नहीं लगता आपातकाल तो हो सकता था पाकिस्तान जैसा हाल !

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जून का महीना आते ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के लोगों द्वारा सन 1975 के आपातकाल का जिक्र आम हो जाता है और इस अध्याय को भारतीय इतिहास का काला पृष्ठ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती हैं । आपातकाल को देखने का यह नजरियाँ उनका अपना है जिसको वो इंदिरा की हठधर्मिता के रूप में प्रदशित करते है परन्तु अगर आपातकाल के सिक्के के दूसरे पहलू को देखे तो कुछ अलग नजर आता हैं । वास्तव में आपातकाल से जुड़े ऐसे बहुत से तथ्य है जिनको इन तथाकथित राष्ट्रवादी लोगों द्वारा जनता के सामने नहीं लाया जाता जैसे कि ऐसी कौनसे कारण थे जिनकी वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री को आपातकाल लागू करवाना पड़ा और आपातकाल के दौरान देश की आर्थिक स्थिति कितनी और कैसे मजबूत हुई आदि ।

संविधान के अनुच्छेद 352 में वर्णित आपातकाल को कोई भी सरकार बिना किसी खास कारण के नहीं लागू कर सकती, इसके लिए विशेष परिस्थितियों का वर्णन किया गया है कि यदि देश में उपजी परिस्थतियों में केन्द्रीय सरकार यह महसूस करती है कि देश में कानून का राज संचालित करना संभव नहीं है तो वह आपातकाल लागू कर सकती है। वास्तव में इस तरह की परिस्थितियां 1975 के जून माह के आते-आते देश में पैदा हो गई थी जहाँ राज संचालित करना संभव नहीं था ।

जय प्रकाश का रवैया और सरकारी कार्यवाही
बहुचर्चित मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया था। तत्पश्चात विरोधी पार्टियों ने उनके त्यागपत्र की मांग की और अपनी इस मांग मनवाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन प्रारंभ कर दिया गया। इस बीच श्रीमति गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के पक्ष में मत दिया और आदेश पारित किया कि वे प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी यह विरोध जारी रहा और इंदिरा के त्यागपत्र की मांग जारी रही और जय प्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में यहाँ तक कह डाला कि “सिंहासन खाली करों, जनता आ रही है”। साथ ही उन्होंने सेना और पुलिस को सरकारी आदेश ना मानने के लिए भी बोला कि सरकार के उन आदेशों को ना माने जो उन्हें मन से स्वीकार नहीं हो । अनेक स्थानों पर इंदिरा विरोधी अभियान ने हिंसक रूप भी ले लिया था जो आंतरिक सुरक्षा के मायने से सही नहीं था । इंदिरा के इस विरोध में मुख्यरूप से जनसंघ, समाजवादी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल थे।

इस परिस्थिति का उल्लेख बहुत से लेखकों की पुस्तक में आपको मिल जायेगा जिस में से रामचन्द्र गुहा की पुस्तक “इंडिया आफ्टर गांधी” में उन्होंने जयप्रकाश के इस रवैये का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ऐसा लगता था कि राज्य सत्ता ही गायब हो जाएगी। जयप्रकाश ने पुलिस और फौज से कहा कि वह “अनैतिक आदेशों को न मानें”। हालांकि जयप्रकाश नारायण ने ‘अनैतिक आदेशों’ की परिभाषा नहीं दी थी। पुलिस और फौज को शासन के आदेशों को न मानने का आह्वान अपने आप में एक अनैतिक कृत्य था। शायद इसके चलते इंदिरा गाँधी के सामने कोई अन्य विकल्प नहीं था और अपने सलाहकारों से इन हालातों से निपटने के लिए  अंततः उन्हें आपातकाल लागू करना पड़ा।

