नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन में रहने वाले कपल्स को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि लिव इन पार्टनर के बीच सहमति से बना शारीरिक संबंध बलात्कार या रेप नहीं होता, अगर व्यक्ति अपने नियंत्रण के बाहर की परिस्थितियों के कारण महिला से शादी नहीं कर पाता है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र की एक नर्स द्वारा एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह बात कही। दोनों ‘कुछ समय तक’ लिव इन पार्टनर थे।
महाराष्ट्र के मामले में एफआईआर के मुताबिक एक विधवा महिला को डॉक्टर से प्यार हो गया था और वे उसके साथ रहने लगी थीं। पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति की कोई मंशा या गलत इरादे थे, तो यह बलात्कार का एक स्पष्ट मामला था। पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच स्वीकार किए गए शारीरिक संबंध आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध नहीं होंगे।
मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि वे काफी समय से साथ रह रहे थे और जब महिला को पता चला कि उस आदमी ने किसी और से शादी कर ली है तो उसने शिकायत दर्ज कराई। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि भले ही शिकायत में लगाए गए आरोपों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जाए और उनकी संपूर्णता में स्वीकार किया जाए, लेकिन वे अपीलकर्ता (डॉक्टर) के खिलाफ मामला नहीं बनाते हैं। आपको बता दें, डॉक्टर ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
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