जयपुर: कोरोना वायरस के संकट के चलते पूरी दुनिया लॉकडाउन की स्थिति में है। जहां लोगों को लॉकडाउन से परेशानी हो रही है। वहीं पर्यावरण को इससे बड़ा फायदा हो रहा है। पिछले कई दशकों से पृथ्वी पर हमारी रक्षा कर रही ओजोन परत (Ozone layer) को हमने अपने फायदें के लिए काफी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन लॉकडाउन के बाद इसकी हालत में सुधार आया है।
साइंस अलर्ट के अनुसार, ओजोन परत (Ozone Layer) को सबसे ज्यादा नुकसान अंटार्कटिका के ऊपर हो रहा था। वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस परत में अब उल्लेखनीय सुधार आ रहा है। नेचर में प्रकाशित ताजा शोध के अनुसार जो केमिकल ओजोन परत के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, उनके उत्सर्जन में कमी होने के कारण यह सुधार हो रहा है।
कैसे पहुंच रहा है इसे नुकसान
नेचर के मुताबिक, पृथ्वी भूमध्य रेखा के मुकाबले ध्रुवों पर तेजी से अपना चक्कर लगाती है। इस वजह से ध्रुवों के ऊपर एक बहुत बड़ा भंवर बन जाता है जिसे जेट स्ट्रीम कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक घटना है। लेकिन ओडीएस पदार्थ इस भंवर में तेजी रासायनिक क्रिया करते हुए एक चेन रिएक्शन बना लेते हैं और ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस भंवर को भी दक्षिण की ओर धकेल रहे थे। इससे जलवायु परिवर्तन समेट बहुत सारे नुकसान हमें हो रहे थे। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग की वजहों में से एक यह भी बड़ी वजह थी।
लॉकडाउन का क्या है महत्व-
लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में उद्योगों के बंद होने से वायुमंडल को नुकासन पहुंचाने वाली गैसों का उत्सर्जन बंद हो गया है। वहीं दूसरी तरह सार्वजनिक और निजी यातायात लगभग बंद होने से पैट्रोल और डीजल के कारण वाहनों से निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें निकलना भी बहुत ही कम हो गई हैं। ऐसे में प्रदूषण का स्तर, खासतौर पर महानगरों में अभी से दिखने भी लगा है।
यूनिवर्सिटी की रिसर्चर अंतरा बैनर्जी ने बताया कि यह एक अस्थाई बदलाव है लेकिन अच्छा है। इस समय चीन में हुए लॉकडाउन की वजह से जेट स्ट्रीम सही दिशा में जा रही है। कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम है। इसलिए ओजोन का घाव भर रहा है।
ओजोन के नुकसान से मौसम में हुआ परिवर्तन-
साल 2000 से पहले जेट स्ट्रीम पृथ्वी के बीचों-बीच घूमता रहता था लेकिन उसके बाद से ये पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से की तरफ घूम गया। इससे ओजोन में छेद तो हुआ ही। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के मौसम में भारी बदलाव आया। वहां सूखा पड़ने लगा।
भरने लगे धरती के घाव-
साल 2000 से पहले जेट स्ट्रीम पृथ्वी के बीचों-बीच घूमता रहता था. लेकिन उसके बाद से ये पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से की तरफ घूम गया. इससे ओजोन में छेद तो हुआ ही. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के मौसम में भारी बदलाव आया। वहां सूखा पड़ने लगा। लेकिन अभी दुनियाभर के वैज्ञानिकों को ध्यान इस बदलाव की और नहीं बल्कि कोरोना जैसी पहेली को सुलझाने में लगा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती अपना सतुंलन खुद बनाती है, अगर हम नहीं सभलें तो धरती कोरोना जैसी कई महामारी, प्राकृतिक आपदाओं से अपने घाव जरूर भरेगी। इसलिए ये वक्त अपनी जिम्मेदारी समझने का है।
आपको बता दें, भारत में कोरोना मृतकों की संख्या बढ़कर 17 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में कोरोना के 88 नए मामले सामने आए हैं, जिसके बाद संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 724 हो गई है। इनमें 47 विदेशी भी हैं।
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