गो भगत सज्जन बंसल डिंगवाला परिवार द्वारा आयोजित नानी बाई रो मायरो का समापन

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हनुमानगढ़ ।  टाउन की गोशाला के कामधेनु हाल में समाज सेवी गो भगत सज्जन बंसल डिंगवाला परिवार द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो का समापन रविवार को हुआ। इस अवसर पर कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी ।  तीसरे दिन की कथा की शुरूवात मुख्य यजमान लोकेश बंसल डिंगवाला, डॉ. मनोज बंसल द्वारा विधिवत पूजा अर्चना के साथ की गई। कथा करने पहुंची पूज्य कुमारी गायत्री विवेकी जी विवेक आश्रम श्रीगंगानगर ने कहा कि यह कथा सेवा, सहयोग और समर्पण की सीख देती है। कथा में सहयोग की भावना होनी चाहिए । क्योंकि सनातन धर्म को जीवित रखना है तो हमें एकजुटता मिलाकर ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों करना जरूरी है। नरसी मेहता में भगवान के प्रति सहयोग व समर्पण की भावना थी। जिस दिन हमारे बीच में सहयोग की भावना आ जाएगी। उन्होंने नरसी मेहता व श्रीकृष्ण के बीच हुए रोचक संवाद को प्रस्तुत किया। कथा में कथा वाचक ने कहा कि घर में कितनी भी बहुएं हों, कोई अपने पीहर से कितना भी लाए, मगर ससुराल के लोगों को कभी भी धन के लिए किसी को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए। क्योकि हर किसी की आर्थिक स्थिति एक सी नहीं होती है। जीवन के अंत समय को इंसान को हमेशा याद रखना चाहिए। क्योंकि लकड़ी के लिए नया पेड़ लगाना पड़ेगा। सब कुछ पहले से ही तय होता है।

आयोजक सज्जन बंसल डिंगवाला ने बताया कि कथा के अंतिम दिन रविवार को सबसे विशेष भाग मायरे का मंचन हुआ। इसमें श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त नरसी मेहता की पुत्री नानी बाई के लालची ससुराल में आयोजित कार्यक्रम में मायरा भरने स्वयं श्रीहरि द्वारा उपस्थित होकर अपने भक्त की लाज रखने और करोड़ों रुपए का मायरा भरने की कथा का पूज्य कुमारी गायत्री विवेकी जी विवेक आश्रम श्रीगंगानगर द्वारा संगीतमय वर्णन किया गया। नानी बाईरो मायरो कार्यक्रम के अंतिम दिन को भगवान श्रीकृष्ण  ने छप्पन करोड़ का मायरा भरा। नरसी भक्त ने भी कड़ी तपस्या कर भगवान को याद किया, उनको आना पड़ा और श्रीकृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भी भरा।

भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त नरसी मेहता ने जब अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तब उन्हें भगवान का साक्षात्कार हुआ। हमें भी लोभ, लालच व मोह का त्याग कर भगवान के प्रति समर्पण भाव से भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य की तृष्णा कभी शांत नहीं होती, तृष्णा शांत हो जाए, तब ही प्रभु मिलन संभव है।  कथा के दौरान पंडित ओझा द्वारा बीच-बीच में देखो जी सासू म्हारा पीहर का परिवार.., बाई री सासम ननद लडे छे, मत नीचे आन पड़े छे..,  ऊभो अर्ज करे हैं, साँवरियो हैं सेठ, आज तो साँवरियो बीरो मायरो ले आओ रे आदि भजनों की प्रस्तुति पर श्रोतागण महिला-पुरूष भाव-विभोर होकर नाचने लगे। उक्त आयोज को सफल बनाने में तनसुख राम, सुनील डिंगवाला, कौशल्या बहन, तरुण बंसल, विपिन गोयल, गोशाला समिति में अध्यक्ष मनोहर लाल बंसल,चम्पा लाल,कन्हैया लाल, भूषण जिंदल आदि ने सहयोग किया।

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