अनुसूचित जाति और जनजातियों के उपवर्गीकरण की मांग

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हनुमानगढ़। वंचित वर्ग आरक्षण उपवर्गीकरण संघर्ष समिति राजस्थान ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के नॉन-क्रिमीलेयर उपजातियों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करने की मांग को लेकर प्रदेशाध्यक्ष विकास नरवार व अर्जुन विमल के नेतृत्व में जिला कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। समिति ने सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा 1 अगस्त 2024 को दिए गए ऐतिहासिक निर्णय का हवाला देते हुए उपवर्गीकरण की प्रक्रिया को शीघ्र लागू करने की अपील की।

ज्ञापन में प्रदेशाध्यक्ष विकास नरवार ने बताया कि न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6-1 के बहुमत से एससी और एसटी वर्ग के भीतर उपवर्गीकरण को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है। इस निर्णय के अनुसार, उन जातियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अत्यधिक पिछड़ी हैं। समिति ने विशेष रूप से वाल्मीकी, मेहतर, सांसी, कंजर, नट, ढोली, बाजीगर, सपेरा, मदारी, कालबेलिया, बावरी, भांड, धानक, कामड़ जैसी जातियों का उल्लेख किया, जिनके हालात आज भी अत्यंत दयनीय हैं।

संघर्ष समिति सदस्य अर्जुन विमल ने राज्य सरकार से मांग की कि एक राज्य स्तरीय कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें संविधान और कानून में पारंगत अधिवक्ता, समाजशास्त्री, शिक्षक एवं विषय विशेषज्ञ शामिल हों। यह कमेटी 90 दिनों के भीतर व्यापक सर्वेक्षण कर उन उपजातियों की पहचान करे, जो नॉन-क्रिमीलेयर श्रेणी में आती हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का उचित लाभ सुनिश्चित किया जाए।

समिति ने यह भी कहा कि सामाजिक ढांचे में एससी और एसटी वर्ग की कई उपजातियां हैं, जिनकी संस्कृति, परंपराएं और जीवनशैली भिन्न हैं। विवाह संबंध और आपसी रोटी-बेटी के व्यवहार के अभाव में इन्हें समरूप नहीं माना जा सकता। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा भी इस भिन्नता को स्वीकार किया गया है।

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