राम कीन्ह चाहें सोई होई

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कैर अन्यथा अस नहिं कोई ।।

जो भगवान करना चाहते हैं वही होता है। उसे कोई अन्यथा नहीं कर सकता।। भगवान जब कृपा करते हैं तब उलटे काम भी सीधे बन जाते हैं। इस बात का एक  उदाहरण है। एक गरीब किन्तु भोला ब्राह्मण भीख मांगकर गुजारा करता था। एक दिन उसकी पत्नी ने अपने पति से कहा कि नित्य भीख मांगने पर भी पेट नहीं भरता है। आप राजा के पास क्यों नहीं चले जाते? ब्राह्मण बोला मैं तो बिना पढ़ा-लिखा दीन ब्राह्मण हूं। भला मुझे वहां क्या मिलेगा? पत्नी ने कहा कि एक बार जाइये तो सही भगवान कृपा  करेंगे।

पत्नी की बात मानकर ब्राह्मण राजा के पास चला गया। वहां पहले से ही विद्वान ब्राह्मण बैठे हुए थे। इस गरीब ब्राह्मण ने उनसे पूछा कि मुझे धन चाहिए। मुझे राजा के पास जाकर क्या करना चाहिए कि राजा खुश होकर मुझे धन दे दें। उन ब्राह्मणों ने देखा कि यह मूर्ख हैं तो उस भोले ब्राह्मण से कहा कि तुम राजा के दरबार में जाते ही पैर से जूता निकालकर राजा की पगड़ी में मारना। राजा खुश हो जायेगा। यह सुनकर भोला ब्राह्मण राजा के दरबार में गया और पास में जाकर राजा की  पगड़ी में जूता मारा। पगड़ी जमीन पर गिर गई, किन्तु यह क्या? राजा की पगड़ी में से काला सांप निकलकर भागते सबने देखा। राजा ने विचार किया कि यह ब्राह्मण अच्छा विद्वान है। उसे पता था कि पगड़ी में सांप है। अगर मुझसे कहता कि महाराजा पगड़ी में सांप है तो मैं हाथ से पगड़ी उतारता और सांप मुझे खा जाता और अगर यह ब्राह्मण पगड़ी उतारता तो इसे सांप खा जाता।

इसलिए इसने बिना कुछ विलम्ब किये जूता मारकर पगड़ी उतारी और मुझे बचा लिया। राजा ने खुश होकर उस भोले ब्राह्मण को बहुत साधन देकर मान-सम्मान के साथ विदा किया।  जिन ब्राह्मणों ने उस भोले ब्राह्मण को सिखाया था उन्हें बड़ी जलन हुई हम विद्वान ब्राह्मणों को छोड़कर इस मूर्ख का सम्मान किया गया। कुछ समय के उपरांत वही भोला ब्राह्मण फिर से राजा के दरबार में गया और इन्हीं ब्राह्मणों से फिर पूछा कि अंब मुझे क्या करना चाहिए कि राजा प्रसन्न हो जाये। उन ब्राह्मणों ने विचार किया कि यह मूर्ख बार-बार यहां आकर हम लोगों को अपमानित करायेगा, इसलिए अब की बार ऐसा कुछ बताएं कि राजा इसे प्राणदण्ड दे दें।

यह विचार कर उस भोले ब्राह्मण से कहा कि अब की बार पहले से भी अच्छा उपाय बताएं कि राजा बहुत अधिक प्रसन्न होंगे। आज तुम जाते ही राजा का पैर पकड़कर सिंहासन से नीचे खींचकर भागते हुए राजा को भवन के बाहर लाकर छोड़ना। भोले ब्राह्मण ने वैसा ही किया जैसा उसे बताया गया ब्राह्मण ने राजसभा में जाकर राजा का पैर पकड़कर बाहर की ओर खींचता हुआ भागा और बाहर आकर राजा को छोड़ दिया। उसी समय राजा के सिंहासन के ऊपर की छत नीचे गिर पड़ी। राजा फिर से बहुत प्रभावित हुआ।

राजा ने फिर  विचार किया, यदि यह ब्राह्मण कहता कि महाराजा छत गिरने वाली है तो मैं ऊपर देखता, तब तक छत हमारे ऊपर गिर जाती और मैं उसमें दब जाता। इसलिए शीघ्रता से पैर पकड़कर और खींचकर मुझे बचा लिया। यह ब्राह्मण बहुत अच्छा भविष्य जानने वाला है। राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उस भोले ब्राह्मण को पारितोषित देकर अपने पास राजसभा में ही रख लिया। इसलिए कहते हैं कि जब प्रभु दया करते हैं तब उलटे काम भी सीधे हो जाते हैं।

पगड़ी पलटत अहि लखो-पग पलटत गिर गेह ।।

उलटे-सीधे होत हैं करत राम जब नेह।।