यूपी विधानसभा चुनाव में दो फेज की वोटिंग हो चुकी है और रविवार को तीसरे चरण का मतदान जारी है। यहां सैकड़ों उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें एक ‘मुर्दा’ भी है, जो जनसेवा के लिए नहीं खुद के लिए चुनाव मैदान में है। इसे देखकर लोग चौंक भी रहे हैं।
वाराणसी की आठ सीटों पर नामांकन गुरुवार को खत्म हो गया। सौ के करीब प्रत्याशी मैदान में है। इनमें शिवपुर सीट से एक ‘मुर्दा’ भी मैदान में है। दरअसल जो व्यक्ति चुनाव मैदान में है उसे मृत घोषित किया जा चुका है। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए चुनाव मैदान में उतरा है।
13 साल से लड़ रहा जिंदा होने की लड़ाई
करीब 40 साल का संतोष पिछले करीब 13 साल से खुद के जिंदा होने की लड़ाई लड़ रहा है। मगर कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं है। इस वक्त उसका पता बनारस का मणिकर्णिका घाट। इस घाट के बारे में कहा जाता है कि मरने के बाद व्यक्ति को मोक्ष वहीं मिलता है। संतोष की जिंदगी में ये अजीबोगरीब मोड़ करीब 13 साल पहले 2003 में आया। कम उम्र में ही संतोष के सिर से मां-बाप का साया उठ गया। तीन बहने थीं, जिनकी शादी हो गई।
मराठी लड़की से की थी शादी
संतोष बताता है कि फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर एक बार बनारस आए थे। उनकी टीम से बात की और वो भी फिल्मी दुनिया में काम करने के लिए मायानगरी मुंबई चला गया। जाति से ठाकुर संतोष को वहां एक दलित मराठी लड़की से प्यार हो गया। दोनों ने जाति धर्म के बंधन को तोड़कर शादी की डोर में बंधने का फैसला कर लिया।
शादी के बाद जब वो वाराणसी के चौबेपुर थाने के गांव छितौड़ी आया तो बवाल हो गया। नाते रिश्तेदारों ने इस शादी को मानने से इंकार करते हुए उसको गांव से भगा दिया। संतोष ने सोचा कि अभी ताजी-ताजी बात है। गुस्सा शांत हो जाएगा तो सब अपना लेंगे। ये सोचकर वह मुंबई वापस लौट गया।
मुंबई सीरियल ब्लास्ट में मारे जाने की अफवाह
इसी बीच साल 2003-04 में मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट हुए। गांव में अफवाह उड़ गई कि बम ब्लास्ट में वो मर गया है। इतना ही नहीं उसकी तेरहवीं भी कर दी गई। कागजों में उसको मृत घोषित करा दिया गया। उसकी करीब 12 एकड़ जमीन पर दूसरे का नाम परिवर्तित हो गया। अफवाह से अंजान जब संतोष अपने बच्चे और बीवी को लेकर गांव पहुंचा तो नाते रिश्तेदारों ने कहा-अब तुम मर चुके हो।
संतोष का आरोप है कि जब उसने आपत्ति उठाई तो उसे मारपीट कर भगा दिया। उसके बाद संतोष ने हर चौखट पर अपनी लड़ाई लड़ी, लेकिन न्याय नहीं मिला। दिल्ली के जंतर मंतर पर जाकर धरना देना शुरू किया। वहां से भी पुलिस ने पकड़कर जेल में डाल दिया। जेल से छूटकर आया संतोष फिर धरने पर बैठ गया।
राष्ट्रपति चुनाव में भी दाखिल किया था पर्चा
संतोष ने राष्ट्रपति चुनाव में भी पर्चा भरा ताकि किसी तरह लोगों की नजर उस पर पड़ जाए। संतोष का कहना है कि कागजों में मरा होने के कारण उसका पर्चा खारिज हो गया। तमाम मुश्किलों के बीच संतोष की हिम्मत तो नहीं हारी, लेकिन उसकी पत्नी का हौसला जवाब दे गया। वह आठ साल के मासूम को लेकर वापस मुंबई लौट गई। मगर संतोष नहीं लौटा। वह फिर बनारस आया।
तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने उसकी तकलीफ को समझा। उसको कांशीराम कालोनी में बगैर आवंटित घर दिला दिया। उस घर के आधार पर उसका वोटर आईडी कार्ड भी बन गया। अस्थाई निवास प्रमाण पत्र मिल गया, लेकिन कानून की पेचीदगियों के कारण वो जिंदा अब तक नहीं हो सका है। उसके पुरखों की जमीन से उसका नाता नहीं जुड़ सका है।
फिलहाल इस वोटर आईडी के आधार पर संतोष यूपी चुनाव मे उतरा है। गुरुवार को नामांकन पत्र दाखिल करने का आखिरी मौका था। अब 20 फरवरी तक नामांकन पत्रों की जांच होगी। नामांकन वापिस और खारिज होंगे। अब देखना ये होगा कि क्या संतोष का नामांकन खारिज होता है। अगर नहीं तो क्या संतोष जिंदा होने की लड़ाई जीतेगा या उसकी जिंदगी के आसमान में छाया मुर्दा होने का धुंधला यूं ही बना रहेगा।
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