संवाददाता भीलवाड़ा। भक्त और भगवान के मध्य मिलन भक्ति के माध्यम से ही होता है। भक्त में अपार शक्ति निहित है वो अपनी भक्ति के माध्यम से भगवान को भी बुला सकता है। हम इन पर्युषण पर्व के दौरान राग, द्वेष, कषायों, क्रोध, मान , मोह, लोभ को त्यागकर प्रभु की तप और जाप के माध्यम से आराधना करें ताकि हमें जन्म और मरण से मुक्ति मिल सके।उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि अगर साल भर में किसी कारण से हमारे द्वारा कोई पाप कर्म हो गया हो तो उस पर इन पर्युषण पर्व के दौरान चिंतन, मनन करके बुरी प्रवर्ति का त्याग करना है। साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि हमारा जैन धर्म शूरवीरो का है, यह एक त्याग परिधान धर्म है। साधु संत जब विचरण करते है तो रास्ते की सेवा का अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए, साधु – संत समाज की एक अमूल्य धरोहर है साध्वी डॉ चन्द्रप्रभा ने कहा कि यह पर्युषण पर्व आत्मा से साक्षात करने, नर से नारायण की यात्रा करने का पर्व है। यह पर्व बाहर के पाप- दोषों का तो निवारण करता ही साथ मे अन्तर्मन के पापो का भी नाश कर देता है। भगवांन महावीर एक बहुत बड़े वैज्ञानिक और दार्शनिक थे। भगवान ने जीवन जीने का तरीका बताया है। सामायिक साधना, व्रत, तप प्रतिक्रमण करके हम हमारे कर्मो को काट सकते है।साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा ने अन्तर्गढ़ दशांग सूत्र का वाचन किया गया धर्मसभा में चातुर्मास के दौरान मीडिया का शानदार कवरेज करने एवं नवकार महामन्त्र के सामूहिक जाप की शुरुआत कराने में महत्वपूर्ण योगदान देने पर संघ के सहमंत्री सुरेन्द्र संचेती का श्री वर्धमान सेवा समिति द्वारा अभिनन्दन पत्र, श्रीफल, शाल, ध्वज प्रदान कर सम्मानित किया गया। ध्वज की बोली भूरालाल, पारसमल, देवीलाल, प्रकाश चंद पीपाड़ा की तरफ से 11000 रु जीवदया में भेंट कर सम्मान किया गया। इस अवसर पर समाज के सभी गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। बाहर से आने वाले श्री संघो का स्थानीय संघ द्वारा शब्दो से स्वागत किया गया।
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