कोबरापोस्ट स्टिंग दिखाता है कि भारतीय मीडिया डूब रहा है…अब या तो हम डूब जाएं या सामना करें

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पत्रकारिता की बुनियादी नींव को हिलाता कोबरापोस्ट का ऑपरेशन 136 काफी सुर्खियों में। सोशल मीडिया पर इस खबर के चर्च काफी तेज है। कोबरापोस्ट का ‘ऑपरेशन 136’ एक ऐसा स्कैंडल है जो भारतीय लोकतंत्र के एक अहम स्तंभ ‘प्रेस की आजादी’ पर जोरदार हमले का दावा करता है। दावा ऐसा की इसके स्टिंग ऑपरेशन से देश के सभी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान सवालों के घेरे में आ गए है।

दरअसल, ये पूरा मामला वर्तमान सरकार यानी भाजपा को लाभ पहुंचाने का है। कोबरापोस्ट ने अपनी वेबसाइट्स पर सभी मीडिया संस्थानों से हुई बातचीत को रिलीज किया है। इसमें तमाम प्रिंट डिजिटल और टीवी चैनल्स शामिल है।स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया है कि देश के बड़े मीडिया समूहों का सत्तारूढ़ दल बीजेपी की ओर गहरा झुकाव है। ये ही नहीं सरकार को फायदा पहुंचाने के लिए कई बड़े मीडियाकर्मी और पत्रकार धन लेकर राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए तैयार दिखाई दिए।

मामला इतना बड़ा था कि कोबरापोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन को किसी भी अखबार या चैनल इस खुलासे पर एक शब्द कहना भी जरूरी नहीं समझा। जिन संस्थानों के नाम इस स्टिंग में आए हैं उनमें हैं- हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, जी न्यूज, आजतक, एबीपी आदि कई बड़ी मीडिया कंपनियां है।

क्या है कोबरापोस्ट:
कोबरापोस्ट छोटा लेकिन विवादित मीडिया समूह है। यह कंपनी अपने स्टिंग ऑपरेशन के कारण जानी जाती है। खुद को एक गैर-लाभकारी न्यूज समूह के तौर पर पेश करने वाला कोबरापोस्ट मानता है कि भारत में इतनी ज्यादा ‘पत्रकारिता’ हो रही है कि इसका ‘महत्व कम हो गया’ है। कोबरापोस्ट ने अपने स्टिंग को ‘ऑपरेशन 136’ नाम दिया है। दरअसल, साल 2017 की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में भारत का स्थान 136वां था। इसी को आधार बनाकर इसका नाम यह रखा गया है।

क्या था मामला-
कोबरापोस्ट ने 25 मई को देश के करीब दो दर्जन से ज्यादा मीडिया संस्थानों पर किए गए स्टिंग ऑपरेशन 136 का दूसरा हिस्सा रिलीज किया। इस स्टिंग ऑपरेशन में इन प्रमुख मीडिया संस्थानों के बड़े अधिकारी और मालिक पैसे के एवज में एक सांप्रदायिक राजनीतिक अभियान को विज्ञापन (कुछ मामलों में संपादकीय) की शक्ल में चलाने को राजी होते नजर आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां ‘क्लाइंट’ साफ कह रहा है कि उसका उद्देश्य मीडिया के जरिये ध्रुवीकरण करने का है, इस पर भी मीडिया के ये कर्ता-धर्ता आर्थिक लाभ के बदले पत्रकारिता का सौदा करने को बेताब दिखते हैं।

कोबरापोस्ट के एक अंडरकवर रिपोर्टर पुष्प शर्मा कहते हैं कि उन्होंने भारत के 25 से ज़्यादा मीडिया समूहों से संपर्क किया और सभी को एक तरह की पेशकश की स्टिंग ऑपरेशन में दावा करते हुए वे कहते हैं कि वो एक ऐसे आश्रम और संगठन से आए हैं जिसके पास बहुत पैसा है ये संगठन आगामी चुनावों में हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए बेशुमार धन देने के लिए तैयार है।

एजेंडा के हिसाब से फिक्स हैं टीमें-
मीडिया समूहों ने सरकार को फायदा पहुंचाने के लिए अलग-अलग सुझावों के लिए अपनी अलग टीमें तैयार की है।  जिनमें अघोषित ‘एडवर्टोरियल’, पेड न्यूज और स्पेशल फीचर्स छापा जाना भी शामिल है। इस दौरान वायरल वीडियोज, जिंगल, क्विज और इवेंट्स बनाने वाली टीमें भी शामिल है। जो ज्यादातर रेडियो स्टेशन सोशल मीडिया आदि के काम आते हैं।

क्या कहना मीडिया संस्थानों-
जिन मीडिया कंपनियों के इस स्टिंग में नाम शामिल हुए है उन लोगों ने कोबरापोस्ट के रिपोर्टर पुष्प शर्मा और उनके सहयोगी पर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि उनका दामन खुद का दागदार है। इसके अलावा उन पर 2 से अधिक केस चल रहे हैं। इसी के साथ भारत के चल रहे उच्च स्तरीय मीडिया कंपनियों ने अपने-अपने दावें में कहा है कि, जो इस प्रकार है।

द टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने कहा कि वे पुष्‍प शर्मा की पहचान से वाकिफ थे और उसका ही ‘रिवर्स स्टिंग’ कर रहे थे। BCCL ने एक बयान में कहा, ”वे BCCL लीगल टीम की सलाह पर काम कर रहे थे ताकि इस फ्रॉड को फांसा जा सके और उसके वास्‍तविक इरादों का पता लगाने के साथ उसके पीछे खड़े लोगों, राजनीतिक संगठनों और बिजनेस समूहों की जानकारियां प्राप्‍त कर सकें। इसीलिए BCCL प्‍लान बनाकर कथित आचार्य अटल का रिवर्स स्टिंग की प्रक्रिया में था जिसके तहत वह कोई गलती करता या कानूनी समझौते पर हस्‍ताक्षर करता और इस तरह उसके पीछे खड़े लोगों और संगठनों का पर्दाफाश हो जाता।”

जी मीडिया ने ‘ऑपरेशन राष्‍ट्रवाद’ के माध्‍यम से मीडिया को बदनाम करने के कोबरापोस्‍ट के कुत्सित प्रयास का भंडाफोड़ कर दिया। स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि ‘आचार्य अटल’ इस बात की कोशिश करता है कि जी मीडिया हिंदुत्‍व का समर्थन करने वाली रिपोर्ट दिखाए। हालांकि जी मीडिया के प्रतिनिधियों ने स्‍पष्‍ट कर दिया कि वे केवल प्रमाणन योग्‍य सत्‍य की ही रिपोर्ट करते हैं। इसके बावजूद आचार्य अटल पत्रकारों और सेल्‍स टीम मेंबरों को सांप्रदायिक न्‍यूज चलाने का लगातार आग्रह करता है। यह स्टिंग ऑपरेशन राष्‍ट्रवादी न्‍यूज चैनल पर हमला करने के आचार्य अटल के एजेंडे को स्‍पष्‍ट रूप से उजागर  करता है।

इंडिया टुडे ग्रुप ने कोबरापोस्‍ट पर ‘सत्‍य को तोड़-मरोड़कर’ पेश करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि ‘उनकी प्रतिष्‍ठा को छति’ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया. कंपनी ने बयान जारी कर कहा, ”यह स्‍पष्‍ट है कि ये कंटेंट संदर्भ से बिल्‍कुल हटकर है और इसमें तोड़-मरोड़कर इंडिया टुडे ग्रुप की प्रतिष्ठित छवि को कलंकित, बदनाम, बर्बाद करने का इरादा जाहिर होता है। इस कारण इंडिया टुडे ग्रुप से संबंधित कंटेंट के प्रसारण को आप तत्‍काल प्रभाव से रोकिए अन्‍यथा हमारे पास आपके खिलाफ सख्‍त सिविल और क्रिमिनल कार्यवाही करने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं बचेगा।” कंपनी ने अपने बयान में यह भी कहा कि उसने इस तरह की कोई कम्‍युनल न्‍यूज या एडवरटाइज का प्रसारण नहीं किया।

द न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस के सीनियर वायस-प्रेसीडेंट(मार्केटिंग) जे विग्‍नेशकुमार का बयान द प्रिंट ने प्रकाशित किया है। इसमें उन्‍होंने कहा है, ”ये एक प्रस्‍ताविक प्रचार अभियान का स्‍पष्‍ट केस है और बातचीत के दौरान कई मौकों पर केवल एडवरटाइजमेंट के इस्‍तेमाल की बात कही गई है। इसको किसी भी अन्‍य रूप में पेश करना बेईमानी है।”

एचटी मीडिया के चीफ रेवेन्‍यू ऑफिसर ने भी इन आरोपों को खारिज करते हुए द इंडियन एक्‍सप्रेस से कहा, ”हमारी एक एडीटोरियल पॉलिसी है जो स्‍पष्‍ट रूप से किसी तरह के पेड न्‍यूज को हतोत्‍साहित करती है और इस पर हमको बेहद गर्व है। मेरे निजी बयान में स्‍पष्‍ट रूप से कहा गया कि यदि कंटेंट लीगल और उपयुक्‍त होने के साथ हमारी एडीटोरियल गाइडलाइंस के अनुरूप होगा तो ही हम आंतरिक रूप से परीक्षण और अप्रूवल के बाद इसे लेंगे। हालांकि मेरे इस पूरे बयान को प्रदर्शित नहीं किया गया और सुविधाजनक रूप से कांट-छांटकर संपादित कर दिया गया।” इस लिहाज से कोबरापोस्‍ट का स्टिंग यथार्थ के धरातल पर कहीं नहीं ठहरता और इसके कथित राजफाश में कोई चिनगारी नहीं है और केवल धुआं है। इसके साथ ही ऐसे एक ऐसे पत्रकार ने किया है जो खुद ही विश्‍वसनीय नहीं है।

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