भगवान के दर्शन से पहले क्यों बजाते है घंटी, जानिए इसकी वजह

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आप जब भी मंदिर जाते है और घंटी बजते है क्या आपने कभी सोचा है ऐसा हम क्यों करते है। ऐसा नहीं है कि घंटी बजाने की प्रथा केवल हिन्दुओं की है। जैन बुद्ध मंदिरों में भी घंटियां बजाने की प्रथा है। चलिए आज हम हमको बताते है ऐसा क्यों और कब से चला आ रहा है।

प्राचीन समय से ही देवालयों और मंदिरों के बाहर घंटियों को लगाया जाने की शुरुआत हो गई थी। इसके पीछे मान्यता है कि जिन स्थानों पर घंटी की आवाज नियमित तौर पर आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है और नकारात्मक शक्तियां पूरी तरह निष्क्रिय रहती हैं।

धार्मिक कारण: स्कंद पुराण की मानें तो मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी या घडिय़ाल की ध्वनि से वही नाद निकलता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है।

वैज्ञानिक कारण: मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। ऐसे में इस कंपन क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

 लोगों का मानना है कि घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।