चद्रंयान-3 (Chandrayan 3) की लैंडिंग के बाद गूगल पर चद्रंयान-3 के बारें में काफी कुछ सर्च किया जा रहा है। हम यहां आपको लैंडिंग के बाद क्या कुछ हुआ और क्या होने वाला तमाम बातों के बारें यहां बताने वाले हैं। पहले बाद चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं।
यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था
चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की खोज है। यहां पानी की मौजूदगी बर्फ के रूप में हो सकती है। चंद्रयान-1 मिशन में इस बात का संकेत मिला था। यहां मिली बर्फ भविष्य के चंद्रमा मिशनों और चंद्रमा कॉलोनी के लिए ऑक्सीजन, ईंधन और पानी का सोर्स हो सकती है।
लैंडिंग के बाद क्या कुछ हो रहा चांद पर-
लैंडिंग के बाद अपने 14-दिन मिशन के दौरान, चंद्रयान-3 अपने पेलोड रंभा (RAMBA) और आईएलएसए (ILSA) का इस्तेमाल करके अभूतपूर्व एक्सपेरिमेंट्स की एक सीरीज बनाएगा। ये एक्सपेरिमेंट चंद्रमा के वायुमंडल का अध्ययन करेंगे और इसकी मिनरल कम्पोजिशन को बेहतर ढंग से समझने के लिए चांद की सतह की खुदाई करेंगे।
ये भी पढ़ें: जानें इसरो ने चद्रंयान-3 पर सोने की पन्नी क्यों चढ़ाई? पढ़कर चौंक जाएंगे आप
लैंडर विक्रम रोवर ‘प्रज्ञान’ की तस्वीर लेगा, जो चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करने के लिए अपने उपकरणों को सेट करेगा। प्रज्ञान अपने लेजर बीम का इस्तेमाल चंद्रमा की सतह के एक टुकड़े को पिघलाने के लिए करेगा, जिसे रेगोलिथ कहा जाता है, और इस प्रक्रिया में उत्सर्जित हुई गैसों का विश्लेषण करेगा।
इस मिशन के जरिए भारत न केवल चंद्रमा की सतह के बारे में ज्ञान का खजाना हासिल करेगा, बल्कि भविष्य में इंसानों के बसने की संभावना के लिए इसकी क्षमता को भी हासिल करेगा।
चंद्रयान-3 में लगे पेलोड कौन से?
एक पेलोड रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर (RABHA), चंद्र सतह के पास आवेशित कणों के घनत्व को मापेगा और यह देखेगा कि यह समय के साथ कैसे बदलता है।
इसके सिवा, अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) रासायनिक संरचना को मापेगा और चंद्रमा की सतह की खनिज संरचना का अनुमान लगाएगा, जबकि लेजर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) चांद की मिट्टी के बेसिक स्ट्रक्चर का पता लगाएगा।
ये भी पढ़ें: Chandryaan 3: परिश्रम समर्पण और विजय, देखिए लैडिंग का एक मिनट का ऐतिहासिक वीडियो
पेलोड क्या है?
चंद्रयान-3 चंद्रमा की मिट्टी का अध्ययन करने और चांद के ऑर्बिट से पृथ्वी की तस्वीरें खींचने के लिए छह पेलोड ले जा रहा है। (आसान भाषा में जैसे बुखार को मापने के लिए थर्मामीटर की जरुरत होती है वैसे ही चांद पर जीवन संभव है या नहीं इसको समझने के लिए कुछ यंत्र है जिन्हें साइंस की भाषा में पेलोड कहा जाता है)
पेलोड में क्या है उससे पहले ये जान लेते हैं कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में रहने योग्य ग्रह पृथ्वी (SHAPE) पेलोड का स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री भी है, जो इसके स्पेक्ट्रल और पोलारिमेट्रिक गुणों का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी से लाइट (रोशनी) का विश्लेषण करेगा। इसके बाद, रोवर चंद्रमा की संरचना और भूविज्ञान पर डेटा इकठ्ठा करेगा, जिससे वैज्ञानिकों को हमारे खगोलीय इतिहास और विकास के बारे में अधिक जानने में मदद मिलेगी।
चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उतारने के अपने प्राथमिक लक्ष्य के अलावा, चंद्रयान-3 चंद्रमा के इतिहास, भूविज्ञान और संसाधनों की क्षमता सहित चंद्रमा के पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स भी करेगा।
ये भी पढ़ें: दिल थाम लीजिए…सफल लैडिंग के बाद, भारत को अरबों का बिजनेस देगा चंद्रयान जानें क्या है मून इकॉनोमी
पेलोड में क्या-क्या है ?
लैंडर पेलोड: तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए चांद की सतह थर्मोफिजिकल प्रयोग (ChaSTE); लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापने के लिए चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण (ILSA); प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओं का अनुमान लगाने के लिए लैंगमुइर जांच (LP)। नासा (NASA) के एक निष्क्रिय लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे को चंद्र लेजर रेंजिंग अध्ययन के लिए समायोजित किया गया है।
रोवर पेलोड: लैंडिंग स्थल के आसपास मौलिक संरचना प्राप्त करने के लिए अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) और लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)।
ताजा अपडेट्स के लिए आप पञ्चदूत मोबाइल ऐप डाउनलोड कर सकते हैं, ऐप को इंस्टॉल करने के लिए यहां क्लिक करें.. इसके अलावा आप हमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्ट्राग्राम और यूट्यूब चैनल पर फॉलो कर सकते हैं।
Comments are closed.