2018 का भारत- आसान नहीं है राह

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हर बारह महीनों के बाद हम नया साल मनाते हैं। क्योंकि परम्परा चली आ रही है। यह परम्परा हर देश, हर धर्म, हर जाति में निभाई जाती है। अपने-अपने तरीकों से लोग मनाते हैं। उम्मीद करते हैं कि नए साल में सब कुछ ठीक हो। पर होता कहां है- परिवार के स्तर पर, समाज के स्तर पर, देश के स्तर पर और विश्व के स्तर पर। भारत – दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक – देश है। एक देश के रूप में, भारत अपनी विविधता – सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अद्वितीय है। पर यहां की हकीकत कुछ और है। भारत अंधेरे से बाहर निकला है और उसने विश्व में अपनी अलग छवि बनाई है।  आइए, कुछ समस्याओं पर विचार करते हैं जो इस साल में न हों।

प्राचीन काल से ही भारत के  लोगों ने शांति को बढ़ावा दिया है। भारतीय नागरिकों का रवैया  अब ‘चलता है’ वाला हो गया है। आखिर लोग करें तो क्या करें। यद्यपि भारत को वर्तमान में कई बदलावों की जरूरत है, फिर भी कुछ महत्वपूर्ण हैं जिन्हें तुरंत हल करना चाहिए। भारत में सबसे व्यापक समस्या भ्रष्टाचार की है जिसे जल्दी और समझदारी से संभाला जाना चाहिए। निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र में, शायद ही कोई कार्यालय है, जो इस रोग से अछूता है। इसी वजह से अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है। हालांकि हम में से ज्यादातर लोग इसे लेकर चिंतित हैं। जब समय आ गया है, हम, भारत के लोग इसे दूर करें और पारदर्शी शासन की स्थापना हो।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो डेटा-2016 के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराधों में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा हत्याओँ के मामले दर्ज हैं।  इसमें पति और रिश्तेदारों द्वारा बलात्कार, अपहरण, हमला और क्रूरता भी शामिल है। वर्ष 2015 की तुलना में यह आंकड़ा 2.9% ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा अलग शहरी

भूगोल भी लिए हुए है। दिल्ली में राष्ट्रीय औसत से दो गुना ज्यादा अपराध की दर दर्ज की गई। यू.पी. और बिहार में, वर्ष 2016 में जहां क्रमशः हत्या के मामले 4,889 और 2,581 दर्ज हुए वहीं घनी आबादी वाले केरल में यह आंकड़ा 305 ही था। एक सवाल पर सबसे ज्यादा विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि क्या सामाजिक विकास से अपराधों में कमी आती है? भारत में निरक्षरता का प्रतिशत खतरनाक है। शहरों की तुलना में गांवों की हालत खराब है। हालांकि गांवों में कई प्राथमिक विद्यालय स्थापित किए गए हैं, आंगनबाड़ी केन्द्र खोले गए हैं पर समस्या अभी भी कायम है। कहना न होगा कि केवल बच्चों को शिक्षा प्रदान करने से निरक्षरता की समस्या का समाधान नहीं होगा। भारत में बहुत से वयस्क भी शिक्षा से अछूते हैं। स्वच्छता की समस्या भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। लगभग 70 करोड़ लोगों के घरों पर शौचालय तक नहीं हैं।

झुग्गी क्षेत्रों में शौचालय नहीं हैं। लोगों को खुले में शौच करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जो कई रोगों जैसे दस्त, हैजा, निर्जलीकरण इत्यादि का कारण बनता है। अनेक ग्रामीण स्कूलों में भी शौचालय नहीं हैं, जिसके कारण माता-पिता अपने बच्चों को, खासकर लड़कियों को स्कूल ही नहीं भेजते हैं। बढ़ती हुई आबादी से ये समस्याएं और ज्यादा जटिल हुई है जो सबसे बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में पूर्व में सीवेज प्रणाली को तीन लाख लोगों की आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया था। लेकिन दिल्ली में अब 14 लाख से अधिक आबादी है यह सिर्फ दिल्ली का मामला नहीं है। भारत में हर राज्य और क्षेत्र एक जैसे ही हैं।

