महिलाओं की हत्या करने के मामले में भारत सबसे आगे, रेप नहीं बल्कि इन वजहों से मारी जाती हैं

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संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और क्राइम विभाग (UNODC) द्वारा इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेस्ट वीमेन के मौके पर जारी रिपोर्ट में कई अहम खुलासे किए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे अधिक महिलाओं की हत्या अंधविश्वास और दहेज को लेकर की जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा दहेज विरोधी कानून नाकाफी साबित हो रहे हैं। 2016 में भारत में महिलाओं की हत्या की दर 2.8 फीसद थी जो केन्या, तंजानिया और जॉर्डन जैसे देशों से ज्यादा है। रिपोर्ट में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से कहा गया कि महिलाओं की हत्या के कुल मामलों में से 40 से 50 फीसद के पीछे दहेज ही वजह रहा। 1999 से 2016 के बीच इस स्थिति में विशेष सुधार देखने को नहीं मिला।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार द्वारा 1961 में दहेज लेने और देने के विरोध में कानून लागू करने के बावजूद इसका चलन खत्म नहीं हुआ और महिलाओं की हत्या में दहेज अब भी सबसे बड़ी वजह बना हुआ है। वहीं रिपोर्ट में साल 2017 का हवाला देते हुए बताया है कि पूरी दुनिया में तकरीबन 87000 महिलाओं की हत्या की गईं, जिनमें से 50 हजार यानी तकरीबन 58 फीसद हत्याएं पति, प्रेमी और परिजनों ने की।

हर एक घंटे में छह महिलाओं का कत्ल उनके करीबी कर देते हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पूरी दुनिया में महिलाओं के लिए उनका घर ही सबसे असुरक्षित जगह है। पूरी दुनिया में प्रति एक लाख महिलाओं में से 1.3 की हत्या करीबी पुरुष या परिजनों के हाथों होती है।

अंधविश्वास महिलाओं की हत्या की वजह-
भारत और पापुआ न्यू गिनी जैसे देशों में अंधविश्वास और तंत्र मंत्र के आरोप जैसे वजहों से महिलाओं को मार दिया जाता है। अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र व इसके आसपास के इलाकों में भी हत्या के पीछे ऐसे मामले आज भी सामने आते हैं। ज्यादातर मामलों में महिलाओं की हत्या लैंगिक असमानता, भेदभाव और कुरीतियों की वजह से होती है।

हर महिला शारीरिक हिंसा का शिकार-
1995 से 2013 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 15 से 49 साल की 33.5 फीसद युवती और महिलाएं जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक हिंसा की शिकार हुईं और पिछले 12 महीनों में 18.9 फीसद ने शारीरिक हिंसा का सामना किया।

आपको बताते चले हर साल 25 नवंबर को इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेस्ट विमेन मनाया जाता है। महिलाओं के साथ अपराधों के प्रति जागरूकता लाने के लिए दिसंबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसका ऐलान किया गया था।

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