अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह होगा आयोजित

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जिला संवाददाता भीलवाड़ा। साहित्य सृजन कला संगम द्वारा संस्थान के संस्थापक एवं राजस्थान के सुप्रसिद्ध लोककवि स्व0 श्री मोहन मण्डेला जी की स्मृति में प्रतिवर्ष सार्वजनिक स्तर पर आयोजित होने वाला जिले एवं देश का ख्याति प्राप्त लोक कवि मोहन मण्डेला स्मृति लोक साहित्य सम्मान कार्यक्रम एवं 24वां अखिल भारतीय कवि सम्मेलन इस वर्ष कोरोना महामारी एवं प्रशासनिक आचार संहिता के मद्देनजर 5 दिसम्बर को दिन में समारोह पूर्वक आयोजित किया जाएगा। किसी साहित्यकार की स्मृति में निरंतर आयोजित होने वाला यह देश का प्रतिष्ठित आयोजन है जिसमें देश एवं राज्य के चुनिन्दा एवं ख्याति प्राप्त कवि एवं गणमान्य श्रोता भाग लेते रहे हैं। इस आयोजन में किसी एक प्रतिष्ठित साहित्यकार को लोककवि साहित्य सम्मान प्रदान किया जाता रहा है। इस वर्ष यह सम्मान डीडवाना के राजस्थानी भाषा के स्थापित साहित्यकार, कवि एवं लेखक डाॅ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ को दिया जाएगा। लोककवि की 25वीं पुण्यतिथि पर संस्थान द्वारा आज उन्हें काव्यगोष्ठी कर श्रद्धांजलि दी गई। संस्थान के पदाधिकारियों की हुई बैठक के बाद बताया कि इस वर्ष यह आयोजन 5 दिसम्बर को दिन में ही किया जाएगा। विपरीत स्थितियों को देखते हुए यह कार्यक्रम प्रशासनिक गाइड लाइन के अनुसार ही किया जाएगा। कार्यक्रम को गरिमामय बनाने की तैयारियां की जा रही है। इस अवसर पर आयोजित काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार बालकृष्ण बीरा ने की कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रंगकर्मी रामप्रसाद पारीक व विशिष्ट अतिथि ओम सनाढ्य रहे कार्यक्रम का कुशल संचालन वेद प्रकाश सुथार ने किया इस मौके पर ओम प्रकाश सनाढ्य ने मां शारदे की वंदना “वीणा वादिनी वर दे” से गोष्ठी का प्रारंभ किया गोपाल पंचोली ने “मत पूछो किसी से आज क्या हाल है” एवं “कहां खो गया आज का वह किसान है” प्रस्तुत की कवि सुनील भट्ट ने” हे कर्म योगी कर्म पथ पर तू निरंतर चल, बिखरे चमक तेरी जहां में काम ऐसा कर “गीत को सुनाया कवि ओम अंगारा ने राजस्थानी भाषा में “यो चिल्को भंवर जाल म है “कविता प्रस्तुत की। वरिष्ठ कवि बालमुकुंद छीपा ने “ऐसा दीप जलाएं हम तुम, जिसकी चमक नहीं छिप पाये” कविता प्रस्तुत की कवि शिव प्रकाश जोशी ने “पहली बार गले लगाने का एहसास है पिता उंगली पकड़कर चलने का एहसास है पिता” कविता प्रस्तुत की हास्य के फव्वारे कवि दिनेश बंटी ने” अँधेरे में बहने कि तुम आदत बना चुके” कविता प्रस्तुत की एवं हास्य कविता “इम्तिहान के नाम से ही मुझ को डर लगता था बाबर और हुमायूं को मैं रात – रात भर पढ़ता था।” प्रसातुत की । गीतकार सत्येंद्र मंडेला ने “डरो, कहीं फट ना जाए यह शाही शेरवानी” ग़ज़ल प्रस्तुत की। फैशन को चढ्यो बुखार घणा का भरम टूटग्या” कविता प्रस्तुत की। लोक कवि मोहन मंडेला की प्रसिद्ध कविता “कबड्डी पालो” सुना कर सभीको मंत्रमुग्ध कर दिया। ओम सनाढ्य ने “मैं तुम्हारी देहरी का दीपक हूं कोरा प्रिय” शानदार गीत प्रस्तुत किया। वरिष्ठ गीतकार बालकृष्ण ‘बीरा’ ने “चमक धमक थारी रहे बनी ठणी, देखूं उमर भर बणी-ठणी” श्रृंगार का शानदार गीत प्रस्तुत किया। अंतरराष्ट्रीय कवि एवं गीतकार डॉ. कैलाश मंडेला ने “जिंदगी में अनगिनत छल-छन्द हैं।लड़ मरे जो दूसरों के वास्ते शख्स ऐसे शहर में बस चंद है” ग़ज़ल सुनाई साथ ही अपने उत्कृष्ट गीतों व गज़लों से गोष्ठी को ऊंचाइयां प्रदान की। कार्यक्रम के संचालक वेद प्रकाश जी ने भी अपनी सुंदर रचना” रात भर जो रोशन करता रहा उसे फूंक मारकर बुझा दिया” कविता प्रस्तुत की। देर रात तक जमा यह कार्यक्रम आनंद से सराबोर रहा।

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