देवरस के पत्र और इंदिरा को बधाईयाँ
आपातकाल के लागू होते ही इस हालात से निपटने के लिए मीसा अधिनियम के तहत ऐसे बगावती और विरोधी लोगों को जेल में डाला गया ताकि देश में शान्ति व्यवस्था को बनाया जा सके। इस दौर में जिन लोगों की गिरफ्तारियां हुईं उनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय देवरस भी शामिल थे। इस दौर में आज का अपने आप को श्रेष्ठ कहने वाले संघ कि हालत ऐसी हो गयी थी कि वो उन सब बातों की तारीफ करते नजर आ रहे थे जिनको आज गलत ठहराते हैं । इस बात का प्रमाण आपको जेल से लिखे गए बालासाहेब देवरस के पत्रों से आपको मिल जायेगा । देवरस ने पूना स्थित यरवदा जेल से दिनांक 10 नवंबर, 1975 को इंदिरा को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में वे लिखते हैं “मैं आपको बधाई देना चाहता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय ने आपके चुनाव की वैधता को स्वीकार कर लिया है। “इन शब्दों से स्पष्ट है कि संघ प्रमुख देवरस ने इंदिरा जी के चुनाव संबंधी फैसले को उचित माना था। देवरस ने जेल से इंदिरा जी को अनेक पत्र लिखे थे। हालांकि अगर आज के संघ के लोगों से बात करों तो वो कहते है कि इंदिरा को खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए था परन्तु उस ज़माने की हकीकत तो इन पत्रों से बयां होती हैं ।

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ऐसा नहीं है कि उन्होंने इंदिरा से संपर्क साधने का यह एक ही प्रयास किया, उन्होंने इसके अलावा आचार्य विनोबा भावे को भी पत्र लिखे थे जिनमे उन्होंने संजय गाँधी से मुलाकात करवाने का निवेदन किया था । देवरस द्वारा ने इंदिरा को संबोधित करते हुए एक पत्र दिनांक 22 अगस्त, 1975 को लिखा था जिसकी शुरुवात को देखकर आप समझ जायेंगे कि किस तरह की व्याकुलता थी देवरस के मन में –

यरवदा सेन्ट्रल जेल, पुणे
22.08.1975

श्रीमती इंदिरा गांधी
प्रधानमंत्री
,
भारत, नई दिल्ली

सम्मान से भरा नमस्कार,

मैंने जेल में आपका संदेश रेडियो में बड़े ध्यान से सुना। 15 अगस्त को राष्ट्र के नाम आपका यह संदेश आल इंडिया रेडियो से दिनांक 15 अगस्त को प्रसारित किया गया था।

आपका संदेश समयानुकूल और संतुलित था। इसलिए मैंने आपको यह पत्र लिखना उचित समझा।“

इस पत्र की भाषा और इंदिरा की प्रशंसा से साबित हो जाता है कि आपातकाल की वजह से संघ के नेताओं को शक्तिविहीन कर दिया था या उस समय सरकार के कार्य इतने अच्छे थे कि सरकार के दुश्मन भी उसकी तारीफ किये बिना नहीं रह सकते थे । हालांकि इसी पत्र में देवरस ने संघ के कार्यक्रम और उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि वे इंदिरा द्वारा अपनाए कार्यक्रम के क्रियान्वयन जिनमें बीस सूत्रीय कार्यक्रम शामिल थे में सहयोग देने को तैयार हैं। यहां देवरस ने अपने पत्र में लिखा था कि संघ के कार्यकर्ता निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करते हैं।

सभी को पता है कि आपातकाल के दौरान आंतरिक सुरक्षा को लेकर संघ की गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी गईं थीं तो अपने संघ को बचाने के लिए इस पत्र में देवरस कहते हैं कि “हमारे संगठन की शक्ति का उपयोग देश के विकास में किया जाना चाहिए।“ पत्र के अंत में देवरस अनुरोध करते हैं कि वे हमारे तर्कों पर विचार करेंगी और संघ के बारे में जो गलतफहमियां हैं उन्हें भूलकर संघ पर से प्रतिबंध उठाएंगी। उन्होंने पत्र में प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए समय भी मांगा था।

