उत्तरप्रदेश के वाराणसी निवासी एक महिला ने अपनी और अपने भाई की शारीरिक अक्षमताओं को लेकर पीएम मोदी से मदद की गुहार हमारी पत्रिका के माध्यम से की। खत में क्या है पढ़िए…
सेवा में,
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
भारत सरकार
नई दिल्ली
विषय :- ‘असाध्य रोग (Spinal Muscular Dystrophy) द्वारा पीड़ित भाई-बहन द्वारा मदद की गुहार के संबंध में’
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
आपसे सविनय निवेदन यह है कि, मैं रोली रस्तोगी (23 वर्ष) वाराणसी की निवासी हूँ, मैं और मेरा छोटा भाई, अक्षत रस्तोगी (21 वर्ष) दोनों हीं SMA (Spinal Muscular Dystrophy) नामक बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी से पूरे शरीर में ऊर्जा संचित ना होने की वजह से हमारी मांसपेशियाँ काफी कमजोर हैं, जिसके कारण हम चलने-फिरने में सक्षम नहीं हैं और असहायों की भांति हमें अपने दैनिक कार्यों को करने के लिए किसी अन्य की सहायता लेनी पड़ती है। पिछले 23 वर्ष से इस लड़ाई में हमारे माता-पिता ही एक मददगार की भूमिका निभा रहे हैं, और हम पूर्ण रूप से उनपर ही आश्रित हैं।
विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी मैंने 12वीं की परीक्षा सीबीएसई से 75℅ अंकों से उत्तीर्ण की है, जिसके लिए माननीया स्मृति इरानी जी ने हमारे जैसे विशेष बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया है। अभी पिछले वर्ष ही मैंने पत्राचार के माध्यम से इग्नू से बी.कॉम की पढ़ाई पूरी करके स्नातक की डिग्री हासिल की है। वर्तमान में मैं बैंक क्षेत्र में नौकरी हेतु प्रवेश परीक्षा का अध्ययन कर रही हूँ। इस बीमारी के कारण मेरा छोटा भाई मुझसे भी अधिक असहाय व कमजोर है और स्कूल जाने में भी असमर्थ है और वह अपनी शिक्षा घर पर ही ग्रहण कर रहा है।
मेरे कुछ सपने हैं जिन्हें मैं पूरा करना चाहती हूँ, मैं ठीक हो कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ, अपनी काबिलियत दिखाना चाहती हूँ, बिना किसी पर आश्रित हुए। अपने सपनों को उड़ान देना चाहती हूँ। अपने माता-पिता की आँंखों में वो खुशी देखना चाहती हूँ, जो हर माँ-बाप अपने बच्चे के पैदा होने पर महसूस करता है। मैं चाहती हूँ की अब उनका सहरा बनूं, उनकी जिम्मेदारी बाँटना चाहती हूँ, मैं उन्हें सुकून भरी जिंदगी देना चाहती हूँ, मैं बैंक में नौकरी करना चाहती हूँ और मैं चाहती हूँ की ठीक हो कर मेरे जैसे बच्चे के लिए कुछ कर पाऊं, उन्हें एक बेहतर जिंदगी देना है मुझे। मुझे लिखने का भी शौक है, और मैंने अपने दर्द को पन्नों संग बाँटना शुरू भी कर दिया है।
पूर्व में हमारे इलाज हेतु माता-पिता ने बीचयू, पीजीआई जन विकलांग केंद्र, नारायण सेवा संस्थान उदयपुर, आरोग्यध्याम चित्रकूट, हिंदुजा हॉस्पिटल मुंबई, में दिखलाया। सन 1997 से 2004 तक अपनी ओर से भारत में हमारे माता-पिता द्वारा इस बीमारी के इलाज हेतु यथासंभव प्रयास किये गये हैं किंतु हर जगह उन्हें निराश ही होना पड़ा है। अभी हाल ही में एक बार फिर, बीएचयू में डॉ. दीपिका जोशी (Neurologist Specialist), उन्होंने हमें एक पोजिटिव साइन दिया पिछले 10 वर्षों की खोज के उपरांत U.S. में “SPINRAZA” नामक दवा का निर्माण ‘बायोगेन कंपनी’ के द्वारा किया गया है, जो SMA बीमारी के लिए काफी हद तक कारगर है। परंतु भारत में उपलब्ध न होने एवं अत्यंत महंगी होने के कारण हमारे अभिभावक इसका खर्च उठाने में असमर्थ हैं।
मैंने देखा है, मेरे माता-पिता को बस करते हुए, मैं और मेरा भाई, हर छोटे काम के लिए उन पर आश्रित हैं, रोज के दिनचर्या से ले कर हर एक जगह हमें सहायता चाहिए होती है। मेरे अभिभावक मुझे स्कूल तक छोड़ने जाते थें और फिर वापस लेकर आना, हर रोज एक किलोमीटर का फासला तय करना होता था। यहां बनारस में व्हीलचेयर वाली बस नहीं है, और मुझे मेरे अनुकूल अवस्थाएं नहीं मिल पाती। मेरी दुर्दशा ये है कि अगर मुझे आगे बढ़ कर एक किताब भी लेनी हो, तो मैं वो भी नहीं ले सकती। पापा ही मुझे हर जगह ले जाते हैं, मैं पब्लिक यातायात का उपयोग नहीं