Jaya Ekadashi 2024: जानिए आज के दिन क्यों मनाई जाती है जया एकादशी, क्या हैं इसके लाभ?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग जरूर लगाना चाहिए। एकादशी के दिन श्री हरि को शक्कर, घी, दूध और दही से बने पंचामृत का भोग लगाएं।

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Jaya Ekadashi 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल में कुल 26 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली जया एकादशी। एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

आज 20 फरवरी को जया एकादशी का व्रत किया जाएगा। एकादशी व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन द्वादशी तिथि को समाप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु को विशेष चीजों का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पूजा सफल होती है और श्री हरि प्रसन्न होते हैं। साथ ही सौभाग्य की प्राप्ति हो सकती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग जरूर लगाना चाहिए। एकादशी के दिन श्री हरि को शक्कर, घी, दूध और दही से बने पंचामृत का भोग लगाएं। मान्यता है कि पंचामृत को भोग में शामिल करने से साधक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु को भोग लगाते समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।

भोग मंत्र

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।

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जया एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार स्वर्ग के नंदन वन में देवताओं द्वारा उत्सव का आयोज किया गया। इस उत्सव में देवताओं ने सभी ऋषियों को भी आमंत्रित किया। इस उत्सव में गन्धर्वों और गंधर्व कन्याओं द्वारा नृत्य और गायन का कार्यक्रम रखा गया था। उत्सव की शुरुआत हुई और गंधर्व एवं गंधर्व कन्याओं ने नृत्य गायन आरंभ किया। अचानक ही पुष्यवती नामक एक नृत्यांगना का ध्यान माल्यवान नामक एक गंधर्व पर पड़ा और वह उस पर मोहित हो गई। इसके बाद दोनों एक दूसरे को निहारने लगे। पुष्यवती और माल्यवान एक दूसरे को देखते-देखते इतना खो गए कि उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि वह सभी ऋषियों एवं देव गणों के बीच में मौजूद हैं और दोनों मर्यादाएं लांघ कर समीप आ गये। यह देख वहां मौजूद हर कोई असहज हो गया। इसके बाद इंद्रदेव ने पुष्यवती और माल्यवान को श्राप दिया कि वह पिशाच योनी में भटकेंगे और उन्हें स्वर्ग में अब से कोई स्थान प्राप्त नहीं होगा। इसके बाद दोनों हिमालय की श्रृंखलाओं में मुक्ति की कामना से पिशाच के रूप में भटकने लगे। दोनों के बहुत क्षमा मांगने और अपने किये पर पछतावा होने के बाद नारद मुनि ने उन्हें बताया कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु का ध्यान करे। इससे उन्हें पिशाच योनी से मुक्ति मिल जाएगी और हुआ भी वैसा ही। यही कारण है कि जया एकादशी के दिन न सिर्फ पिशाच योनी में भटक रहे आपके परिवार के लोगों को मुक्ति मिल जाती है बल्कि पितरों को भी सुखों की प्राप्ति होती है और वैकुण्ठ धाम में श्री हरि के चरणों में निवास प्राप्त होता है।

ध्यान दें- इस लेख में मौजूद किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।

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