अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में 1994 के इस्माइल फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं? इस मुद्दे पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस पूरी हो गई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बेंच ने पक्षकारों से कहा कि वे 24 जुलाई तक अपनी दलीलें लिखित में पेश करें। मुस्लिम पक्षकार ने इस्माइल फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले को फिर से विचार करने के लिए पांच जजों की संविधान बेंच केे पास भेजने की अपील की थी। सुप्रीम काेर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि अयाेध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर पड़ेगा।
बहस के दौरान हिंदू तालिबान को लेकर वकीलों में तीखी बहस
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद अयोध्या में 1526 से थी और 6 दिसंबर 1992 तक रही, जब तक कि उसे ढहाया नहीं गया था। धवन ने कहा कि मस्जिद को ढहाने का काम किसी आतंकी हमले से कम नहीं था। 6 दिसंबर 1992 को हिंदुओं ने मस्जिद ढहाने के लिए हिंदू तालिबान की तरह काम किया। इस पर हिंदू पक्षकारों के कई वकीलों ने हिंदू तालिबान’ शब्द पर आपत्ति जाहिर की। इस पर धवन ने कहा कि वह अपनी बात पर कायम हैं। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद हिंदू तालिबानियों ने ही ढहाई थी।
तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने धवन की भाषा पर आपत्ति की और कहा कि आप गलत भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। वकीलों को कोर्ट की गरिमा और भाषा का ध्यान रखना चाहिए। इस पर धवन ने कहा कि वह चीफ जस्टिस की बात से सहमत नहीं हैं। उन्हें असहमत होने व अपनी बात रखने का अधिकार है और वह अपनी बात पर कायम हैं। इस पर हिंदू पक्षकार के वकील ने फिर आपत्ति जाहिर की। इस दौरान धवन से नोकझोंक करने वाले वकील को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा गार्ड्स के जरिए कोर्टरूम से बाहर करवाया।
यह था इस्माइल फारूकी मामले में कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण काे चुनौती देने वाले डाॅ. एम इस्माइल फारूकी के मामले में दिए फैसले में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। मुसलमान कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं। यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है। यह बात फैसले के पैराग्राफ 82 में कही गई थी। अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दिकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते हुए मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की थी।
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