यह सच है कि दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला लोकतांत्रिक देश अपनी पूरी आबादी के लिए उचित स्वास्थ्य सुविधा प्रदान नहीं कर सका है। भारत चिकित्सा पर्यटन के लिए एक केंद्र बन रहा है लेकिन ये सभी सुविधाएं स्थानीय निवासियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जो गरीब हैं। हेल्थकेयर भारत में एक उपेक्षित सा मुद्दा है क्योंकि सरकार का प्रमुख ध्यान तो कृषि, बुनियादी ढांचे और आईटी पर है। 50% ग्रामीणों की स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंच नहीं है। 10% बच्चे जन्म के एक वर्ष के भीतर ही मर जाते हैं। पोषण की कमी है। 33% लोगों के पास शौचालय तक पहुंच है। दुनिया का एक तिहाई गरीब भारत में रहते हैं। भारत में कुल आबादी का 37% हिस्सा अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहता है। पांच साल से कम उम्र के 42% बच्चों का वजन कम है। अधिकांश गरीब गांवों में रहते हैं।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा गरीब इलाके हैं। वर्तमान में भारत के सामने प्रदूषण और पर्यावरण संबंधी चुनौतियां भी हैं। हालांकि भारत इस दिशा में कड़ी मेहनत कर रहा है लेकिन अभी एक लम्बा

रास्ता तय करना है। प्रदूषण के कारण भूमि का क्षरण, प्राकृतिक संसाधनों का कम होते जाना, और जैव विविधता का नुकसान चिंता का मुख्य मुद्दा है। अनुपचारित सीवरेज जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है। यमुना नदी भारत में सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। आबादी वाले शहरों से गुजरने वाली अन्य नदियों की भी यही हालत है। महिलाओं की सुरक्षा की बात की जाए तो भारत में पुरुष और महिला दोनों को समान अवसर दिए गए हैं। लेकिन जहां तक महिलाओं की आजादी और सुरक्षा का सवाल है तो भारत काफी पीछे है। घरेलू हिंसा, बलात्कार के मामले, मीडिया में महिलाओं का चित्रण आदि जैसे मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

बेहतर सड़कों के लिए भारत को अपने बुनियादी ढांचे पर तेजी से काम करने की आवश्यकता है। पानी, स्वच्छता आदि जैसी सेवाएं को आसान करना होगा। वर्ष 2012 में दिल्ली का सामूहिक सामूहिक बलात्कार मामला, जिसे निर्भया कांड का नाम दिया गया, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था। इसके चलते जघन्य अपराध की परिभाषा बढ़ गई है।  महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ उपाय शुरू किए गए हैं। । इस दृष्टिकोण से समय के साथ हिंसक अपराध में कमी आ सकती है।

पिछले साल के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि किशोरों से जुड़े मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। ऐसे मूलभूत मुद्दों भी हैं जिनके लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता होती है, जैसे कि पुलिस का आधुनिकीकरण करना, सही उम्मीदवारों की भर्ती करना और मानव अधिकारों को जारी रखने के लिए उन्हें शिक्षण देना। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ऐसी नीतियां और उपाय तलाशेगी जिससे अपराध न बढ़ें और उन पर लगाम कसती जाए।

2018 के सम्भावित भारत के लिए ये पंक्तियां अचानक याद आ जाती हैं-

साथी, नया वर्ष आया है!
वर्ष पुराना, ले, अब जाता,
कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता,
दे जी-भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ इसका स्वागत करने को,
स्नेह-बाहुओं में भरने को,
नए साल के लिए, देख, यह नई वेदनाएँ लाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ, ओ पीड़ा के मतवाले,
ले ये तीक्ष्ण-तिक्त-कटु प्याले,
ऐसे ही प्यालों का गुण तो तूने जीवन भर गाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
– हरिवंश राय बच्चन (निशा-निमंत्रण से)

 

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