भीलवाड़ा: देश के सबसे छोटे राज्य गोवा में बीजेपी का प्रचार करते हुए जहाँ नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि “आप हमें कम्फर्टेबल मेजॉरिटी दें हम गोवा को कम्फर्टेबल स्टेट बना देंगे” वहीं देश का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान जहाँ बीजेपी को भारी बहुमत हासिल हुए तीन साल से ज्यादा हो गए हैं, कम्फर्टेबल होने के लिए अभी भी तरस रहा है।
भीलवाड़ा जिले में स्थित बिजौलिया तहसील पिछले दिनों तब चर्चा में आया था जब बरसात के दौरान मासूम बच्चों से भरी स्कूल बस पुलिया के टूटे होने से असंतुलित होकर डूब गई थी और बस के काँच तोड़कर स्थानीय नागरिकों ने अपनी जान पर खेलकर बच्चों का जीवन बचाया था। इस बार बिजौलिया के चर्चित होने वजह है उसी पुलिया के पास लगा एक बैनर… जिस पर लिखा है “बीजेपी नगरी बिजौलिया में हादसे का इंतजार- टूटी सड़कें, टूटी पुलिया, गंदा कस्बा”।
बिजौलिया क्षेत्र की विधायक कीर्ति कुमारी उसी बीजेपी से सम्बंध रखती हैं जिस बीजेपी को राजस्थान की जनता ने भारी बहुमत से राज्य में सरकार बनाने के लिए जनादेश सौंपा। लोकसभा में भी 25 में से 25 सीटें बीजेपी को ही मिलीं, इससे अधिक कम्फर्टेबल मेजॉरिटी और क्या हो सकती है विकास कार्य करने की महत्वाकांक्षा रखने वाले के लिए? लेकिन बिजौलिया में स्थिति कुछ और ही हैं, यहाँ से निकलने वाले व्यक्ति के मन में अगर ये बात आए कि यहाँ पर सड़कों पर गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क है तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी।
पुलिया के टूटे होने से तो अभी बरसात में ही स्कूल बस के डूबने से 25 मासूम जिंदगियाँ संकट में पड़ गईं थी लेकिन वो पुलिया अभी जस की तस ही बनी हुई है। साथ ही गंदगी इतनी कि स्वच्छ भारत अभियान तो जैसे किसी दूसरे देश में चल रहा हो…
बिजौलिया क्षेत्र लाल पत्थरों के लिए खास तौर पर प्रसिद्ध है, इन्हीं पत्थरों का निर्यात देश के सभी राज्यों और विदेशों में भी होता है जो कि वहाँ पर तो निर्माण कार्य में सहायक हो रहे हैं लेकिन इन पत्थरों का जो उद्गम स्थल है वो विकास और निर्माण की तरफ अभी भी टकटकी लगा कर देख रहा है।
व्यापार मण्डल की तरफ से जो बैनर लगाया गया है उस पर साफ लिखा गया है कि बीजेपी नगरी बिजौलिया में हादसे का इंतजार। बीजेपी ने चुनावों से पहले जो स्वर्णिम स्वप्न जनता को दिखाए, उनसे जनता की महत्वाकाँक्षा काफी बढ़ गई और फिर जब महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति अपेक्षानुरूप नहीं होती है तब जनता का असंतोष फूटना जायज़ ही है।
इस तरीके से असंतोष प्रकट करना लोकतंत्र के लिहाज से एक शुभ संकेत जरूर है लेकिन सरकार को इसको हल्के में नहीं लेना चाहिये, क्योंकि राममनोहर लोहिया के शब्दों में कहें तो “ज़िंदा क़ौमें पाँच साल का इंतज़ार नहीं करतीं।” जनता की इस लोकतांत्रिक रूप से उठाई गई आवाज़ को सरकार को जल्द से जल्द सुन लेना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में सबसे ज्यादा शक्ति जनता के ही पास होती है।