लाइफस्टाइल डेस्क: अगर आप डायबिटीज के शिकार है और आपके मन में कई तरह के सवाल चलते हैं। जिनका जवाब आपको नहीं मिलता। तो आज हम आपके कई ऐसे सवालों के जवाब देंगे जो आपके मन में चलने वाले सवालों को शांत करेगा और आपको सच से वाकिफ करवाएगा। यहां डायबिटीज से जुड़े 8 मिथ दिए है..जरूर पढ़ें।।
मिथ: ज़्यादा शक्कर डायबिटीज़ की वजह बन सकती है?
सच : यह कुछ हद तक सही और कुछ हद तक गलत है। अगर किसी व्यक्ति के परिवार में डायबिटीज अनुवांशिक तौर पर नहीं है और न ही वह प्री डायबिटीक है तो सिर्फ मीठा खाने की वजह से उसे डायबिटीज नहीं हो जाएगी। अगर किसी के परिवार में डायबिटीज का इतिहास है यानी डायबिटीज की अनुवांशिक प्रवृत्ति है, या यदि कोई व्यक्ति खुद ही डायबिटीज की दहलीज पर यानी प्री डायबिटीक है और अधिक मीठा खाता है तो पैनक्रियाज से इंसुलिन के बाहर निकलने के कारण उसे डायबिटीज हो सकती है।
मिथ : डायबिटिक को चावल व आलू नहीं खाने चाहिए।
सच : ऐसा नहीं है कि डायबिटीज के मरीज को सिर्फ सफेद चावल या आलू नहीं खाना चाहिए, बल्कि उसे कार्बोहाइड्रेट (कार्ब्स) युक्त खाद्य पदार्थों को सीमित मात्रा में खाना चाहिए। भारतीयों के द्वारा ग्रहण की जाने वाली कैलोरी का 70 से 80 फीसदी हिस्सा कार्ब का होता है। सभी जानते हैं कि कार्बोहाइड्रेट मोटापा और डायबिटीज के लिए जिम्मेदार है। अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज है और वह बहुत ज्यादा पॉलिश किए चावल, रिफाइंड गेहूं और आलू को खाएगा, तो निश्चित ही उसका शुगर लेवल बढ़ेगा। अगर कोई व्यक्ति कार्ब (जैसे चावल और आलू) कम लेगा और पौधों से प्राप्त हरी पत्तेदार सब्जियां हरे चने, काले चने, चने की दाल, सोयाबीन और राजमा जैसी चीजों को अधिक खाएगा तो यह प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा संयोजन और और स्वस्थ आहार होगा।
मिथ : डायबिटीज के मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और वह जल्दी बीमार होते हैं।
सच : जिन लोगों को अनियंत्रित डायबिटीज होती है उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और उन्हें इंफेक्शन जल्दी होता है। अगर किसी व्यक्ति की शुगर नियंत्रित है और इम्यूनिटी दुरूस्त हो चुकी है तो वह व्यक्ति डायबिटीज के साथ भी सामान्य व्यक्ति की तरह स्वस्थ हो सकता है।
मिथ : टाइप- 2 डायबिटीज सिर्फ मोटे लोगों को होती है।
सच : यह सिर्फ एक मिथ है क्योंकि टाइप 2 डायबिटीज कई प्रकार की होती है। बहुत सारे टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों का वजन सामान्य होता है या वह पतले भी होते हैं। हां यह निश्चित है कि मोटे लोगों में टाइप-2 डायबिटीज काफी सामान्य है। इसके उलट अगर कोई मोटा व्यक्ति टाइप-2 डायबिटीज से ग्रसित है और वह वजन कम करे तो टाइप-2 डायबिटीज भी कम हो जाती है।
मिथ : डायबिटीज से ग्रसित लोग जल्दी थक जाते हैं
सच : मेरे अधिकांश डायबिटीज से ग्रसित मरीजों में ऊर्जा का स्तर बढ़िया है और यह तो डायबिटीज जिन्हें नहीं है उन लोगों से भी बेहतर है क्योंकि इन्होंने अपनी डायबिटीज को अच्छे से नियंत्रित करके रखा है। हां अगर कोई व्यक्ति डायबिटीज से ग्रसित है और शुगर नियंत्रण में नहीं है तो वह जल्दी थक जाते हैं।
मिथ : जो इंसुलिन लेते हैं वह असुरक्षित ड्राइवर होते हैं।
सच : इंसुलिन लेने वाले लोग सावधानी से गाड़ी चलाते हैं। हां यह सच है कि यदि किसी ने समय पर नहीं खाया है और वह वह लंबे सफर पर चला गया है, तो ऐसे में लो शुगर का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उन्हें असुरक्षित ड्राइवर नहीं कह सकते। ब्लड शुगर को समय पर चैक करना चाहिए और सही समय पर खाना चाहिए।
मिथ : जेस्टेशनल यानी प्रेग्नेंसी के समय होने वाली डायबिटीज बच्चे के जन्म के साथ ठीक हो जाती है।
सच : यह सिर्फ मिथ है, क्योंकि जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइटिस (जीडीएम) का पता नहीं लगाया गया और सही ढंग से नियंत्रित नहीं किया गया तो यह मां और बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है। डायबिटीज डिलेवरी के बाद भी बनी रह सकती है कई बार यह डिलेवरी के पांच साल बाद भी जारी रह सकती है। हो सकता है जीडीएम बच्चे के जन्म के बाद सच में ठीक हो जाए। जीडीएम की समस्या प्रेग्नेंसी में होती है लेकिन उसके बाद की सम्भाल तय करती है कि वह कब तक रहेगी। जीवनशैली में बदलाव, वजन नियंत्रित रखकर प्री डायबिटीज से बच सकते हैं।
मिथ : डायबिटीज के मरीजों को केला, अंगूर, गन्ना, तरबूज और आम जैसे मीठे फल नहीं खाना चाहिए।
सच : यदि डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित तो डायबिटीज के मरीज फल खा सकते हैं। पर बेहतर है कि लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स फ्रूट्स जैसे अमरूद, तरबूज, संतरा, पपीता या सेब खाया जाए। गन्ने से बचा जाए। आम, अंगूर और कटहल को कम मात्रा में लें। केला भी कम ही खाना चाहिए।
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