संवाददाता भीलवाड़ा। सामाजिक एवं राजनैतिक कारणों से कस्बे बन्द होते तो बहुत सुना होगा परन्तु कोटड़ी का बाजार भगवान के लिए भक्तों ने बन्द रख कर भगवान के बेवाण को निकालने की स्वीकृति के लिए बन्द रख कर एक नया अध्याय लिखा है। मेवाड़ के एतिहासिक धर्मस्थल भगवान श्रीचारभुजानाथ कोटड़ी के जलझूलन पर बेवाण निकालने की स्वीकृति की पुर जोर मांग के बावजूद प्रशासन द्वारा बेवाण निकालने की स्वीकृति नहीं दिए जाने के विरोध में भगवान के भक्तों ने अनिश्चितकाल के लिए खुद को ही लॉकडाउन कर दिया। बाजार बन्द करने की घोषणा के बाद प्रशासन हरकत में आया ओर जिले कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक अधिकारियों के आश्वासन देने के बाद शाम 4 बजे खोल दिए। कोटड़ी कस्बे को बन्द करने का एलान समस्त ग्रामवासियों द्वारा चोकी के मन्दिर चौराहे पर लगे काला पत्थर (सूचना पट्ट) पर मंगलवार देर रात को लिख कर किया गया। जलझूलनी एकादशी आगामी 29 अगस्त को श्रीचारभुजानाथ की 1600 वर्ष पुरानी परपरा को कायम रखने के लिए प्रशासन से कोटड़ी में तीन दिन का लॉकडाउन व कर्फ्यू रखते हुए पुजारी व प्रशासन के द्वारा ही भगवान को सरोवर पर लेजाकर जलझूलन करवाने की माग रखी। जिस पर कोरोना महामारी के चलते स्वीकृति नहीं देने से भक्तों ने मंगलवार देर रात को अनिश्चितकालीन बन्द का आह्वान कर दिया। बुधवार सुबह से ही कस्बे के व्यापारियों ने दूकानों को बन्द कर दिया। जिससे बाजारों में पसरे सन्नाटे के बीच ग्रामीणों ने भगवान के जलझूलन पर लॉकडाउन के दौरान किसी भी व्यक्ति के घर से बाहर नहीं निकलने का परिचय दे दिया। ग्रामीणों ने कहा कि जलझूलन के दौरान श्रीचारभुजा मन्दिर ट्रस्ट के द्वारा मैला निरस्त करने के बाद भी प्रशासन बेवाण निकालने के लिए स्वीकृति नहीं दी जा रही है जो मंजूर नहीं है। उन्होने प्रशासन से पुजारियों को बेवाण निकालने की स्वीकृति दिलाने की मांग की है ताकि वर्षो पुरानी परंपरा कायम रह सके। इस पर कस्बे से 25 लोगों का प्रतिनिधि मण्डल जिला कलेक्टर शिवप्रसाद एम नकाते व पुलिस अधीक्षक प्रीति चन्द्रा से मिले जिन्होने गुरूवार को सुबह 10 बजे कोटड़ी पंहुच मौका मुआयना करने के बाद ही अग्रीम कार्यवाही करने के आश्वासन के बाद शाम 4 बजे अनिश्चितकालीन बन्द को स्थगित करते हुए बाजार सुचारू खोलने का निर्णय लिया। बाजार खुलने से ग्रामीणों के बीच चल रही उहापोह की स्थिति भी साफ हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि राजसमन्द जिले के गढ़बोर चारभुजानाथ मन्दिर में जलझूलन के दिन भगवान को बेवाण में विराजमान करा जल विहार करवाने की परंपरा को कायम रखने के लिए स्वीकृति जारी कर दी गई है तो फिर कोटड़ी चारभुजानाथ के यहां स्वीकृति क्यों नहीं दी जा रही है। परंपरा को निर्वहन करने के लिए कस्बे में कर्फ्यू लगा आम व्यक्तियों पर रोक लगा कर पुजारियों के मार्फत ही जल विहार कराया जाने की मांग की गई है जिस पर स्वीकृति दी जानी चाहिए।
यह है परंपरा
जिले में प्रसिद्ध भगवान चारभुजानाथ कोटड़ी का धार्मिक स्थान जहां प्रति अमावस्या के अलावा जलझूलनी एकादशी पर विशाल मैला भरता है जिसमें लाखों की संख्या में भक्त कोटड़ी पंहुच कर भगवान के मैले में सरीक होते है। गणेश चतुर्थी से द्वादशी तक भरने वाले मेले में प्रतिदिन अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। परन्तु कोरोना महामारी के कारण चारभुजा मन्दिर ट्रस्ट के द्वारा मैले के सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए। रियासतकाल से ही जलझूलनी एकादशी पर दोपहर 3 बजे करीब भगवान चारभुजानाथ की निजमूर्ति बेवाण में विराजमान हो कर जल विहार को भक्तों के कंधे पर निकलती है। चोकी के मन्दिर पर पहुंचने के साथ ही अन्य समाज के 10 बेवाण में भी नहिज प्रतिमाएं विराजमान हो कर जल सरोवर पंहुचती है जहां 7 बजे सभी भगवान को एक-एक कर जल झूलन कराने के बाद सामूहिक आरती के बाद फिर से निज धाम की ओर रवाना होते है जो धीरे-धीरे भक्तों के कंधों पर सवार भगवान दूसरे दिन सुबह 9 बजे निज आसन पर विराजमान होते है।
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