देश का पहला जातिगत आर्थिक सर्वे जारी, जानें बिहार में किस जाति में कितने अमीर-गरीब?

बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को जातीय गणना की आर्थिक रिपोर्ट की कॉपी विधायकों को बांटी गई। 2 अक्टूबर को सरकार ने जातीय गणना की रिपोर्ट जारी की थी।

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Bihar Caste Survey News: बिहार में मंगलवार को देश का पहला जातिगत आर्थिक सर्वे पेश किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस वर्ग और किस जाति में कितनी गरीबी है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में पिछड़ा वर्ग के 33.16%, सामान्य वर्ग में 25.09%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 33.58%, SC के 42.93% और ST 42.7% गरीब परिवार हैं।

सीएम नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा के सदन में केंद्र से आरक्षण का दायरा 60% से बढ़ाकर 75% करने का सुझाव दिया है। नीतीश सरकार ने OBC और EBC वर्ग के लिए यह सुझाव दिया है। सदन में आरक्षण समेत कई मुद्दों पर सीएम ने अपनी बात रखी।

बिहार सरकार ने जिन जातियों को सवर्णों में शामिल किया है, उसमें हिन्दू और मुसलमान धर्म की 7 जातियां हैं। सामान्य वर्ग में भूमिहार सबसे ज्यादा 25.32% गरीब हैं। कायस्थ 13.83% गरीब आबादी के साथ सबसे संपन्न हैं। वहीं पिछड़ा वर्ग में यादव जाति के लोग सबसे गरीब हैं।

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बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को जातीय गणना की आर्थिक रिपोर्ट की कॉपी विधायकों को बांटी गई। 2 अक्टूबर को सरकार ने जातीय गणना की रिपोर्ट जारी की थी।आबादी की शैक्षणिक स्थिति की बात करें तो 7 फीसदी लोग ग्रेजुएट हैं। इधर प्रवासी बिहारियों को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। महज 1.22 फीसदी आबादी ही राज्य से बाहर रहती है।

बिहार के लिए चाहते हैं विशेष दर्जा-नीतिश
सीएम ने कहा कि राज्य में 94 लाख गरीब परिवार हैं। इन गरीब परिवार को 2 लाख रुपए राज्य सरकार की तरफ से मदद किया जाएगा। इसमें सभी जाति के गरीबों को मदद पहुंचाई जाएगी। जमीन खरीदने के लिए 1 लाख दिया जाएगा। इस पर 2 लाख 50 हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को 5 साल में पूरा करेंगे। अगर विशेष राज्य क दर्जा मिल जाए तो 2 साल मे ही पूरा करेंगे। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि जातीय जनगणना को लेकर केंद्र से हम लोग मिले थे, तब उन्होंने मौखिक रूप से कह दिया गया कि आप अपने राज्य में करा लीजिए। इसके बाद निर्णय हुआ कि जनगणना केंद्र करेगा और हम लोग जातीय गणना करेंगे।

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बिहार में सामने आए आर्थिक आंकड़ों के मुताबिक जिन परिवारों की आय छह हजार रुपये से कम है, उन्हें गरीब माना गया है।

  • सामान्य वर्ग (सवर्ण) के कुल परिवारों की संख्या 43,28,282 है। इनमें से 25.09 फीसदी यानी 10,85,913 परिवार गरीब हैं।
  • पिछड़ा वर्ग के कुल परिवारों की संख्या 74,73,529 है। इनमें से 33.16 फीसदी यानी 24,77,970 परिवार गरीब हैं।
  • अत्यंत पिछड़ा वर्ग के कुल 98,84,904 परिवार हैं। इनमें से 33.58 फीसदी परिवार गरीब हैं। इनकी संख्या 33,19,509 है।
  • अनुसूचित जाति के कुल परिवार 54,72,024 हैं। इनमें से 23,49,111 परिवार गरीब हैं, जो कि कुल संख्या का 42.93 फीसदी है।
  • प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के परिवारों की कुल संख्या 4,70,256 है। इनमें से 2,00,809 परिवार गरीब हैं। यह कुल संख्या का 42.70 फीसदी है।
  •  अन्य जातियों के परिवारों की कुल संख्या 39,935 है। इसमें से 9,474 परिवार गरीब हैं। यह कुल संख्या का 23.72 फीसदी है।
  • बिहार में सभी जातियों के परिवारों की कुल संख्या 2,76,68,930 है। इनमें से कुल गरीब परिवारों की संख्या 94,42,786 है। यह सभी समाज के कुल परिवारों की संख्या का 34.13 फीसदी है।

