खुलासा: हिंसा के दौरान उपद्रवियों को ढूढ़ने के बजाए यहां बिजी थी पुलिस

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भारत बंद में शामिल होने के लिए पुलिस समेत सभी विभागों के सैकड़ों अफसर-कर्मचारी थे छुट्‌टी पर

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राजस्थान: एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान हुई हिंसा ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पड़ताल में यह सामने आया कि जब उपद्रवियों ने जयपुर शहर में तोड़फोड़ और वाहन चालकों के साथ मारपीट शुरू की, तब पुलिस उन्हें रोकने की जगह भीड़ में शामिल एससी-एसटी संगठनों के नेताओं को ढूंढ रही थी। करीब दो घंटे पुलिस ने रैली का नेतृत्व कर रहे लोगों को ढूंढने में गंवा दिए। तब तक उपद्रवियों के आतंक की लपटे कोर्ट परिसर व विधानसभा के आस-पास तक पहुंच चुकी थी।

इसके बाद पुलिस अलर्ट हुई लेकिन तब तक आधा शहर उपद्रवियों की चपेट में आ चुका था। तीन दिन पहले हिंसा की आशंका की इंटेलीजेंस रिपोर्ट मिल जाने के बावजूद पुलिस की अधूरी तैयारियां थी। भारत बंद के दौरान शहर में आधे से ज्यादा एससी-एसटी कर्मचारी व अधिकारी अवकाश पर रहे। बताया जा रहा है कि इनमें से बड़ी तादाद में लोग रैली में भी शामिल थे, लेकिन हिंसा होने के बाद ये रैली से अलग हो गए।

पुलिस मुख्यालय ने सभी जिला एसपी, डीसीपी, रेंज आईजी व कमिश्नर से सोमवार को हुई हिंसा व तोड़फोड़ की रिपोर्ट मांगी है। डीजीपी ओपी गल्होत्रा ने बताया कि मामले की रिपोर्ट ली जा रही है। प्रदेश में अब तक अलग-अलग थानों में 176 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं। हिंसा और तोड़फोड़ करने के आरोप में प्रदेशभर में एक हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस सीसीटीवी फुटेज में उपद्रवी चेहरों की पहचान करने में जुटी हुई है।

अब 10 को फिर आंदोलन!
सोशल मीडिया पर 10 अप्रैल को आंदोलन की धमकी से पुलिस सकते में है। सोशल मीडिया पर एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन में 10 अप्रैल को आंदोलन का अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि, किसी भी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है। पुलिस सोशल मीडिया के मैसेज के आधार पर स्थानीय लोगों से संपर्क कर रही है ताकि आंदोलन होने पर हालात बिगड़ने से रोका जा सके।

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