नई दिल्ली: किसी दुर्घटना या हादसे में घायलों और पीड़ितों की मदद करना सबसे जरूरी होता है। यह हमारा पहला फर्ज है लेकिन भारत के लोगों में इस चीज की कमी पाई गई है। TOI की खबर के मुताबिक, सेव-लाइफ फाउंडेशन द्वारा कई शहरों में एक सर्वे करवाया गया जिसमें चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए।
सर्वे से पता चला कि किसी हादसे में मदद करने में हम कितने पीछे हैं। लोग कानून के बारे में जागरूक नहीं हैं और मदद पहुंचाने वाले लोगों को कानूनन सुरक्षा मुहैया करवाने के बजाए पुलिस अभी भी ऐसे मामलों में उन्हें हिरासत में ले रही है। सर्वे में पता चला कि किसी हादसे में मदद करने वाले करीब 59 फीसद लोगों ने कहा कि मदद के एवज में पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
क्या है गुड सॉमैरिटिन 2016 कानून-
ये ही नहीं इस सर्वे में मालूम चला है लोगों को गुड सॉमैरिटिन 2016 कानून के बारें में भी कोई जानकारी नहीं है। दरअसल, इस कानून के तहत, हर नागरिक की पहली जिम्मेदारी है कि वह किसी हादसे में घायल को फर्स्ट ऐड देने या अस्पताल पहुंचाए। ऐसे किसी मदद पहुंचाने वाले शख्स को पुलिस पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित नहीं कर सकती। लेकिन असलियत ये है कि इस कानून की जानकारी लोगों के पास है ही नहीं। अभी भी 10 में से 8 लोग इस कानून से अनजान हैं और पुलिस के हिरासत में लेने के डर से लोग पीडितों की मदद तक नहीं करते हैं।
सेव-लाइफ फाउंडेशन द्वारा कई शहरों में कंडक्ट कराए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि 10 में 8 लोगों को अच्छे सॉमैरिटिन कानून 2016 के बारे में पता तक नहीं है। ये कानून पुलिस व अन्य एजेंसियों द्वारा की जाने वाली बदसलूकी के डर के बिना मुसीबत में पड़े व्यक्ति की मदद करने में कानूनी सुरक्षा प्रदान कराता है।
कानून को लेकर मेट्रो शहरों की जागरूकता-
सर्वे में कहा गया है कि साउथ इंडिया मेट्रो शहरों में इस कानून के बारे में सबसे कम लोग जानते हैं। चेन्नई में 93 फीसद, जब कि बेंगलुरु और हैदराबाद में 89 प्रतिशत लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं। जब कि इंदौर में सबसे अधिक 29 प्रतिशत लोग इसके बारे में जानते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी सिर्फ 21 फीसद लोग इस कानून के बारे में जानते हैं। जब कि मुंबई में 22 और जयपुर में 28 फीसद जनता को इसके बारे में पता है।
22 फीसदी लोग मदद से पहले पुलिस के देते हैं सूचना-
सर्वे करने वाली संस्था ने बताया कि सिर्फ 29 फीसदी लोगों ने किसी हादसे में घायल शख्स की मदद के लिए उसे अस्पताल पहुंचाने की इच्छा जताई, सिर्फ 28 फीसदी लोगों ने एंबुलेंस बुलाने की बात मानी और सिर्फ 22 फीसदी लोगों ने कहा कि ऐसी किसी स्थिति आने पर वो पुलिस को कॉल करेंगे। हालांकि सर्वे में पाया गया है कि लोगों में पीड़ितों की खुद से मदद करने की इच्छा बढ़ी है। जहां 2013 में सिर्फ 26 फीसद लोग ऐसा सोचते थे, वहीं अब 2018 में 88 फीसद लोग अपनी इच्छा से पीड़ितों की मदद करना चाहते हैं।
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