भद्रकाल के चलते रात साढ़े आठ बजे के बाद होलिका का दहन होगा। फाल्गुन पूर्णिमा 11 मार्च को रात सवा आठ बजे से शुरू हो गई है। 12 मार्च को रात साढ़े आठ बजे तक भद्रा की छाया रहेगी और इस काल में होलिका दहन अशुभ माना जाता है। इसलिए भद्रा के बाद ही होलिका दहन होगा। होलिका दहन के लिए चौघडिय़ा का अमृतकाल साढ़े आठ से नौ बजे तक का है। हालांकि इसके बाद भी दहन कर सकते हैं। होलिका में हरे वृक्षों को न जलाएं। क्योंकि प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन भी हमारी जिम्मेदारी है।
ऐसे करें पूजा
हल्दी की गांठ, उपले, फलों, सब्जी आदि की माला बनाकर धारण करें। होलिका दहन से पूर्व नारियल, सुपारी, जायफल और आठ गोमति चक्र लेकर गुलाबी रंग से होलिका का पूजन करें। इसके बाद होलिका के चारों तरफ आठ दीये जलाएं और सभी सामग्री को होलिका के ऊपर अर्पण कर दें। होलिका दहन होते समय अपने कष्टों के निवारण के लिए और उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना करें।
इन रंगों से खेलें होली
- मेष: पीला, लाल
- वृष: सफेद, नीला
- मिथुन: हरा और सफेद
- कर्क: पीला, हरा और सफेद
- सिंह: हरा और पीला
- कन्या: पीला,हरा और सफेद
- तुला: सफेद, हरा और नीला
- वृश्चिक: लाल, पीला, नीला
- धनु: पीला, लाल
- मकर: सफेद, लाल, नीला
- कुंभ: लाल, नीला
- मीन: पीला, सफेद, हरा
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