कर सकती हूँ, मुझे कार चाहिए होती है। कई बार ऐसा होता है पापा हैं तो कार नहीं, कार है तो पापा नहीं। मैं चाहती हूँ कुछ करूं उनके लिए, मैं उनका सहारा बन सकूं पर मैं इतनी बेबस और लाचार हूंँ चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती। मेरा भाई अक्षत मुझसे भी ज्यादा जीर्ण अवस्था में है, उसकी स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती जा रही है। वो बहुत ज्यादा कमजोर है, वो ज्यादा देर तक बैठ नहीं सकता, वो स्वयं अपना भोजन ग्रहण करने तक की क्षमता नहीं रखता, उसे खिलाना होता है। उसकी शिथिलता की वजह से उसकी पढ़ाई बाधित हो गई है। वो स्कूल नहीं जा सकता, और हर विषय के शिक्षक घर पर नहीं आ सकते पढा़ने के लिए, पर उसकी बुद्धि कौशल तीव्र है, और वो हर क्षेत्र की जानकारी रखता है। वो एक कलम तक अपने हाँथों से नहीं पकड़ पाता, एक बिस्कुट तक खुद से नहीं खा पाता।
अगर देखा जाए तो मेरे विषय में ये परिस्थिति स्थिर है, पर भाई की हालत दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है। मैंने हर एक जगह, हर बार, अपनी किस्मत के दिये इस असहनीय दर्द से समझौता किया है। मेरे स्कूल में कंप्यूटर लैब ऊपरी मंज़िल पर हुआ करती थी, जहांँ जाना मेरे लिए असंभव था इस कारणवश मुझे कंप्यूटर की बस किताबी ज्ञान प्राप्त हो सकी और मैं प्रयोगात्मक रूप से उसे नियंत्रित करने में असक्षम रही। मुझे चित्रकला में बेहद रूची है, सब कहते हैं, मैं अच्छी चित्रकारी कर लेती हूँ। मुझे इसी क्षेत्र में अपना भविष्य संवारना था, पर बड़े पोस्टर पर कार्य करना मेरे लिए संभव ना था, तो मुझे अपने रास्ते बदलने पड़ें। मैं कभी स्कूल में पिकनिक पर नहीं गयी, मैं शायद ही किसी समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाती हूँ, मेरी छोटी-छोटी ख्वाहिशें, और सपने भी मजबूरियों के बैसाखी पर दम तोड़ दिया करती हैं। मैं घर के बाहर भी नहीं जा सकती। मेरे घर की गली समतल ना होने की वजह से मेरा व्हीलचेयर पर चलना बहुत मुश्किल होता है। मुझे कहीं भी जाना हो तो शर्तें लगी होती हैं, या तो लिफ्ट की सुविधा हो या फिर निचली मंज़िल और हर बार मुझे सहूलियत मिले ये जरूरी नहीं, तो मैं मन मसोसकर अपनी इच्छाओं और जरूरतों को अपने अंदर ही दफन कर आगे बढ़ जाती हूँ। मुझसे जब भी कोई सहानुभूति जताता है, तो मुझे अच्छा महसूस नहीं होता, सामान्य स्थानों पर जब कोई व्यक्ति विशेष या अन्य जन मुझे भिन्न दृष्टि से देखते हैं, जैसे उन्होंने क्या देख लिया हो, तब मन अत्यंत कुंठित हो उठता है। इतनी समस्याओं और आंतरिक वेदनाओं से गुजरने के बाद कोई भी व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हो सकता है। फिर भी, मैं नहीं चाहती मेरे अश्रुओं को मेरे माता-पिता देखें, ये उनकी और उनके निरंतर हम पर किये गए मेहनत और उनका हमारे लिए स्नेह और वात्सल्य का अपमान होगा। मेरे लिए जीवन के मायने अलग हैं, और हर कदम पर ये “असंभव” शब्द मुझे मेरी सीमाओं तक बाँधें रखता है, मुझे उड़ने की चाहत नहीं, पर मैं चल सकती हूंँ, एक साधारण जीवन व्यतीत कर सकती हूँ ये जानते हुए भी मैं आज भी पराश्रित हूँ।
मैंने कई बार आपसे संपर्क करने की कोशिश की, कई बार पत्र भेजा और हर बार एक नयी उम्मीद लिए मैं आपको लिखती हूँ, और दोगुनी उम्मीद से आपके उत्तर का इंतजार करती हूँ। आपसे बहुत आशाएँ लगा रखीं है। अंत: मैं आपसे विनम्रता पूर्वक अनुरोध करती हूँ की SMA बीमारी के निवारण हेतु भारत में तमाम चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों को कदम उठाने हेतु प्रोत्साहित करने का कष्ट करें, जिससे मैं व मेरे जैसे अन्य बच्चों को इस बीमारी का इलाज आसानी से उपलब्ध हो सके। और हम दोनों ही भाई बहन पर अपनी कृपा बरसाएं, हमें ये दुर्गति-पूर्ण जिंदगी से मुक्त करें। हमें स्वछंद रूप देने में अपना योगदान प्रदान करें। आपकी बहुत-बहुत मेहरबानी होगी। मैं, मेरा भाई और मेरे माता-पिता सारा जीवन आपके आभारी रहेंगें।
धन्यवाद
प्रार्थी
रोली रस्तोगी
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