बिहार में मस्तिष्क बुखार का कहर, अबतक 31 बच्चों की मौत, फिर से प्रशासन मौन

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बिहार: मुजफ्फरपुर सहित कुल पांच जिलों में इंसेफ्लाइटिस (मस्तिष्क बुखार) सहित अन्य अज्ञात बीमारी से अबतक 26 बच्चों की मौत हो गई है। वहीं ये आकंड़ा बढ़कर 36 तक भी बताया जा रहा है। मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. शैलेश प्रसाद ने सोमवार देर शाम बताया कि प्रदेश के पांच जिलों-मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर, वैशाली, पूर्वी चंपारण में हाइपोग्लाइसीमिया और अन्य अज्ञात बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर अब 36 हो गयी है। इनमें से 26 बच्चे मुजफ्फरपुर के हैं।

उन्होंने बताया कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में मरने वाले बच्चों की संख्या बढकर 30 पहुंच गयी है जबकि 124 बच्चों का इलाज चल रहा है। शैलेश ने बताया कि बीमार बच्चों में से अधिकांश हाइपोग्लाइसीमिया (खून में चीनी की कमी) से ग्रसित हैं।

डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन (चमकी) होना है। बिहार में हर साल की तरह इस साल भी इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 36 तक पहुंच गई है। हालांकि सरकार अभी 11 मौतों की ही बात कर रही है।

पटना में सोमवार को आयोजित ‘लोक-संवाद’ के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान मुजफ्फरपुर जिले में बढ़ी संख्या में बच्चों की मौत के बारे में पूछे जाने पर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह गोरखपुर से बरसात के पहले शुरू होता है। इस बीमारी को मस्तिष्क बुखार के रूप में चिन्हित किया गया था। इसके लिए पहले भी समिति बनी थी और उसके बारे में कई सुझाव आये थे।

मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि इस संबंध में बड़े तौर पर जागरूकता लाने में स्थानीय स्तर पर जरूर कोई कमी रह गई है। उन्होंने कहा कि इसे मुख्य सचिव अपने स्तर पर देखेंगे ताकि लोग बच्चों की इस बीमारी से बचाव के लिए उचित देखभाल कर सकें। उन्होंने बताया कि इससे बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई कर रहा है।

गौर करने वाली बात ये हैं कि जब हर साल बड़ी संख्या में बच्चों की मौत इन्ही बीमारियों से होती है तो बचाव के इंतजाम पहले से क्यों नहीं किए जाते हैं। कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इस बीमारी का इलाज अमेरिका तक डॉक्टर नहीं ढूढ़ पाए हैं। आपको बता दें, पिछले 10 वर्षों में एईएस ने सैकड़ों मासूमों की जिंदगी छीन ली। सबसे बड़ी बात ये है कि ये बीमारी गर्मी में ही आती है और हर साल अप्रैल से लेकर जून तक उच्च तापमान और नमी की अधिकता के बीच ही यह बीमारी भयावह रूप लेती है।

उसके बाद जैसे ही बारिश होती है, इसका प्रकोप कम हो जाता है। तो ये भी सोचने वाली बात है कि बारिश ही इसका इलाज तो नहीं, इसके कारण का पता चलना चाहिए। इंसेफ्लाइटिस को जापानी बुखार भी कहा जाता है।

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