इस पॉलिसी के बारे में बताया। इसके अलावा रेलवे स्टेशनों पर चलने वाले फूड प्लाजा, फूड कोर्ट और फास्टफूड यूनिट्स का काम भी आईआरसीटीसी के तहत ही आएगा। इस कैटरिंग पॉलिसी में मंत्रालय की तरफ से खाने की क्वॉलिटी को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात कही गई है।
मंत्रालय ने कहा इस दिशा में कार्रवाई करते हुए पिछले 6 महीने में 7 कॉन्ट्रैक्ट कैंसल किए गए, 16 कॉन्ट्रैक्टर्स को ब्लैकलिस्टेड किया गया, 21 अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई गई और साढ़े चार करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
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