भारतीय रुपया (Indian Rupee News Today ) ने सोमवार को एक नई गिरावट दर्ज की, और यह पहली बार 87 प्रति डॉलर के लेवल से भी नीचे चला गया। यह गिरावट भारतीय मुद्रा की कमजोरी को दर्शाती है। इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 67 पैसे की गिरावट देखने को मिली और यह 87.29 रुपए प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रुपए में इस गिरावट की वजह कनाडा, मैक्सिको और चीन पर ट्रंप के टैरिफ लगाना है, जिसे फॉरेक्स ट्रेडर्स ने वैश्विक व्यापार युद्ध का पहला कदम बताया है। इसके अलावा जिओ पॉलिटिकल टेंशन्स कारण भी रुपए पर नेगेटिव असर पड़ा है।
रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 86.31 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।
रुपये की गिरावट के कारण
- वैश्विक आर्थिक दबाव – यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया दबाव में है, खासकर अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों के कारण।
- तेल की कीमतों में वृद्धि – भारत के लिए पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा होने से व्यापारिक घाटा बढ़ रहा है, जिससे रुपये पर दबाव बना है।
- विदेशी निवेश में कमी – वैश्विक अनिश्चितताओं और निवेशकों के जोखिम से बचने के कारण विदेशी निवेश में कमी आई है, जिससे भारतीय रुपये पर नकारात्मक असर पड़ा है।
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क्या होगा आगे?
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग बढ़ती है और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होता, तो रुपये की गिरावट जारी रह सकती है। हालांकि, सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए हैं, फिर भी मुद्रा बाजार की अस्थिरता बनी हुई है।
क्या करें आम लोग?
विशेषज्ञों का कहना है कि रुपया कमजोर होने से आयातित सामान महंगे हो सकते हैं, लेकिन निर्यातकों को फायदा हो सकता है। आम उपभोक्ताओं को रुपये की कमजोरी से महंगाई का असर महसूस हो सकता है, खासकर विदेशी सामानों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
आखिरकार, यह देखना होगा कि भारतीय सरकार और रिजर्व बैंक भविष्य में रुपये को मजबूत बनाने के लिए कौन से कदम उठाते हैं।
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