देवरस के विनोबा भावे को पत्र
जैसा कि पहले ही लिखा गया है कि देवरस ने कुछ पत्र आचार्य विनोबा जी को भी लिखे। इन पत्रों में वे विनोबा जी से अनुरोध करते हैं कि वे इंदिरा जी के मन में संघ के बारे में जो गलतफहमियां हैं उन्हें दूर करने में मदद करें। देवरस ने यह पत्र बंबई के सेन्ट जार्ज अस्पताल के वार्ड क्रमांक 14 से लिखा था। अपने इस पत्र में देवरस लिखते हैं “समाचारपत्रों से यह ज्ञात हुआ है कि प्रधामनंत्री आपसे मिलने दिनांक 24 को आने वाले हैं। यह भी बताया गया है कि विनोबा जी और आपके बीच में देश की वर्तमान स्थिति पर विचारविमर्श होगा। मेरा आपसे निवेदन है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान इंदिरा जी के मन में संघ के बारे में जो गलतफहमियां हैं उन्हें आप दूर कर सकेंगे। मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि संघ के स्वयंसेवक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में घोषित कार्यक्रम के क्रियान्वयन में भाग लेंगे ताकि देश की प्रगति और विकास सुनिश्चित किया जा सके”।

देवरस द्वारा लिखे पत्रों के मायने
देवरस ने इस दौर में जो पत्र लिखे उनसे यह स्पष्ट होता है कि वे इंदिरा जी के कार्यक्रम और उनके नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार थे बशर्ते संघ पर लगा प्रतिबंध हटा दिया जाये । इन पत्रों से यह भी स्पष्ट होता है संघ को इंदिरा द्वारा घोषित 20 सूची कार्यक्रम स्वीकार थाऔर “आपातकाल” से संघ को जो आपत्ति थी वह सिर्फ इसलिए थी कि संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इंदिरा को लिखे पत्र में यह भी स्पष्ट करते हैं कि जो आंदोलन जयप्रकाश नारायण ने गुजरात व बिहार में किया था उसका संघ से कुछ लेना देना नहीं है। इस तरह से संघ ने इस दौर में जयप्रकाश से भी किनारा कर लिया था। अब आप ख़ुद ही समझ सकते है कि एक विरोधी संघठन का सर्वेसर्वा व्यक्ति जब किसी व्यक्ति और व्यवस्था कि तारीफ करे तो वह व्यवस्था कैसी होगी ?बाकि तो राजनीति के प्यादों ने सियासी शतरंज में सत्ताधारी को फंसा कर खेल समाप्त करवा दिया ।

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आपातकाल नहीं लगता तो हो सकता था सेना का शासन
इस संघर्ष में अक्सर लोग जयप्रकाश के उस वाक्य को भूल जाते है जो आपातकाल की मुख्य वजह था । जयप्रकाश नारायण ने सभी शासकीय कर्मचारियों से अपील की कि वे इंदिरा जी के आदेशों का पालन न करें। यहां तक कि उन्होंने इस तरह का आह्वान फौज और पुलिस से भी किया। इस के बाद जिस तरह का विरोध हुआ उस से ऐसे हालात बन गए थे कि पुलिस और सेना के विद्रोह की उम्मीद बन रही थी और अगर ऐसा हो जाता तो लोकतंत्र वैसे ही गायब हो जाता जैसे हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में हुआ था।

आपातकाल पर बेमतलब का शोर मचाने वाले लोगों को आपातकाल के इस पहलू की जानकारी रखना भी अनिवार्य है वैसे भी गाँव का गरीब तो इस जश्न को मनाने का फिर से इंतजार ही कर रहा है कि फिर से ऐसी व्यवस्था हो जाये कि सब कुछ सही और समय पर होने लगे, कोई हरामखोरी और बेईमानी करने से पहले सरकार से इतना डरें कि बेईमानी का ख्याल सपने में भी ना सोच पायें । साथ ही इस दौर में महंगाई तो इस कदर भाग गई थी हर चीज़ हर आदमी के लिए आसानी से उपलब्ध हो रही थी ।

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