जयपुर: बच्चा चोरी की अफवाह के बाद उग्र भीड़ की हिंसा के मामले देशभर से सामने आ रहे हैं। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली समेेत कई राज्यों में रोजाना बच्चा चोरी की अफवाह से उत्तेजित भीड़ बिना सच की पड़ताल किए लोगों की पिटाई कर दे रही है। आलम यह है कि बच्चे के पिता या अन्य परिजन को भी चोरी के शक में पीट दिया जा रहा है।
अफवाहों की तेजी ने प्रशासन की नाक में दम किया हुआ। अब अखबारों में रोज सूचना दी जाती है कि अफवाहों पर यकीन न करें…किसी घटना आदि का शक होने पर तुरंत नजदीकी थाना में सूचित करें। बच्चा चोर, काला बंदर, मुंहनोचवा आदि तरह की अफवाहें पिछले दिनों तेज थी। इन अफवाहों पर दैनिक भास्कर ने एक पड़ताल की है। जिसमें निकलकर सामने आया है कि ये अफवाहें फुल प्लान के साथ सोशल मीडिया पर प्रसारित की जाती है या ये कह लें कि इन अफवाहों के फैलने का एक सीजन होता है।
भास्कर के मुताबिक, मई से लेकर सितंबर तक ही अफवाह उड़ाई जाती है और अक्टूबर में जैसे ही सर्दियां शुरू होती हैं अफवाहों का दौर कम होने लगता है। इसके बाद ठंड में तो लगभग पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
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फ्री सॉफ्टवेयर हैं सबसे बड़ा टूल-
इंटरनेट की दुनिया जितनी आसान होती जा रही उतना ही जोखिम बढ़ता जा रहा है। दरअसल, इंटरनेट पर ऐसे कई टूल्स और सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जिनका उपयोग कर फेक वीडियो या तस्वीरों में एडिटिंग आसानी से की जा सकती है। जिसके बाद इन वीडियो और तस्वीरों को अफवाह फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पिछले दिनों ऐसे ही मानसिक रोगी को बच्चा चोर बताकर उसकी वीडियो को वायरल किया गया। एक सेक्स रैकिट गैंग की तस्वीर को बच्चा चोर गैंग बताकर सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया है। इसी तरह लोगों के मन में डर बनाया जाता है। इन बात को आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे तस्वीर पीएम मोदी की और आवाज किसी और। ऐसे में लोग केवल पीएम मोदी का चेहरा देखकर उस वीडियो को तुरंत दूसरे ग्रुप या अपने साथी को शेयर करता है। और धीरे-धीरे गलत जानकारी लोगों के बीच फैलती चली जाती और एक अफवाह का रूप बन जाती है।
क्यों आसान नहीं सर्दी के दिनों अफवाह फैलाना-
जानकारों ने बताया गर्मी के दिनों में लोगों का बाहर निकलना थोड़ा कम होता है। इसलिए इस दौरान अफवाह फैलाने की खबर को तूल मिल जाता है। वहीं सर्दियों के दिनों में गांव के लोगों का बाहर निकलना ज्यादा होता ऐसे में लोगों से बातचीत ज्यादा होती। इधर-उधर की खबरों की जानकारी ज्यादा होती इसलिए फेक न्यूज और अफवाह इन दिनों सर्दी की मार झेलती है।
2001 (मई-सितंबर): काला बंदर या मंकी मैन
- अफवाह थी कि 4 फीट के मंकीमैन के बदन पर काले घने बाल थे और चेहरा हेलमेट से ढका होता था।
- खौफ: दिल्ली-एनसीआर समेत अन्य कई जगहों पर
2002 (जून-अगस्त): मुंहनोचवा
- हवा में उड़ती हुई कोई वस्तु जिसमें लाइट जलती थी। जिसे देखकर ही खौफ में लोग छत से कूद जाते थे।
- खौफ : पूर्वी यूपी व इससे सटा बिहार का एरिया
2015 (जुलाई-बीच): सिलबट्टे वाली बुढ़िया
- सिलबट्टे से कोई कुटाई कर देता है या पत्थर का रंग बदल जाता है जिससे लोगों में दहशत थी।
खौफ : पश्चिमी यूपी, दिल्ली-एनसीआर
आपकी क्या जिम्मेदारी है
- सोशल मीडिया पर चलाए जाने वाले वीडियो या मैसेज अक्सर कॉपी पेस्ट कर फारवर्ड किए जाते हैं जिन पर भरोसा न करें
- ऐसे मैसेज को अगर आप गूगल पर डालकर देखेंगे तो वही अलग-अलग शहर के नाम से चलता हुआ मिल जाएगा
- इससे साफ है कि इसमें कोई सत्यता नहीं है बल्कि इसे भ्रामक बनाकर अफवाह फैलाई जा रही है
- अगर किसी पर आपको शक भी है कि ये कोई क्राइम कर रहा है तो अफवाह फैलाने के बजाय पुलिस को सूचना दें
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