मुंह की बदबू दूर करने के लिए अपनाएं ये तरीके

0
380

लहसुन हमारे शरीर के लिए कितना उपयोगी है इसका अंदाजा आपको होगा लेकिन जब बात इसकी बदबू का हो तो इसे खुद से दूर रखते हैं। खाने की बाद मुंह से आने वाली स्मेल आपको दूसरों के सामने शर्मिंदा कर सकती है। अब एक नए अध्ययन से पता लगा है कि कच्चा सेब, पुदीना और लेटस आदि को अगर लहसुन खाने के बाद खाया जाए, तो यह मुंह से आने वाली दुर्गंध को रोकता है।

ओहीयो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि लहसुन की बदबू वालटिल (वाष्पशील पदार्थ) की वजह से आती है- इसके साथ ही लहसुन में डायलाइल डाइसल्फाइड, एलिल मरकैपटेन, एलिल मिथाइल डाइसल्फाइड और एलिल माइथिल सल्फाइड मैजूद होता है।

अध्ययन के अनुसार, अध्ययन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को तीन ग्राम लहसुन की कली दी गईं, जिसे उन्हें 25 सेकेंड तक चबाना था। और उसके बाद कच्चा, जूस या गर्म किया सेब, कच्चा और गर्म की हुई लेटस, कच्चा और पुदीना पत्तियों का जूस और ग्रीन टी पीने के लिए कहा गया।

कुछ चुनी गई आयन फ्लो ट्यूब मास स्पेक्ट्रोमेट्री द्वारा लहसुन खाने के बाद वालटिल के स्तर का विश्लेषण किया गया।
निष्कर्षों में पाया गया कि लहसुन खाने के बाद आने वाली मुंह से आने वाली बदबू, जो कि वालटिल के कारण आती है, को कच्चे सेब और कच्चे लेटस से 50 प्रतिशत कम किया जा सका और शुरूआती आधे घंटे की तुलना में वह काफी कम थी। सभी वालटिल कंपाउट मापने के बाद पता लगा कि कच्चे सेब और कच्ची लेटस के मुकाबले पुदीने की पत्ती का डियोड्राइज़ेशन लेवल ज्यादा था।

वहीं, सेब और पुदीने का जूस ने वालटिल का स्तर कम करने में सहायक रहे, लेकिन उतना प्रभावकारी नहीं था, जितना कच्चा सेब और कच्ची पुदीना पत्ती चबाना। इसके अलावा, हीट किया हुआ सेब और लेटस वालटिल के उत्पादन को कम किया। शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रीन टी का लहसुन की बदबू कम करने में कोई सहयोग नहीं रहा।

शोधार्थियों के अनुसार, खाने की दो प्रक्रिया के द्वारा भी सांस के साथ आने वाली बदबू को दूर किया जा सकता है। कच्चा और पका हुआ खाने में मौजूद एंजाइम वालटिल को खत्म कर मुंह से बदबू को दूर करने में सहायक होते हैं।

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिटा मिरोंडो का कहना है कि, पके हुए फूड के मुकाबले कच्चा फूड ज्यादा प्रभावकारी होता है, क्योंकि उसमें एंजाइम और फेनॉलिक कंपाउंड होता है, जो कि बदबू को दूर भगाते हैं। यह रिसर्च जरनल ऑफ फूड साइस में प्रकाशित हुआ था।