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सबसे गरीब भूमिहार और यादव

  • सर्वे की रिपोर्ट में सबसे गरीब परिवारों में रोचक आंकड़े सामने आए हैं। सामान्य वर्ग में सबसे गरीब जाति भूमिहार है। इनकी कुल संख्या 2 लाख 31 हजार 211 है, जो 27.58% है। सामान्य वर्ग में मुस्लिम धर्म की शेख जाति दूसरे नंबर है।
  • इनकी संख्या 2 लाख 68 हजार 398 है, जो कि 25.84% है। इसके बाद तीसरे नंबर पर ब्राह्मण हैं। इनकी कुल संख्या 2 लाख 72 हजार 576 है, जो कि 25.32% है।
  • इधर पिछड़ा वर्ग में सबसे गरीब यादव जाति है। इनकी संख्या 13 लाख 83 हजार 962 है, जो कि 35.87% है। इनके बाद कुशवाहा (कोईरी) हैं, जिनकी संख्या 4 लाख 6 हजार 207 है। यह 34.32% है।

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बिहार में कितने प्रतिशत शिक्षित जाति
जातीय गणना की आर्थिक रिपोर्ट में बिहारियों की शिक्षा और जॉब से जुड़ी नई जानकारियां मिली हैं। प्रदेश की 22.67 प्रतिशत आबादी क्लास 1 से 5 तक पढ़ी-लिखी है। 14.33 फीसदी लोग 6-8 तक पढ़े-लिखे हैं।इनके बाद क्लास 9 से 10 तक की शिक्षा लेनेवाले 14.71% लोग हैं। इनमें बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव शामिल हैं। वहीं सिर्फ 7 प्रतिशत लोग ही ग्रेजुएट हैं। इनमें बिहार सरकार के 12 मंत्री शामिल हैं।सरकारी जॉब की बात करें तो जिन चार जातियों के पास सबसे अधिक है, वो सामान्य वर्ग के हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक 6.68% कायस्थ जाति के पास सरकारी नौकरी है।

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विदेश व अन्य राज्यों में कितने बिहारी नागरिक

  • बिहार की 13 करोड़ 7 लाख की आबादी में मात्र 3.50 प्रतिशत लोग दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं। विदेश में काम करने वाले 0.17 फीसदी हैं।
  • दूसरे राज्य में काम करने वालों की संख्या 45,78,669 है। विदेश में काम करने वाले 21,7,499 हैं।
  • प्रदेश के अंदर अपने मूल निवास स्थान से दूसरी शहर या जगह पर काम करने वालों की संख्या 15,89,000 है। यह कुल आबादी का 1.22 फीसदी है।

कब-कब हुई जनगणना?
देश में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई थी। साल 1881 में पहली बार जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे और उसके बाद हर 10 साल में जनगणना की जाती थी। उस समय जातिवार जनगणना की जाती थी। जातिगत जनगणना के आंकड़े आखिरी बार 1931 में जारी किए गए थे। हालांकि, उसके बाद 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए जा सके थे। जातिगत जनगणना में 1941 के बाद से अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना होती है, लेकिन बाकी जातियों की अलग से जनगणना नहीं होती है। अब जनगणना में सिर्फ धर्मों के आंकड़े जारी किए जाते हैं। इसके बाद साल 1951 में जनगणना हुई थी।

जातीय जनगणना की मांग कब-कब उठी?
देश में जब भी जनगणना होती है तो जातिगत जनगणना की भी मांग उठती है। आजादी के बाद जब पहली बार जनगणना हुई थी तो जातीय जनगणना की मांग उठी, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने प्रस्ताव खारिज कर दिया। उनका ऐसा मानना था कि इससे देश का ताना-बाना बिगड़ सकता है। इसके बाद भी कई बार जातिगत जनगणना की मांग उठी, लेकिन हर बार यही दलील देकर इसे खारिज कर दिया गया। साल 2011 की जनगणना के दौरान भी राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की फिर से मांग उठाई और बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में इसके पक्ष में बयान दिया। उस साल सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जनगणना कराई, लेकिन उसके आंकड़े पेश नहीं किए गए।

कौन करा सकता है देश में जनगणना? क्या हैं केंद्र और राज्य के अधिकार
संविधान के मुताबिक, जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। 1948 के जनगणना एक्ट के तहत कहा गया है कि जनगणना के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति और जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार केंद्र के पास होता है। वहीं, राज्य सरकार सर्वेक्षण करा सकती है। कानून के जानकार बताते हैं कि सर्वेक्षण के तहत आंकड़े जुटाने के लिए राज्य सरकार कमेटी या आयोग का गठन कर सकती है।

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