संवाददाता भीलवाड़ा। संसार के मोह में व्यक्ति इतना झकड़ा हुआ है कि मन में वैराग्य के भाव आते भी है लेकिन वैराग्य नही ले पाता है। हमसे बड़े त्याग नही होते है तो कोई बात नही छोटे- छोटे त्याग करें। मोक्ष में जाने के भगवान महावीर ने चार दरवाजे दान, शील, तप और भाव बताये है। मोक्ष में जाने के लिए साधु बनना जरूरी नही है व्यक्ति गृहस्थ में रहते हुए भी मोक्ष में जा सकता है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या बाल साध्वी विनितरूप प्रज्ञा ने धर्मसभा में व्यक्त किये।
साध्वी ने कहा कि जब तक हमारा जीवन परिवर्तन नही होगा तब तक कुछ भी होने वाला नही है। कपड़े बदलने से कुछ नही होता है स्वभाव को बदलना जरूरी है। जिसके पास भगवान ने धन संपदा, यश, वैभव दिया है उनको दिल खोलकर धर्मार्थ कार्यो में , गरीब की सेवा में खुले मन से दान करना चाहिए।भीतर के भाव जब तक शुद्घ नही होंगे तब तक जीवन का कल्याण होने वाला नही है, विचार और मन का शुद्ध होंगे तो आपके भाव भी शुद्ध हो जायेंगे। हर इंसान सुखी होना चाहता है लेकिन कोई चिंतन नही करता है। भावना अशुद्ध होने पर नरक का उपार्जन होता है। हम प्रभु से सदैव यही प्रार्थना करे कि मेरी भावना शुद्ध, सरल, सहज रहे। भगवान महावीर को आहार में चंदनबाला ने शुद्ध भाव से उड़द के बाकले विराहे तो वह मोक्ष में गई देने वाले के भाव भी शुद्ध हो और लेने वाले के भाव भी शुद्ध होने चाहिए। जैन धर्म मे 12 प्रकार की भावना बताई गई है। साध्वी डॉ चंद्रप्रभा ने कहा कि जिनवाणी को सुनकर हम अगर अन्तर्मन से ह्रदय में नही उतारेंगे तो जीवन मे बदलाव नही होने वाला है।
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