जोधपुर: आसाराम को आखिरकार नाबालिग लड़की से रेप केस में कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी है, जबकि शिल्पी और शरतचंद्र को 20-20 साल की सजा सुनाई है। आसाराम बापू देश के चर्चित बाबाओं में से एक है। आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ बातों को यहां बताने जा रहे हैं जो शायद आप अभी तक नहीं जानते-
60 के दशक में आसाराम ने लीलाशाह से आध्यात्मिक दीक्षा लेने के बाद 1972 में अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे में अपनी पहली कुटिया बनाई। यहीं से उसके साम्राज्य खड़े करने की कहानी शुरू हुई। इसका आध्यात्मिक काम धीरे- धीरे गुजरात के शहरों से होता हुआ देशभर के राज्यों में फैल गया ऐसी जानकारी इनके ही आश्रम के अनुयायियों का कहना है।
आसाराम के जरिए एक बड़े वोटर समूह का निर्माण-
आसाराम की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार आज दुनिया भर में उनके चार करोड़ अनुयायी हैं। भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ ही राजनेताओं ने भी आसाराम के जरिए एक बड़े वोटर समूह में पैठ बनाने का प्रयास किया है जिसमें वे काफी सफल भी हुए है। भारत में इन बाबाओं की भक्ति श्रृद्धा के पीछे राजनेताओं का एक अच्छा खासा वोटबैंक भी काम करता है। जैसे इससे पहले राम रहीम के केस में भी देखा गया है।
400 आश्रम दुनिया भर में-
खैर आसाराम ने देश में आश्रम बनाने के बाद फिर विदेश में भी उसने अपने पैर पसारे। जून 2016 में आयकर विभाग ने आसाराम की 2300 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति उजागर की थी। उस वक्त मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आसाराम के लगभग 400 आश्रम दुनिया भर में है। इनके जरिए ही वह भक्तों से पैसा लेता था। जैसे-जैसे आसाराम मशहूर हुआ उसने अपनी भक्ति का कारोबार बढ़ाया। भक्तों द्वारा दिए चंदे के पैसों से अपने ब्रांड की पत्रिकाएं, प्रार्थना पुस्तकें, सीडी, साबुन, धूपबत्ती आदि बेचना शुरू किया था।
मुफ्त भोजन से बढ़ाई भक्तों की संख्या-
यही नहीं, आश्रम के नाम पर कई एकड़ जमीन हड़पी गई, जिससे इनका खजाना लगातार बढ़ता गया। आश्रम से प्रकाशित दो पत्रिकाओं ऋषिप्रसाद और लोक कल्याण सेतु की 14 लाख कॉपी मंथली बिकती थीं, जिनसे सालाना 10 करोड़ रुपए के आसपास रकम आती थी। बताया जाता है कि भक्तों को लुभाने आसाराम प्रवचन के बाद प्रसाद के नाम पर मुफ्त भोजन देता था। इस तरीके ने उसके भक्तों की संख्या को तेजी से बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गुरुपूर्णिमा के कार्यक्रम से खूब कमाता था बाबा-
सबसे ज्यादा धन उगलने वाले तीन या चार सालाना गुरुपूर्णिमा के कार्यक्रम होते थे। हर साल 10 से 20 भंडारे किए जाते थे, जिनके लिए 150 करोड़ से लेकर 200 करोड़ तक चंदा लिया जाता था, जबकि खाना बनाने और बांटने में खर्च की गई रकम नाममात्र की हुआ करती थी।
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