जानिए अबतक वर्षो से क्या-क्या और क्यों हुआ, मंदिर-मस्जिद की राजनीति में फंसी आयोध्या

2019 का चुनाव भी राम के सहारे लड़ने की तैयारी है। जमीन तैयार हो रही है।  देखिए, अभी आगे-आगे होता है क्या? एक बात और, सुप्रीम कोर्ट ने इस  विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने का सुझाव दिया था।

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उत्तर प्रदेश: अयोध्या में राम को लेकर फिर राजनीति तेज हो गई है। हजारों शिवसैनिकों का जत्था रेल और हवाई मार्ग से अयोध्या पहुंच चुका है। रविवार को अयोध्या में होने वाली धर्म संसद को लेकर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।जानकारी के मुताबिक अब तक महाराष्ट्र से करीब 15,000 लोग अलग-अलग तरीकों से अयोध्या पहुंचे हैं। वहीं शाम तक उद्धव ठाकरे भी अयोध्या पहुंचने वाले हैं।

खबर है कि शहर में बढ़ती लोगों की सक्रियता को लेकर शहर में तनाव का माहौल बढ़ा हालांकि प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने का दावा किया है। अयोध्या और फैजाबाद में धारा 144 तक लागू कर दी गई है। पूरी अयोध्या को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। बताया जा रहा है 70 हजार जवान तैनात करने के साथ ही ड्रोन भी नजर रख रहे हैं।

सिर्फ शिवसैनिक ही नहीं बल्कि साधु संतों का जमावड़ा भी अयोध्या में बढ़ता जा रहा है। ज्यादातर साधु भी एक सुर से राम मंदिर निर्माण की वकालत करते हुए राम नगरी में पहुंच रहे हैं। इसबार उनका एक ही नारा है कि अबकी बार राम मंदिर का निर्माण होकर रहेगा। वहीं इलाके के लोग जरूरी सामान खरीदकर पहले से ही घर में रख रहे हैं। इलाके के लोगों को डर है कि कहीं 1992 जैसी घटना ना हो।

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अयोध्या घटनाक्रम एक नजर में
2019  का चुनाव भी राम के सहारे लड़ने की तैयारी है। जमीन तैयार हो रही है।  देखिए, अभी आगे-आगे होता है क्या? एक बात और, सुप्रीम कोर्ट ने इस  विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने का सुझाव दिया था। मुकदमा आज भी लंबित है। विवाद की शुरुआत से लेकर अब तक का प्रमुख घटनाक्रम एक नजर में

1528: अयोध्या में मस्जिद का एेसी जगह निर्माण जिस जगह को हिन्दू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं।  मुगल सम्राट बाबर द्वारा मस्जिद बनवाने से बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है।

1853: इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दी।

23  दिसंबर, 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी, 1950 : गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की।

दिसंबर, 1950 : महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया।

17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर, 1961 : उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद  ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

01 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिन्दुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।

01 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

09 नवंबर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25  सितंबर, 1990 : लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।

नवंबर 1990 : आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने वाम दलों और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में
उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

अक्टूबर 1991 : उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

06 दिसंबर, 1992 : हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद
के पुनर्निर्माण का वादा किया।

16  दिसंबर, 1992 : मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002 : प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्चअगस्त 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

अक्टूबर 2004 : आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17  साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

21 मार्च 2017: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की। तत्कालीन चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा कि अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।