संवाददाता भीलवाड़ा। सभी प्राणी मात्र अपने है, कोई पराया नही है। गरीब की आत्मा को ठेस पहुँचाकर धन एकत्रित करना श्रावक धर्म नही है। एक चीज को पकड़कर नही बैठना है, दूसरा कोई कह रहा है तो उसको भी समझने की कोशिश करो। संतो के दर्शन करने से दरिद्रता दूर होती है और वाणी सुनकर उस पर अमल करने से पुण्य होता है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि भगवान महावीर ने अहिंसा , अपरिग्रह,अनेकान्त का जो सिद्धान्त दिया है उस पर चलने का प्रयास करे तो जीवन का कल्याण होने में देर नही लगेगी। धन आने का एक ही रास्ता है वो है पुण्यवानी और धन जाने के अनेक रास्ते है। जीवन मे अधिक से अधिक धर्म की दलाली करनी चाहिए, जो सहधर्मी है उनका प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करे। साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा कि तपस्या करने वालो की अनुमोदना हो, पाप की अनुमोदना कभी मत करो। जीवन के भीतर ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप को जानना होगा तभी सद्ग्रस्थ के साथ श्रावक धर्म का पालन होगा। जैन धर्म के आगम में हर समस्या का समाधान बताया गया है। आगम में 2800 वर्ष पहले ही भगवान ने लिख दिया था कि कब क्या होने वाला है। जैन किसी व्यक्ति विशेष की पूजा नही करता है वो गुणों की पूजा करता है। जो जीवन मिला है उसका सदुपयोग अच्छे कामो में करो, क्या पता वापिस यह जन्म मिलेगा या नही। गुरु आपको रास्ता बता सकता है, किसी को मोक्ष नही दे सकता है। साध्वी सुरभि ने प्रार्थना सभा मे भक्तामर स्त्रोत का वाचन करवाया। धर्मसभा में तपस्वी बहिन श्रीमती सुधा रांका ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। बाहर से आये आगन्तुकों का संघ के सदस्यों ने स्वागत किया।
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